अम्बिका और अरूणिका आम की ऐसी किस्में है कि "जी ललचायें रहा न जाएं " !


शैलेंद्र राजन
निदेशक
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ 226101


केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा विकसित आम की संकर किस्में अम्बिका और अरूणिका अपने सुंदर फलों के कारण सबका मन मोह लेती है| लाल रंग का फल होने के कारण बरबस सब का ध्यान उनकी तरफ चला जाता है| हर साल फल आने की ख़ासियत इन्हें एक साल छोड़कर फलने वाली आम की किस्मों से अधिक महत्वपूर्ण बनाती हैं। पिछली शताब्दी के अस्सी के दशक में संकरण द्वारा दोनों किस्में विकसित की गयीं| अम्बिका का वर्ष 2000 तथा अरूनिका 2005 लोकार्पण में किया गया। देखने में तो ये किस्में खूबसूरत हैं ही खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिकता से भरपूर। अरूनिका की मिठास और विटामिन ए के अतिरिक्त कई कैंसर रोधी तत्वों जैसे मंगीफेरिन और लयूपेओल  से भरपूर हैं। अरूणिका के फल टिकाऊ हैं और ऊपर से खराब हो जाने के बाद भी उनके अन्दर के स्वाद पर कोई खराब असर नहीं पड़ता है।


इन दोनों किस्मों को भारत के विभिन्न जलवाऊ में लगाने के बाद यह पाया गया कि इनको अधिकतर स्थानों पर सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। हर साल फल देने के कारण पौधों का आकार छोटा है और अरूणिका का आकार तो आम्रपाली जैसी बौनी किस्म से 40 प्रतिशत कम है। अरूणिका को विभिन्न जलवायु में भी अपनी खासियत प्रदर्शित करने का मौका मिला है। चाहे वो उत्तराखंड की आबो हवा हो या फिर उड़ीसा का समुद्र तटीय छेत्र के बाग। अंबिका किस्म गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित कई प्रदेशों में आकर्षक पूछो बच्चों में फल देती है|


आमतौर पर घर में छोटे से स्थान में भी शौक़ीन आम की बौनी किस्में लगाने के लिए इच्छुक हैं। अभी तक आम्रपाली का इसके लिए प्रयोग होता रहा है। परन्तु जब लोगों ने देखा कि अरूणिका के पौधे आम्रपाली से भी छोटे आकार के हैं तो इस किस्म में लोगों की रूचि बढ़ गयी। नियमित रूप से अधिक फलन ही इस किस्म के बौने आकार का रहस्य है।


आम्रपाली ने अम्बिका और अरूणिका दोनों के लिए ही माँ की भूमिका निभाई है। आम्रपाली के साथ वनराज के संयोग से अरूणिका का जन्म हुआ जबकि आम्रपाली और जर्नादन पसंद के संकरण से अम्बिका की उत्पत्ति हुई। जर्नादन पसन्द दक्षिण भारतीय किस्म है जबकि वनराज गुजरात की प्रसिद्ध किस्म है। ये दोनों ही पिता के तौर पर इस्तेमाल की गयी किस्में देखने में सुन्दर और लाल रंग वाली हैं परन्तु स्वाद में आम्रपाली से अच्छी नहीं हें| आम्रपाली को मातृ किस्म के रूप में प्रयोग करने के कारण अम्बिका और अरूणिका दानों में ही नियमित फलन के जीन्स आ गए। इन किस्मों को खूबसूरती पिता से और स्वाद एवं अन्य गुण माता से मिले| आम्रपाली में विटामिन ए अधिक मात्रा में है इसलिए अरूणिका में आम्रपाली से भी ज्यादा विटामिन ए मौजूद है। अम्बिका और अरूणिका दोनों ही किस्मों ने पूरे देश भर में विभिन्न प्रदर्शनियों में सबका मन मोह लिया। इतना ही नहीं अम्बिका ने 2018 और अरूणिका ने 2019 में आम महोत्सव में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी गुणों की सार्थकता सिद्ध की। समय के साथ यह किस में लोकप्रिय होती जा रही हैं और संस्थान में इनके पौधों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है| अंबिका एवं अरूणिका की हाई डेंसिटी (सघन बागवानी) के लिए भी उपयुक्त है| ये किस्में ज्यादा पुरानी नहीं हैं अतः आमतौर पर बाजारों पर देखने को नहीं मिलती| आने वाले वर्षों में अधिक क्षेत्रफल में इन किस्मों के पौधा लग जाने के बाद मार्केट में फल दिखने लगेंगे|


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण वंशावली

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा