घर की चारदीवारी के अंदर भी बालक अब सुरक्षित नहीं है!

                                             
                            डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक 
                                     सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) घर की चारदीवारी के अंदर भी बच्चा अब सुरक्षित नहीं है:- 
 आज घर-घर में केबिल/डिश टी0वी0 हेड मास्टर की तरह लगे हंै। टी0वी0 की पहुँच अब बच्चों के पढ़ाई के कमरे तथा बेडरूम तक हो गयी है। प्रतिदिन टी0वी0 तथा सिनेमा के माध्यम से सेक्स, हिंसा, अपराध, लूटपाट, निराशा, अवसाद तथा तनाव से भरे कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं। बच्चे इन कार्यक्रमों से अपराध के रास्तों पर चलने की सीख ग्रहण करने के साथ ही आत्महत्या करने वाले समाचारों से आत्महत्या करने की भी प्रेरणा ले रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि एक घर में तलाक होता है तो इससे लगभग 1000 घर तलाक की प्रेरणा लेते हैं । इसी प्रकार यदि एक बच्चा आत्महत्या करता है तो इससे लगभग 1000 बच्चे आत्महत्या करने की प्रेरणा लेते हैं ।
(2) असंतुलित तथा उद्देश्यविहीन शिक्षा हमें विनाश की ओर ले जाती है:-
 आज संसार की भौतिक चमक-दमक से आकर्षित होकर बहुत से युवक बुरे रास्ते पर जा रहे हैं। गंदे सिनेमा के निर्माता धन की लालच में किशोर तथा युवा पीढ़ी को लक्ष्य करके बरबाद कर रहे हैं। एक कलयुगी बेटे ने जायदाद पाने की जल्दी में सात लाख की सुपारी देकर अपने बूढ़े माँ-बाप को ही मरवा दिया। हमारी यह पढ़ाई किस काम की है? यदि वह हमें भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षाओं का संतुलित ज्ञान न दें।    
(3) प्यार से भरे वातावरण का घरों में अभाव:-
 पहले संयुक्त परिवार मंे बालक को अगर अपने माँ-बाप से डाँट या मार भी मिलती थी तो उसको संभालने और समझाने के लिए परिवार में अन्य सदस्य उपस्थिति रहते थे, जिनकी गोद में आकर बच्चा अपने आपको सुरक्षित महसूस करता था। पुराने समय में घर में काम करने वाली आया या नौकरांे का अपना अलग ही महत्व होता था। उनको परिवार के एक सदस्य के रूप में ही मान्यता मिली हुई थी। संयुक्त परिवार में यदि बच्चा अपने माँ-बाप से किसी बात के लिए डाँट भी खाता था तो उसे परिवार के किसी सदस्य के द्वारा या घर के नौकर या आया के द्वारा समझा-बुझा लिया जाता था। इस कारण से बालक के मन में कुंठा की भावना उत्पन्न नहीं होती थी। 
(4) किशोरावस्था में बच्चों के मन को समझने की बहुत जरूरत है:-
 वर्तमान समय में संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवारों ने ले लिया है। अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए आपसी परामर्श के लिए समय नहीं है। माँ-बाप बच्चों की सोच को समझने का प्रयास नहीं करते जबकि किशोरावस्था में बच्चों को समझने की बहुत जरूरत होती है। इस उम्र में बच्चों में मानसिक, शारीरिक व हार्मोनल बदलाव होते हैं। बच्चों पर सामाजिक दबाव भी रहता है। इससे वे झुॅझलाते हैं, जो चीज उन्हें पसन्द नहीं उस पर प्रतिक्रिया भी करते हैं। वे खुद अपना निर्णय लेना चाहते हैं। माॅ-बाप बच्चे की क्षमता को समझे बिना उस पर अपना निर्णय थोपते हैं। इससे उन पर दबाव बढ़ता जाता है जो आगे चलकर दुखदायी रूख अख्तियार कर लेता है। आज बच्चों को इस तरह के अवसाद से बाहर निकालने के लिए उनकी अधिक से अधिक काउन्सिलिंग की जरूरत है।
(5) बालक की अभिरूचि के अनुसार ही कैरियर चुने:-
 बच्चों की बौद्धिक लब्धता (आई0क्यू0) के अनुरूप ही विषय चुनने में उनकी सहायता करनी चाहिए। माता-पिता को चाहिये कि वह बच्चे की आई0क्यू0 की जांच जरूर कर लें। यह जांच कुछ परीक्षण और सवालों के आधार पर मनोविज्ञानी करते हैं। अभिभावकों को सहर्ष सहमत होना चाहिए कि जिन विषयों में उनके बच्चों की अभिरूचि हो उसी में उसका दाखिला हो तथा बच्चे के फेल होने पर उसे उत्तीर्ण करने के लिए विद्यालय पर अनावश्यक दबाव न डाले। साथ ही कैरियर ऐसा हो जो हमें रोटी कमाने के साथ आध्यात्मिक संतुष्टि भी प्रदान करें। 
(6) परिवार व स्कूल प्रशासन का आपसी सहयोग जरूरी है:-
 बालक का उसकी अभिरूचि के अनुकूल विषयों में दाखिला होने से ही उसकी रूचि तथा उत्साह निरन्तर बढ़ता है। आज की सच्चाई यह है कि कुछ अभिभावक अपने बालक की अभिरूचि के प्रति उदासीन दृष्टिकोण अपनाकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति अपने बालक के माध्यम से करने का अत्यधिक उत्साह दिखाते हैं। वे स्कूल प्रशासन पर अपने इच्छित विषयों तथा कक्षा में बालक को दाखिल करने का हर प्रकार का उचित-अनुचित दबाव बनाते हैं। बच्चों के लिए यह आगे चलकर एक गम्भीर समस्या बन जाती है।
(7) बच्चे प्यार के भूखे होते हैं:- 
 बच्चों का मन समाज के दबावों से विकृत हो रहा है। बच्चों को सार्वजनिक रूप से बार-बार डांटने से वे हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। जिन बच्चों में उलझन, घबराहट, अनिद्रा और हीनता की भावना ज्यादा रहती है ऐसे बच्चों को परिवारजनों द्वारा प्यार से समझाने की जरूरत है।  
(8) समाज की सबसे उभरती समस्या:-
 बच्चों से परीक्षा तथा कैरियर को लेकर अधिक से अधिक आशाएं रखने तथा उन पर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनावश्यक दबाव डालने के कारण बच्चों में दिन-प्रतिदिन तनाव का स्तर बढ़ता जा रहा है। सेक्स तथा हिंसा से भरी अपराधिक फिल्में, नकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ाने वाले टी0वी0 सीरियल्स और घरेलू अशान्त वातावरण इस समस्या को और अधिक बढ़ा रहे हैं। इस कारण से बाल एवं युवा पीढ़ी में अपने जीवन के प्रति क्रूर व्यवहार विकसित हो रहा है।
(9) कामयाब व्यक्ति भी अपने जीवन में कभी नाकामयाब हुए थेः-   
 अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन 32 बार छोटे-बड़े चुनाव जीतने में नाकामयाब रहे थे। वह 33 वीं बार के प्रयास में कामयाब हुए और राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर असीन हुए। वह पूरे विश्व के सबसे लोकप्रिय अमरीका के राष्ट्रपति बने। इंग्लैण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल अपने स्कूली दिनों में पढ़ाई में अच्छे नहीं रहे। वह परीक्षा में फेल होने से कभी भी निराश नहीं होते थे और बाद में अपने आत्मविश्वास के बल पर वह इंग्लैण्ड के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने। उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। 
(10) मन के हारे हार है मन की जीते जीत:-
 एडिसन बल्ब का आविष्कार करने के दौरान 10,000 बार असफल हुए थे। इसके बावजूद भी एडिसन ने आशा नहीं छोड़ी उन्होंने एक और कोशिश की और इस बार वह बल्ब का आविष्कार करने में सफल हुए। महात्मा गांधी अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान थर्ड डिवीजन में हाई स्कूल परीक्षा पास हुए थे। महात्मा गांधी अपनी मेहनत, लगन एवं ईश्वर पर अटूट विश्वास के बलबूते जीवन में एक कामयाब व्यक्ति बने और अपने जनहित के कार्यो के कारण सदा-सदा के लिए अमर हो गये।
(11) असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है:- 
 उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सम्पूर्णानंद दसवीं की परीक्षा में तीन बार फेल हुए। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनके माता-पिता एवं परिवारजनों ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया। समाज सेवा एवं आशावादी दृष्टिकोण के बलबूते वह एक कामयाब एवं लोकप्रिय मुख्यमंत्री बने।
(12) प्राणायाम एवं प्रार्थना एक सकारात्मक सोच लाता हैः-
 स्वस्थ शरीर में स्वस्थ र्मिस्तष्क का वास होता है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। दिनचर्या की शुरूआत योग तथा प्रार्थना से शुरू करने से हमारा जीवन योगमय हो जाता है। हमें बच्चों को प्राणायाम, खेलकूद एवं व्यायाम के द्वारा निरोग, तरोताजा तथा चुस्त बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(13) एक दिन में पूरा जीवन जीने का संकल्प उभरे :-
 बच्चे रोजाना प्रातः उठते ही पहले घंटे में अपने को पूरे दिन के लिए तैयार करे। पहले घंटे में जो आप काम करेंगे उससे आपका दिमाग पूरे दिन के लिए तैयार होगा। 30 से 60 मिनट के दौरान प्रभु एवं उसकी सृष्टि की महिमा तथा अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोचे और दोहराये। संसार के अधिकांश सफल लोगों की आत्मकथा पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि वे अपने जीवन के प्रत्येक दिन की शुरूआत बड़े ही अच्छे ढंग से करके पूरा जीवन जीने का प्रयास करते थे।
(14) ईश्वर में विश्वास ही सभी शक्तियों का स्रोत है:-
 बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे अपना पूरा विश्वास सभी शक्तियों के स्रोत ईश्वर पर लायें। ईश्वर पर विश्वास करंे कि वह मुसीबत के समय सदैव हमारी मदद करता है। बच्चे स्वभाव से सरल, उदार तथा आध्यात्मिक होते हैं लेकिन आयु बढ़ने के साथ ही प्रायः अवगुणों की ओर आकर्षित होते हैं।
(15) अच्छे पारिवारिक वातावरण में अच्छे संस्कार ढलते हैं:- 
 बालक-पवित्र, दयालु एवं ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित गुणों को लेकर जन्म लेता है। यदि बाल्यावस्था से बच्चों के संस्कार तथा आचरण में इन गुणों को विकसित करने के स्थान पर धूमिल करने का प्रयास माता-पिता, स्कूल तथा समाज द्वारा किया जायेगा तो यह बालक की आध्यात्मिक मृत्यु के समान है। परिवार, स्कूल तथा समाज का वातावरण भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के विकास के अनुकूल बनायें । 


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