नवीन कृषि क्रान्ति- कितनी सच्चाई, कितनी भ्रांति
संसद ने कृषि से सम्बन्धित तीन महत्तवपूर्ण विधेयक पारित कर दिये हैं.वास्तव में ये विधेयक विगत ५ जून को लागू अध्यादेशों का स्थान लेंगें . जहाँ एक ओर सरकार इनको किसानों केहित में बता रही है वहीँ कुछ संगठन और विपक्षी दल इनका विरोध कर रहें हैं . यद्यपि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी २०१९ के अपने चुनावी घोषणापत् में ए पी म सी कानून में संशोधान करने की बात कही थी . अकाली दल जो अब विधेयकोँ के विरोध में है ने जून में लाये गये अध्यादेशों का समर्थन किया था.इससे ये भी पता चलता है कि विधेयकों का विरोध राजनीति से भी प्रेरित है. यदि विधेयकों के विषय में शंकाएं हैं तो उनका समाधान सरकार के साथ बैठ कर शांति पूर्वक चर्चा के द्वारा किया सकता है न कि किसानों में भ्रम फैला कर. आइये समझते हैं कि कृषि में एक नवीन कृषि क्रांति का सूत्रपात करने वाले इन विधेयकों के क्या प्रावधान हैं और किन पहलुओं पर विरोध है.
कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक,२०२०
किसानों को अपनी उपज की बिक्री की आजादी के लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार नहीं किया गया है बल्कि ये एक नयाकानून है और यहनिर्बाध व्यापार के लिए हैवर्तमान एपी एम सी एक्ट व्यवस्था में कई तरह के नियामक प्रतिबंधों के कारण देश के किसानों को अपने उत्पाद बेचने में काफी कठिनाई आती है। किसान केवल एग्रीकल्चर प्रोडूस मार्केट कमेटी (APMC) की मंडियों में ही अपनी फसल बेच सकते हैं.
अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति वाले बाजार क्षेत्र के बाहर किसानों पर उत्पाद बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं. अपने उत्पाद सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त क्रेताओं को ही बेचने की बाध्यता है.
इसके अतिरिक्त एक राज्य से दूसरे राज्य को ऐसे उत्पादों के व्यापार के रास्ते में भी कई तरह की बाधाएं हैं.
किसानों के सामने अब यह मजबूरी खत्म हो गई है. अब किसान को जहां भी उसकी फसल के ज्यादा दाम मिलेंगे, वहां जाकर अपनी फसल बेच सकता है.अब किसानों को कोई भी शुल्क अपनी ऊपज की बिक्री पर नहीं देना होगा.
इससे किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे और उन्हें अपने उत्पादों काउचित मूल्यमिल सकेगा. इससे अतिरिक्त उपज वाले क्षेत्रों में भी किसानों को अपने उत्पाद के अच्छे दाम मिल सकेंगे और साथ ही दूसरी ओर कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को भी ज्यादा कीमतें नहीं चुकानी पड़ेंगी.विधेयक में कृषि उत्पादों का सुगम कारोबार सुनिश्चित करने के लिए एक ई-प्लेटफॉर्म बनाए जाने का भी प्रस्ताव है.
इसके तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री के लिए कुछ भी कर, उपकर (सेस) या शुल्क नहीं लिया जा.एगा। इसके अलावा, किसानों के लिए एक अलग विवाद समाधान व्यवस्था होगी.
विधेयक का मूल उद्देश्य एपीएमसी बाजारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के अतिरिक्त अवसर मुहैया कराना है जिससे कि उन्हें प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में अपने उत्पादों की अच्छी कीमतें मिल सकें। यह एमएसपी परसरकारी खरीद की मौजूदा प्रणाली के पूरक के तौर पर काम करेगा .
यह निश्चित रूप से ‘एक देश, एक कृषि बाजार’ बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा और किसानों की आय में वृद्धिमें सहायक सिद्ध होगा.
किसानो के हितों को सुरक्षित रखते हुए, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कोबढ़ावा देने के लिए जो दूसरा विधेयक पारित किया गया है. इसका नाम है - ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा,विधेयक२०२०
विधेयककिसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रसंस्करणकर्ताओं (प्रोसेसर्स), एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा. इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम प्रायोजक पर हस्तांतिरत हो जाएगा और साथ ही किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर कृषि आगतउपलब्ध हो सकेंगे. इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्तहोगीऔर विपणन की लागत में कमी आएगी, उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा.
यह विधेयककिसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में खपत के लिए जरूरी आपूर्ति चेन तैयार करने में निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा। किसानो की उन्नत तकनीक और परामर्श तक पहुंच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें अपनी फसलों के लिए तैयार बाजार भी मिलेगा,
इस विधेयक के माध्यम से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अगर किसान को उसकी उपज केक्रयकी गारंटी मिल जाए तबकिसान अपने खेत में नया प्रयोग करके उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ा सकता है. इसमेंअनुबंध के तहत खरीद-बिक्री के उत्पादों पर राज्य सरकारों का कोई नियम-कानून लागू नहीं होगा और न ही किसी तरह का कोई देयहोगा.
अनुबंध में न्यूनतम कीमत पर फसल की खरीद-बिक्री का उल्लेख होगा. और अगर फसल बिक्री के समय फसल का मूल्य अधिक हो जाता है तो उस बढ़े हुए मूल्य में किसान का भी हिस्सा होगा.
अनुबंध में किसी भी तरह से किसान का कोई अहित नहीं होगा. किसान की भूमि पर पूरी तरह से किसान का ही अधिकार होगा.
कृषि पदार्थों के भण्डारण और विपणन को सुगम बनाने हेतु दशकों पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम की धाराओं में संशोधन किया गया है.
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन विधेयक
इसके द्वाराअनाज ,दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया जाएगा. इस व्यवस्था से निजी व्यापारी और निवेशक अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप के भय से मुक्त हो जाएंगे। किसान भी कृषि उत्पादों का इच्छानुसार भण्डारण और विपणन कर सकेंगे
उत्पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की स्वतंत्रतासे बड़े पैमाने परउत्पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में घरेलू औरविदेशी निवेश कोभीआकर्षित किया जा सकेगा। इससे कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउसेसमें निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी.
संशोधन मेंयह व्यवस्था कीगई हैकि युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी स्थितियों में, ऐसे कृषि खाद्य पदार्थों को विनियमित किया जा सकता है. यद्यपि , एक मूल्य श्रृंखला प्रतिभागी की स्थापित क्षमता और एक निर्यातक की निर्यात मांग को इस तरह की स्टॉक सीमासे छूट दी जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कृषि में निवेश हतोत्साहित न हो.घोषित संशोधन की मंशा किसानो और उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा करना है.इससे मूल्यों में भी स्थिरता लाने में मदद मिलेगी। यह भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण होने वाली कृषि उपज की बर्बादी को भी रोकेगाऔरखाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा
उपरोक्त विधेयक को लोकसभा ने पारित कर दिया है
आशंकाएं-
उपरोक्त सुधारों ने एक नवीन क्रृषि क्रांति की भूमिका तैयार कर दी है . परन्तु कतिपय विश्लेषक इस प्रकार की आशंकाएं भी व्यक्त कर रहें हैं कि कृषि के उन्मुक्त बाजारीकरण से कहीं सीमांत और छोटे किसान,बड़े व्यापारियों , एकाधिकारी पूंजीपतियों के शोषण के शिकार ना हो जाएँ . खाद्य पदार्थों प रस्टॉक सीमा समाप्त होने से व्यापारी कार्टेल, खाद्य पदार्थों का कृत्रिम अभाव पैदा करके महंगाई को बढ़ावा दे सकतें हैं . इनके निराकरण के लिए सरकार के निगरानी तंत्र को सजग रहना होगा .
जो किसान और व्यापारी इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं उनको लगता है कि ए पी एम सी मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीद की वर्तमान प्रणाली समाप्त हो जायेगीऔर वैकल्पिक व्यवस्था में इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के समान या अधिक कीमत अपनी उपज की मिल सके. परन्तु यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है कि स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने आश्वासन दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और ए पी एम सी मंडियों में सरकारी ख़रीद की वर्तमान व्यवस्था पहले की भांति चलती रहेगी. नई व्यवस्था किसानो को एक विकल्प देती है. बाजार में प्रतियोगीता बढ़ने से किसानों की सौदा करने की शक्ति बढ़ेगी. नई व्यवस्था से बिचौलियों की समाप्ति होगी.कतिपय राज्य सरकारों को डर है कि मंडी शुल्क से होने वाली आमदनी कम हो जायेगी इसलिये वो इन विधेयकों के विरोध में हैं . आज आवश्यकता इस बात की है कि दलगत स्वार्थों से ऊपर उठ कर किसानों के व्यापक हितों के बारें में विचार किया जाये न कि किसानों में भ्रम फैलाया जाये .मोदी सरकार ने किसानों के हित में अभी तक जो कार्य किये हैं उस ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ये आशा की जा सकती है कि नये विधेयकों से किसानों के हितों की अनदेखी नहीं होगी और इस विषय में जो शंकाएँ और भ्रांतियां हैं वे निर्मूल सिद्ध होंगी
इन विधेयकों को लागू करने हेतु राज्य सरकारों की सहमति और सहयोग भी अपेक्षित है. प्रतियोगी कृषि बाजार का भरपूर लाभ किसानों को मिले इसके लिए उनकी सौदा करने की शक्ति को बढ़ाना होगा. किसानों के स्वयं सहायता समूहों , सहकारी समितियों , और कृषि उत्पादक संगठनोंका विस्तार और उनकोमज़बूत बनाना होगा. यह भी ज़रूरी है कि हमारे किसान भाई भी जागरूक हों और नयी व्यवस्थाओं का लाभ उठाएं .वास्तव में सक्षम, समर्थ और आत्मनिर्भर किसान ही ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को सफल बना सकते हैं.कृषि में सुधार हेतु लाये गये विधेयक इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण सोपान हैं.