स्वावलंबन द्वारा होगा दशहरी आम के पल्प का कारोबार
शैलेंद्र राजन
निदेशक
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ
प्रधानमंत्री के आत्म निर्भर भारत के स्वप्न को ग्रामीण महिलाएँ सच में बदल रही है। मलिहाबाद के एक छोटे से गाँव मोहम्मद नगर तालुकेदारी की २० महिलाओं को आम के मूल्य संवर्धन में केन्द्रीय उपोषण बाग़वानी संस्थान में दो वर्ष तक प्रशिक्षित किया गया। उत्साह और ज्ञान से लैस इन महिलाओं ने महिला स्वयं सहायता समूह- स्वावलंबन की स्थापना की। आम के अचार, अमचूर, पन्ना और आम के गूदे को निकाल कर उसे संरक्षित करने का बीड़ा उठा कर “वोकल फ़ार लोकल” के नारे को सच कर दिखाया ।
उत्तर प्रदेश में प्रसंस्करण उधोग के अनुपलब्धता के चलते दशहरी आम के विभिन्न उत्पाद बाज़ार में उपलब्ध नहीं है। देश में तोतापरी, अलफांसो और केसर क़िस्म के आम ही प्रसंस्करण इकाइयों में प्रयोग किये जाते है। दशहरी के गूदे का व्यवसाय कई प्रयत्न के वावजूद स्थापित नहीं हो पाया | मुख्य कारण इसके गूदे की मांग न होना है| स्वावलंबन समूह द्वारा दशहरी के गूदे को वैज्ञानिक तरीक़े से परसंसकरित कर भंडारण करने से लघु उद्योग के नये आयाम खुल रहे है। डॉ पवन गुर्जर ने महिलाओं को पल्प मशीनों तथा घरेलू स्तर पर पल्प निकालने एवं उसके परीक्षण की ट्रेनिंग दी| अमरौली कि सुश्री मोनिका सिंह ने 1 साल पूर्व दशहरी का पल्प निकालकर संग्रहित किया और विभिन्न उत्पाद बनाकर लोगों को टेस्ट करवाएं| आत्मविश्वासपूर्ण से परिपूर्ण एवं अनुभव के आधार पर उन्होंने दशहरी पल्प परिरक्षण को ही व्यवसाय बनाने का दृढ़ निश्चय किया है|
समूह द्वारा विकसित उत्पादों को बाज़ार में नये पैकिंग और ब्रैंडिंग द्वारा बेचने के लिए केन्द्रीय उपोषण बाग़वानी संस्थान का एग्री-बिज़नेस इनकयूबेशन सेंटर सामने आया। उद्यमियों और समूह को आपस में जोड़कर महिलाओं के लिये नये अवसर तलाशे गये।
डा. शैलेंद्र राजन, निदेशक बताते हैं कि मलिहाबाद मे २८,००० हेक्टेयर भू-भाग पर आम की खेती होती है लेकिन आम का मूल्य संवर्धन बेहद कम है| ऐसे में किसानों के समूह आम प्रसंस्करण में कुटीर उधोग के रूप में विकसित हो सकते है। आँधी में गिरे और छोटे आकार के आमों से ये महिलाएँ पहले खटाई बनाती थी और बिचौलियों को कम दामों में बेचने पर मजबूर थी किन्तु प्रशिक्षण और संगठन से इन महिला उद्यमियों ने नई इबारत लिख डाली है। कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण अधिकतर गांव में कच्चे गिरे हुए आमों का उपयोग करके खटाई बनाने की प्रक्रिया लगभग ना के बराबर थी| परंतु स्वालंबन के सदस्यों ने इस महामारी के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग एवं अन्य सावधानियों को ध्यान में रखते हुए मूल्य संवर्धित उत्पादो के उत्पादन का कार्य जारी रखा| सदस्यों को पता है कि आम का मौसम दुबारा अगले वर्ष ही आएगा और इस समूह के अधिकतर उत्पाद आम पर ही आधारित हैं| आम के उत्पादों को खरीदने के लिए व्यापारी भी लॉकडाउन के चलते ना आ सके| ऐसी स्थिति में संस्थान द्वारा बनाए गए मोबाइल एप्स का इस्तेमाल सहायक होगा साथ ही साथ आपस में विभिन्न उद्यमियों को जोड़ने के लिए आधार बनेगा|
संस्थान इन उत्पादों के बाज़ारीकरण के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का सहारा ले रहा है। डा. मनीष मिश्रा, प्रधान वैज्ञानिक बताते हैं कि संस्थान ने युवा उद्यमियों के साथ मिलकर मैंगो बाबा, बागवान मित्र और सबटरापिकल नाम से एप विकसित किये हैं जो किसानों के उत्पादों को बाज़ार मुहैया करा रहे है। आने वाले समय में आम बागवान आत्म निर्भर भारत में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे।