कहानी करोना की
डा-शिव राम पाण्डेय
अब तो करौना, बना हरौना ,ईश्वर जान बचायें।
दिन में दूना,रात चौगुना, रोगी बढ़ते जायें।।
मगर सरकार सो रही।
अक्तूबर दो हजार उन्नीस में यह धरती पर आया।
और चीन के बुहान प्रांत में
लाखों लोग सफाया।।
मगर सरकार सो रही, मेरी सरकार सो रही।
इक प्रतिपक्षी नेता जब सरकार को तनिक चेताये।
अपने साहब झिड़क के बोले
भारत ने घबराये।।
करोना क्या कर लेगा?
दुनिया के घबराये देशों ने चीन से किनारा।
फिर भी भारत बना रहा
उसका व्यापार सहारा।।
बीजिंग से दिल्ली को जारी रही विमानन सेवा।
मुफ्त में हम आयात कर लिये
बीमारी जिउ लेवा।।
तभी भी न घबराये, करोना से टकराये।
माह फरवरी में अमरीका से हम ट्रम्प बुलाये।
और अहमदाबाद मुंबई में स्वागत करवाये।।
उस मेहमान को दिल्ली आगरा में हम खूब घुमाये।।
किये सामरिक सौदा, और
करोना मुफ्त में पाये।।
कि हम हैं कुशल व्यापारी
उड़ाने अभी भी जारी।।
मार्च माह में दुष्ट करोना पड़ गया जग पर भारी।
विश्व के एक सौ बारह देश में फ़ैली बीमारी।।
डब्लू एच ओ ने तब इस को नाम दिया महामारी।।
कि हम न झूठ बोलिया और
न कुफ्र तोलिया---
अब तो अपने साहब का भी माथा कुछ चकराया।
बीस मार्च को तब साहब ने
राष्ट्र से यह फ़रमाया।
कि भैया संभल जाव अब--
बाइस मार्च को एक दिवस का जनता कर्फ्यू होगा।
और करोना डर के मारे
दूर देश से होगा।।
भाई बहनों, मित्रों, तनिक भी आप नहीं घबरायें।
आठ बजे रात्रि में मिल कर
ताली और थाली बजायें।
उपाय अनोखा है यह---
महाराष्ट्र गुजरात औ दिल्ली पर जब संकट छाया।
दुष्ट करोना ने जब अपना विकट रूप दिखलाया।।
तब साहब ने चौदह दिन को भारत बन्द कराया।
प्रथम चरण की भारत बंदी से जन जन घबराया।।
कि सब कुछ बंद हो गया मानो देश सो गया---
तीस मार्च को साहब फिर से
रेडियो पर फरमाये।
लाक डाउन को देश में उन्निस दिन के लिए बढ़ाये।।
कहा अब बल्ब बुझाओ और फिर टार्च जलाओ
करोना तब भागेगा---
दो माह की अवधि लाकडाउन में गयी गुजारी।
लेकिन घटने के बजाय बढ़ती
ही गयी बीमारी।।
काम-धाम उद्योग सभी ठप जनमानस अकुलाया।
धीरे-धीरे भोजन का भी संकट था गहराया।।
कि हाहाकार मच गया--
जो थे घर से गये कमाने
याद गांव की आई।
क्योंकि बैठके कहां से खाते?
बन्द हो गई कमाई।।
लाखों श्रमिक चल पड़े पैदल या जो साधन पाये।
लिए परिजनों की यादें वह अपने गांव सिधाये।।
तो उन पर आफत आई। पुलिस ने किया पिटाई---
लाठी डण्डे पुलिस की खाये पड़े पांव में छाले।
कई दिनों तक उनके पेट में गये न एक निवाले।।
उनकी हालत की ख़बरें सुन व्यथित हुए घर वाले।
कि बबुआ कब घर अइबा--
तब कुछ दाता धर्मी सज्जन
लोग सामने आये।।
कैम्प लगाकर क्षुधितों को
भोजन जलपान कराए।।
और प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाये।।
धर्म प्रिय देश हमारा---
तब सरकार ने श्रमिकों के सहयोग में बढ़ाया।
राशन मुफ्त और उनके
खाते में धन पहुंचाया।।
खेल कोटे में जारी फेल
आडर सरकारी---
मंहगाई,बिन रोजगार के देश बड़ा अकुलाया।
बीस लाख करोड़ का पैकेज साहब ने फरमाया।।
कि राहत तब भी नहीं है--
आय के सारे श्रोत बंद थे,
चौपट देश की अर्थव्यवस्था।
प्रतिदिन बढ़ती नाफरमानी
यहभी थी जटिल समस्या।।
ऐसी हालत देख ,देश की अपने साहब का मन डोला।
दो माह के बाद कहीं तब जाकर भारत बंदी खोला।।
करोना अबभी कायम---
हफ्ते में दो दिन की बंदी
आज तलक है जारी।
नम्बर वन अब देश बना
रुक रही नहीं बीमारी।।
कि संकट बहुत बड़ा है---