रोपाई से पूर्व पौधशाला में पौधों का अनुकूलन


 मुख्य खेत में रोपित करने के लिए पौधों को वातावरण के प्रति कठोर बनाना आवश्यक है। पौध रोपाई के बाद कम से कम मरे इसके लिए पौधशाला में पौधों को सहनशील बनाना आवश्यक है। इस क्रिया को अनुकूलन कहते हैं। अनुकूलन के उद्देश्य से पौध उखाड़ने के 4-7 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिये।


 नियंत्रित वातावरण (लोटनल/पाॅंली हाउस, ग्लास हाउस आदि) में उगाई गई पौध को उससे बाहर अर्ध छायादार स्थानों पर रखकर अनुकूलन करना चाहिए। उपरोक्त के साथ-साथ पौध का अनुकूलन करने से निम्नलिखित लाभ भी होते हैं-


* पौधों की जड़ों का उत्तम विकास होता है।
* खेत तैयार न होने की दशा में पौधों की बढ़वार रोकने में सहायक होता है। 
* पौधों में पानी की कमी को सहन करने की क्षमता का विकास होता है। 
* पौधों में कीट-रोग अवरोधिता का विकास होता है।
* दूर-दराज क्षेत्रों में पौधा भेजने में सुगमता रहती है। 


सावधानियाॅं


* पौधशाला के लिए बीज विश्वसनीय केन्द्रों से ही लें। 
* रोपाई से पूर्व पौध का अनुकूलन अवश्य करें। 
* पौध उखाड़ने के बाद जड़ वाले भाग में गीली मिट्टी का लेप लगायें ताकि जड़े सूखने न पायें।
* सही अवस्था की पौध ही लगाये। कम या अधिक अवस्था की पौध लगाने पर पैदावार पर कुप्रभाव पड़ता है। 
* पौध रोपण सदैव सायंकाल में करें। सुबह के समय पौध लगाने से पौधे अधिक संख्या में मरते हैं। 
* रोग एवं कीटों से ग्रसित पौध कदापि न लगायें क्योंकि इसका प्रभाव सीधे पैदावार पर पड़ता है। 
* यदि पौध पर पत्तियाॅं अधिक हों तो कुछ पत्तियाॅं तोड़कर पौध लगायें तथा यदि पौध की ऊॅंचाई अधिक हो तो पौधे के ऊपरी भाग की हल्की कटाई-छंटाई कर पौध लगायें।
* पौध निर्धारित/संस्तुत दूरी पर ही लगायें। 
* पौध लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें। 
* गर्मी एवं वर्षा में बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा जाड़ों में 40-45 दिन बाद पौध रोपाई योग्य हो जाती है।  रोपाई के समय पौध 10-15 सेमी ऊॅंची होनी चाहिये। 
* कीटनाशक-फफूॅंदनाशक दवायें बच्चों की पहुॅंच से दूर रखें। 
* तेज हवा चलने की स्थिति में छिड़काव न करें। 
* छिड़काव करते समय नाक व मुॅंह कपड़े से ढके तथा आँखों  पर चश्मा चढ़ाये।


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