गांधीवादी सिंद्धांत  आधारित टिकाऊ बागवानी को बढ़ावा

                                           


                                             शैलेंद्र राजन 
                                              निदेशक
                केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ 226101



गांधीवादी सिद्धांत जलवायु परिवर्तन की वर्तमान परिस्थितियों के कारण टिकाऊ बागवानी के लिए के लिए अति महत्वपूर्ण बन गए है। आईसीएआर-सीआईएसएच  प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए किसान-अनुकूल बागवानी प्रौद्योगिकियों पर शोध कर रहा है और आशातीत परिणाम भी मिल रहे है। गांधी दर्शन पर आधारित कई विकसित प्रौद्योगिकी किसानों तक पहुंचा दी गई है और भी उसे सफलतापूर्वक अपना रहे |


अधिसंख्य बागों में कीटनाशकों के अत्यधिक अविवेकशील प्रयोग आम आम के बागों की अधिकांश समस्याओं के लिए के लिए उत्तरदाई समझा जाता है । यह न केवल किसानों कि कम आय के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि उपभोक्ताओं और ग्रामीण समाज के लिए भी कम खतरनाक नहीं। परिणाम स्वरूप बागों पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति भयावह है| अधिसंख्य लाभकारी कीट लगभग नष्ट हो चुके हैं| कीटों की रोकथाम के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों के कारण कैंसर रोगियों की संख्या अधिक हो रही है| अस्पतालों में रोगियों की बढ़ती संख्या मलिहाबाद की आम पट्टी में कुछ वर्षों से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है| इस प्रकार अप्राकृतिक कीट प्रबंधन के कारण प्राकृतिक कीट प्रबंधन कारकों का ह्रास हो रहा है ।


प्रतिवर्ष नए विनाशकारी कीटों के संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रयोग किया गया अत्याधिक मात्रा में विषैला रसायन मिट्टी और भूजल में कीटनाशक के स्तरों को बढ़ा रहा है फिर भी कीटों का हमला रोकने में किसान असमर्थ है| किसानों के लिए आम की खेती का अस्तित्व एक मुख्य विषय है क्योंकि अधिकतर किसानों वर्ष भर में केवल एक बार मिलने वाली आय से वंचित होने के भय से कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार रहते हैं| कभी-कभी तो कीटनाशकों के छिड़काव की लागत फसल से मिलने वाली आय से भी कम होती है|


रसायनों को प्रतिस्थापित करने के लिए खेतों एवं प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है । जैविक अपशिष्ट के अनुचित प्रबंधन से लोगों को होने वाले नुकसान के साथ-साथ इसके प्रबंधन एवं पुनः उपयोग करने हेतु उपयोगी खाद उत्पाद के रूपांतरण के लिए संस्थान जागरूकता बढ़ाने के विशिष्ट प्रशिक्षण  भी दे रहा है। रासायनिक उर्वरक एवं रसायनों के के अनुचित प्रयोग से मृदा, जल, पौध, पशु एवं मानव जीवन के स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभाव के साथ-साथ विकल्प के रूप में जैविक खाद के उपयोग के बारे में हजारों किसानो को जागरूक किया गया है । छतों पर फलों एवं सब्जियों की खेती करके एवं रसोई अपशिष्ट को खाद बनाकर पर्यावरण संरक्षण और पोषण सुरक्षा प्रदान के बारे में भी विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है| इससे वातावरण स्वच्छता को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ ही साथ मूल्यवान कार्बनिक अपशिष्ट का सदुपयोग भी होगा|


संस्थान ने हजारों किसानों के साथ बागवानी फसलों के जैविक उत्पादन के गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित बागवानी को बढ़ावा दिया है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार के केला उत्पादक क्षेत्रों में केले में उकठा  रोग की महामारी के क्षेत्रों में संस्थान द्वारा कवकनाशी रसायनो के बिना समस्या का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया गया हैं। इस महामारी की रोकथाम रसायनों के द्वारा से संभव नहीं हो पाया था | आईसीएआर- फ्यूजीकौन्ट नामक सूक्ष्मजीवों पर आधारित तकनीक से पौधों के प्रतिरक्षण के द्वारा केले के पौधों को महामारी से बचाया जा सकता है । किसानों द्वारा इस तकनीक को अच्छी तरह से स्वीकार किया गया है क्योंकि वे कम प्रयत्न और बिना किसी रसायन के रोग से निजात पाने की सफलता प्राप्त कर ले रहे हैं।


गांधी सर्वोदय में विश्वास करते थे और इसलिए सभी का कल्याण उनकी सोच का आधार था; इसलिए समुदाय की स्थिरता के प्रति दृष्टिकोण 'मानव जीवन की बेहतरी' और 'सभी मानवीय जरूरतों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करने' पर जोर दिया गया है। संस्थान अनुसूचित जाति के किसानों को बागवानी तकनीकों को उपलब्ध कराने, प्रदर्शनों का संचालन करने, प्रशिक्षण प्रदान करने, एक्सपोज़र विज़िट और अच्छी गुणवत्ता वाले रोपण सामग्री द्वारा उनकी आजीविका में सुधार के लिए प्रयास कर रहा है। उन्हें न केवल अपने परिवार की आवश्यकता के लिए सब्जियों की खेती करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है और अधिशेष उपज बेचने से भी लाभ मिलता है। सब्जियों कई लाख पौधों को उपलब्ध कराया गया है ताकि उन्हें गुणवत्ता साधनों की समस्या का सामना न करना पड़े। समुदाय में न्यूट्री-गार्डन्स की स्थापना के द्वारा पारिवारिक पोषण सुरक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है।


रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के अनुप्रयोग द्वारा हितधारकों को मिट्टी, पानी, पौधों, जानवरों और मानव जीवन के स्वास्थ्य पर कीटनाशकों और उर्वरकों के हानिकारक प्रभावों के साथ-साथ एक विकल्प के रूप में जैविक खाद के उपयोग के बारे में जागरूक किया जा रहा है।


इस सप्ताह के दौरान, संस्थान के  वैज्ञानिकों ने अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत गोद लिए गए काकोरी ब्लॉक के नयाखेड़ा और दासदोई गाँवों में वृक्षारोपण और पौधे वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें 300 से अधिक स्थानीय अनुसूचित जाति के किसानों ने भाग लिया। मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता का योगदान, कृषि में गांधीवाद के दर्शन, फसलों के विविधीकरण, कीटों से विविधता और संरक्षण को भी संस्थान के अन्य वैज्ञानिकों द्वारा समझाया गया था।


गांवों में स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। स्थानीय लोगों और छात्रों को भोजन से पहले और बाद में अपने हाथों को साबुन से धोने, नाखूनों को साफ करने, शौचालयों का उपयोग करने और अपने घरों के आसपास के वातावरण को साफ करने और खरपतवारों को रोकने के उपायों के साथ-साथ कोरोना से बचाने के लिए भी मदद करें।


संस्थान के  वैज्ञानिकों ने अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत गोद लिए गए काकोरी ब्लॉक के नयाखेड़ा और दासदोई गाँवों में वृक्षारोपण और पौधे वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें 300 से अधिक स्थानीय अनुसूचित जाति के किसानों ने भाग लिया। मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता का योगदान, कृषि में गांधीवाद का दर्शन, फसलों के विविधीकरण, कीटों से विविधता और संरक्षण के बारे में भी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा ग्रामीणो को जानकारी दी गई।



                           


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