नवीनतम पद्धतियों को अपनाकर करें गन्ने की खेती


प्रदेश सरकार गन्ना किसानों की उन्नति एवं सर्वांगीण विकास हेतु प्रतिबद्ध है। इसी क्रम में  गन्ना विभाग द्वारा विगत तीन वर्षों में गन्ना किसानों को आत्मनिर्भर बनाने तथा उन्हें गन्ना खेती की आधुनिकतम वैज्ञानिक तकनीक से जोड़कर उनकी आय दोगुनी करने के लिए कई ठोस कदम उठाये गये हैं। विभाग द्वारा किये गये प्रयासों से प्रदेश के लाखों गन्ना किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये आयुक्त, गन्ना एवं चीनी श्री संजय आर. भूसरेड्डी ने बताया कि गन्ना किसानों की खुशहाली के लिए उन्हें उन्नतिशील तकनीक से जोड़ने की आवश्यकता है। जिसके लिए विभाग द्वारा उन्नतषील त्रिस्तरीय बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत गन्ना कृषकों को स्वस्थ एवं रोग रहित 242 लाख कुन्टल उन्नतशील गन्ना बीज का वितरण कराया गया जिससे प्रदेश की औसत उपज 81.1 टन/हे. प्राप्त हुई है तथा कृषकों की आय में रु.1920 प्रति हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई है। इस कार्यक्रम के सफल संचालन से अस्वीकृत गन्ना प्रजाति जो कुल गन्ना क्षेत्रफल का 5ण्4 प्रतिशत थी, जो घटकर मात्र 0.5 प्रतिशत रह गयी है। भूमि उपचार कार्यक्रम के अन्तर्गत बायोफर्टीलाईजर एवं वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से गन्ने की उपज में वृद्धि के साथ फसल मेें लगने वाले कीट तथा बीमारियों में भी अत्यधिक कमी आयी तथा कृषकों की आय में भी वृद्धि हुई है।

 

श्री भूसरेड्डी ने यह भी बताया कि शरदकालीन गन्ना बुवाई के अन्तर्गत ट्रैंच विधि एवं सहफसली खेती कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेष के किसानों द्वारा लगभग      2 लाख हेक्टेयर में ट्रैंच विधि से बोये गन्ने के साथ आलू, लहसून, हरीमटर, मसूर आदि की सहःफसली खेती की गयी जिससे किसानों को गन्ना उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ एक अतिरिक्त फसल की प्राप्ति हुई तथा लगभग रु.113640 प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आय भी किसान को मिली। उन्होने यह भी बताया कि विभाग द्वारा गन्ने की फसल हेतु पेडी प्रबन्धन कार्यक्रम के माध्यम खेत की नमी सुरक्षित रहती है, फलस्वरूप गन्ने की सिंचाई मे बचत होती है तथा फसल मेें काला चिट्टा कीट भी नही लगता।

 

उन्होने यह भी बताया कि गन्ना विभाग द्वारा जल संचयन के दृष्टिगत गन्ने के खेतों में ड्रिप सिंचाई संयंत्र की स्थाना करायी जा रही है। इससे सिंचाई हेतु पानी की खपत में कमी आने के साथ ही सहःफसली खेती करने में गन्ना कृषकों को सुविधा हुई है, जिससे कृषकों की आय में वृद्धि हुई। विभाग द्वारा किये गये प्रयासों से विगत तीन वर्षो में ड्रिप सिंचाई से सिंचित क्षेत्रफल 600 हेक्टेयर से बढ़कर 17000 हेक्टेयर हो गया है। प्रदेश में 1.21 लाख मै.टन उर्वरक कृषकों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार वितरण कराया गया। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार गन्ने की फसल में उर्वरकोे के प्रयोग में लगभग 25ः तक की कमी आयेगी तथा उनकी आय में 4.3ः की वृद्धि हुई। इससे मानव स्वास्थ्य को भी लाभ होगा। 

 

गन्ना आयुक्त के यह भी बताया कि उन्नतिषील खेती के अन्तर्गत 10 लाख हेक्टेयर गन्ने में ट्रैंश मल्चिंग कराया गया है। इस विधि में सूखी पत्तियों को सड़ाकर खाद के रूप में उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति (आॅर्गेनिक कार्बन) में वृद्धि, होती है खर-पतवार एवं कीटों के प्रकोप में कमी आती है तथा इस विधि को अपनाने पर  सिंचाई संसाधनों में बचत के साथ ही कृषको की आय में रु.4500 प्रति हेक्टेयर की वृद्धि भी हुई है। उन्होने बताया कि गन्ना उत्पादन के साथ-साथ परम्परागत खेती भी उन्नतिषील कृषि का एक माध्यम है। विभाग द्वारा गन्ना कृषकों के मध्य क्षेत्र विशेष के अनुसार पशु पालन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है इससे किसानों की वैकल्पिक आय बढेगी एवं खेती हेतु कार्बनिक खाद की उपलब्धता बढ़ने से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होगी।

 

गन्ना विभाग द्वारा अनूठी पहल करते हुये ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गन्ने की बुवाई हेतु नर्सरी तैयार करने में महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण प्रदान करने की योजना लागू की गयी है। जिसके माध्यम से अब तक विभाग द्वारा लगभग 415 स्वयं सहायता समूहों की 4115 ग्रामीण महिला उद्यमियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।इस योजना उद्देश्य सिंगल बड और बड चिप के माध्यम से नवीन गन्ना किस्मों का आच्छादन बढ़ाना है। इस योजना से ग्रामीण महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी एवं प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को लगभग 20-25 हजार की अतिरिक्त आय होगी।

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