तकनीक से बदल रहा देश का कृषि परिदृष्य किसानों को छह हजार रुपये सालाना मदद


तरक्की में तकनीक का महत्व पूर्ण योगदान है। आज कोई भी क्षेत्र तकनीकी से अछूता नहीं है। इनमें कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर पूरा मानव जीवन चक्र निर्भर करता है और इसमें  तकनीक का अहम योगदान है। अभी तक देष की राजनीति में किसानों को छूट और कर्जमाफी का ही लालीपाँप दिया जाता रहा है मगर अब  नई तकनीकों के चलते देश की कृषि ने भी तरक्की की नई राह पकड़ी है। देश की कृषि तकनीकी, कृषि मशीनरी, खाद्य एवं उर्वरक, सिंचाई और बाजार व्यवस्था पर निर्भर करती है क्योंकि किसान खेत तैयार करने से लेकर उत्पाद को बेचने तक तकनीकी का ही इस्तेमाल करता है। देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की 15 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है। यदि कृषि तकनीकी के क्षेत्रों की बात करें तो देश में कृषि मशीनरी उद्योग की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है जिसमें हर साल वृद्धि हो रही है। फार्म मशीनरी की तकनीकों में पिछले एक दशक में काफी बदलाव आए हैं। रोटावेटर, सीडड्रिल मशीन, लैंड लेवलर, ड्राइवर लैस ट्रैक्टर, प्लान्टर और हार्वेस्टर जैसी कुछ तकनीक आई हैं जिन्होंने कृषि की परिभाषा को बदल दिया। 2022 तक भारत का फार्म मशीनरी क्षेत्र 6.6 सीएजीआर वृद्धि दर से रुपए 769.2 बिलियन तक पहुंच जाएगा। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी ट्रैक्टर इंडस्ट्री की है। वहीं कृषि रसायन और उर्वरक तकनीक के जरिए किसानों की फसल पैदावार में वृद्धि होती है जिसमें कृषि रसायन और उर्वरक क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। देश में हर साल 32.4 मिलियन टन उर्वरक का उत्पादन होता है। वहीं कृषि रसायनों को बनाने के लिए भी नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है जबकि घरेलू बाजार में बड़े स्तर पर कृषि रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। कृषि रसायन तकनीक से फसल पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई है जिससे किसानों को लाभ भी मिला है। कृषि रसायनों के इस्तेमाल में भारत का चैथा स्थान है। अग्रणी तीन देशों  अमेरिका, जापान और चीन की तुलना में भारत में 0.6 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से कृषि रसायनों और उर्वरकों का इस्तेमाल होता है। वहीं अमेरिका में 5-6 किग्राध् हैक्टेयर और जापान में 11-12 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से इस्तेमाल होता है। भारत में 60 प्रतिशत कीटनाशक, 18 प्रतिशत फफूंदीनाशक, 16 प्रतिशत खरपतवार नाशक, 3 प्रतिशत बायोपेस्टिसाइड और अन्य फसल सुरक्षा उत्पाद इस्तेमाल होते हैं। फसल सुरक्षा के लिए कृषि रसायनों के साथ-साथ बायो उत्पाद और जैविक उत्पादों का इस्तेमाल भी किसानों के बीच काफी बढ़ा है।कृषि सिंचाई तकनीकों में भी काफी बदलाव हुए हैं। अब किसान टपक सिंचाई और सूक्ष्म बूंद सिंचाई जैसी तकनीक को अपना रहे हैं। कृषि सिंचाई की इन तकनीकों से पैदावार में बढ़ोत्तरी, पानी का सही मात्रा में उपयोग और पौधों को संतुलित रूप से पोषक तत्वों की पूर्ती करने जैसे लाभ किसानों को मिल रहे हैं। फिलहाल भारत में यह इंडस्ट्री 3.78 बिलियन डॉलर का कारोबार कर रही है। साल 2022 तक 11.60 सीएजीआर की वृद्धिदर से यह बढ़कर 6.54 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। कृषि फसलों के बीज व्यापार में भी तकनीकी के चलते बदलाव आए हैं। जो किसान पहले देशी किस्म के बीजों से कम पैदावार लेते थे आज वे किसान हाइब्रिड बीज से अधिक पैदावार ले रहे हैं। सरकार ने कृषि बाजारों को भी तकनीकी से जोड़ते हुए कृषि मंडियों को ऑनलाइन कर दिया है। इसी के साथ कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियों ने इस पर काम करना शुरू किया। ये कंपनियां ऐसी तकनीक विकसित कर रही हैं जिनसे किसानों को उत्पाद का सही मूल्य, कृषि सलाह, मंडीकरण, मौसम की जानकारी, ऑनलाइन कृषि उत्पाद बेचना और खरीदना जैसी सुविधा मिल सकेगी।एक किसान आसानी से घर बैठे कृषि से जुड़ी अधिकतर जानकारी अपने फोन पर पा लेता है। यह आधुनिक तकनीक के जरिए ही संभव हो पाया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आधुनिक तकनीकों के चलते कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए। इसका सीधा फायदा कृषि क्षेत्र से जुड़े हर एक व्यक्ति को मिला है लेकिन अभी भी कृषि की नवीन तकनीक से बहुत से किसान वंचित हैं। यदि आधुनिक कृषि तकनीकों को सही से किसानों तक पहुंचाया जाए तो इससे बड़ा फायदा हो सकता है और किसानों की आय में वृद्धि संभव है। 
यह कोई परिकल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत हो सकती है।


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