सत्य-अहिंसा और सत्याग्रह के पर्याय महात्मा गांधी


  
                                                                           
                                                 डा0 सत्येन्द्र कुमार सिंह
                               संयुक्त कृषि निदेशक, (शोध एवं मृदा सर्वेक्षण) कृषि भवन, लखनऊ
                               राष्ट्रीय निदेशक, धर्म भारती राष्ट्रीय शान्ति विद्या पीठ लखनऊ



 सत्य-अहिंसा-सत्याग्रह और महात्मा गाँधी पर्यायवाची है। ये तीनों शब्द उनके जीवन के पर्याय और आत्म शुद्धि के मंत्र है। सत्य, अहिंसा और सत्यागृह को अपने वैयक्तिक जीवन में सर्वप्रथम उन्होंने स्वयं शोध एवं अनुसंधान किया और पारदर्षिता के साथ आचरण में उतारने के उपरान्त ही सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए इन शब्दों को अपने जीवन का मूल मंत्र एवं आध्यात्मिक आधार बनाया। सत्य-अहिंसा एवं सत्याग्रह का उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अत्यन्त सफल प्रयोग किया और इसी के बल पर गाॅधी जी सन 1917 से 1947 तक कभारतीय राजनीति एवं स्वतंन्त्रता आन्दोलन में छाये रहे तथा अन्ततः भारत को राजनैतिक आजादी दिलायी। 1917 से 1947 तक के काल को भारतीय इतिहास में‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है। सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह गाँधी जी के आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन के सषक्त हथियार थे। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति की बुनियाद ही ‘सत्य एवं अहिंसा’ है और ये दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक है। उन्होंने सिद्ध किया कि सत्य और अहिंसा आधारित सत्याग्रह के मार्ग पर चलकर ही बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती हैं और इन्ही सिद्धान्तों पर चलकर उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजादी दिलाई। गाँधीजी के विचार में सत्य और अहिंसा तो दुनियाँ में उतने ही पुराने है जितने पर्वत। सत्य-अहिंसा की आधारित सत्याग्रह में जाल-साजी या किसी प्रकार के झूठ एवं अहिंसा के लिए कोई जगह नही है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी शोषण, अन्याय, रंगभेद नीति के विरुद्ध भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए सभी आन्दोलन सत्याग्रह के आधार पर ही चलाया और अन्ततः विजयी हुए।
 गाँधीजी के कुषल मार्गदर्षन एवं गतिषील तथा प्रबुद्ध नेतृत्व में, बिहार में प्रचलित तीन कठिया प्रथा के विरोध में चम्पारण आन्दोलन, अहमदाबाद मंे मिल मजदूरों के शोषण के खिलाफ मिल मजदूर आन्दोलन तथा किसानों के शोषण के विरुद्ध खेड़ा आन्दोलन ‘सत्याग्रह’ की बुनियाद पर ही चलाया गया। इन तीनों आन्दोलनों की सफलता से गाँधी जी भारत के सबसे जनप्रिय एवं निविवाद प्रबुद्ध नेता के रुप में स्थापित हुए और अगले तीन दषक तक स्वतन्त्रता आन्दोलन के ‘केन्द्र बिन्दु’ रहे। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के वे आदर्ष नेता थे और उनका व्यक्तित्व सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक रुपों से विभाजित न होकर एक दूसरे के पूरक है। गाँधीजी भारतीय चेतना के केन्द्र बिन्दु थे। यही नहीं गाँधीजी समस्त संसार एवं मानवता की भलाई के लिए सत्य-अहिंसा आधारित स्वंतन्त्रता की मांग करते थे।
 बापू कहते है ‘‘सत्य और अहिंसा का मार्ग’’ जितना सीधा है, उतना ही संकरा है, तलवार की धार पर चलने जैसा है। इसमें मनुष्य को निरन्तर सावधानी रखनी पड़ती है। सत्य और अहिंसा पालन के लिए सतत् जागृति अत्यन्त आवष्यक है। सत्य अहिंसा का स्वरूप बहुत ही व्यापक है। बापू मानते है कि सत्य के अनुपालन एवं सभी प्रकार की हिंसा के त्याग से ही धीरे-धीरे सत्यनारायण के दर्षन सम्भव होते है। उन्होंने बार-बार कहा है कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असम्भव है और सत्याग्रह तो सम्भव ही नहीं है। सत्य और अहिंसा एक सिक्के के दो पहलू है। गाँधी जी सत्य को साध्य तथा अहिंसा को साधन और सत्याग्रह को क्रिया विधि मानते थे।
 राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने हिन्दुस्तान में प्रथम बार सत्य-अहिंसा सत्याग्रह को ब्रिटिष शासन से मुक्ति की अवधारण को विकसित किया। उस समय सर्मथक राष्ट्रवादी लोग मानते थे कि ब्रिटिष शासन को उखाड़भारत के उग्रसुधारवादी विचार धारा के फेकने का एक मात्र तरीका सत्य अथवा असत्य आधारित हिसात्मक विरोध है। जबकि गाँधी जी का मत था कि असत्य एवं हिंसा तो ब्रितानी सरकार को अधिक करता से प्रतिक्रिया एवं दमन करने का अवसर प्रदान करेगी। इस तरह बापू ने किसी पर शारीरिक या मानसिक हिंसा न करने के सत्य आधारित नैतिक सिद्धान्त को राजनीतिक विचार बना लिया। यह विचार अद्भुत एवं नवोन्मेषी है।उनके अनुसार अहिंसा सत्य का दूसरा पहलू है जो असल में प्रेम ही है। गाँधी सत्य-अहिंसा-सत्याग्रह के पुजारी एवं जीवन-पुतले थे। वैयक्तिक जीवन के समग्र विकास के लिए गाँधीजी ने एकादश व्रत की धारणा को विकसित किया है जिसमें सत्य एवं अहिंसा प्रथम एवं द्वितीय व्रत है। उनके अनुसार सत्य एवं अहिंसा तथा सत्याग्रह एक जीवन दर्शन है। गाँधी जी, सत्याग्रह द्वारा व्यक्ति एवं समाज तथा आत्मा के विकास पर बल देते थे और उनका दृढ़ विश्वास था कि सत्याग्रह के द्वारा हमारी आत्मा मजबूत होती है उनके अनुसार सत्याग्रह अहिंसक प्रतिरोध से कहीं अधिक व्यापक है क्योंकि आध्यात्मिक एकता सर्वोच्च सत्य है जिसे केवल अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। सत्य एवं अहिंसा आत्मिक शक्ति का पर्याय है। सत्य-अहिंसा-सत्याग्रह एक जीवन दर्षन है। जिसके उपयोग घरेलू-पारिवारिक एवं सार्वजनिक स्तर पर किया जा सकता है।
                                1. सत्य
‘हरि’ ऊँ तत् सत्’ यानि वह परमात्मा ही सत्य है। सत्य, निर्भयता का दूसरा नाम है और सत्य, आत्मा का स्वभाव होता है। सत्यम-शिवम-सुंदरम अर्थात सत्य ही षिव है। सत्य ही सुन्दर है। और सत्य ही कल्याणकारी है। सत्य से अधिक कुछ भी सुन्दर नहीं है। हालांकि सत्य साधन नहीं है, यह स्वयं साध्य है, लेकिन सत्य के आश्रय से ही पथिक का रास्ता प्रषस्त होता है। सत्य से परे सब कुछ असहज, अस्पश्ट, अषुभ, कुरूप, डरावना और विकृत है। सत्य का त्याग जीवन की सबसे अनिश्टकारी और विपरीत राह है। सत्य को छोड़ देने वाला मानव पतन के रास्ते पर चल सकता है और महान संकट का भागी बनता है। असत्य विनाष का आमंत्रण है। इसलिए सभी को सत्य का पालन करना चाहिए। यही धर्म है। सत्य ही षिव है सत्य में षिव का वास है। जीवन को सत्य, षिव और सुंदर का संगम बना देना ही हमारा उद्देष्य होना चाहिए, क्योंकि इनका पृथक अस्तित्व है ही नहीं। सत्य को महामंत्र मानकर जीवन के सबसे कल्याणकारी और सुंदरतम अवसरों को पालने में ही बुद्धिमानी है। इन अवसरों को खो देना सबसे बड़ी भूल होगी। सत्य को संपूर्ण रूप से आत्मसात करने में ही हमारा कल्याण है। 
                                 2. अहिंसा
‘अहिंसा परमो धर्मः’ अर्थात अहिंसा ही सर्वश्रेश्ठ धर्म है। भारतीय संस्कृति की  बुनियाद ही अहिंसा है। सिर्फ मनुष्यों के प्रति ही नहीं, परन्तु मानवेत्तर प्राणियों और समग्र सृष्टि के प्रति प्रेम अहिंसा इसका स्वरूप है। अहिंसा यानी सबके प्रति निर्वाध प्रेम। शरीर, वचन और मन से प्राणिमात्र के प्रति प्रेम। अहिंसा यानी विष्वव्यापी प्रेम।
 जीवमात्र के प्रति करुणा, जीवमात्र के प्रति रागद्वेष का त्याग इसी का नाम है अहिंसा। अहिंसा का प्रकट रूप ही प्रेम है। बापू के अनुरूप अहिंसा जीवन का लक्ष्य सत्यप्राप्ति है। उसे प्राप्त करने का साधन अहिंसा है। जिस व्यक्ति के प्रति हमें अहिंसक प्रेमभाव न हो, उसके बारे में हमें सत्य भी पूरा समझ में नहीं आता। माता-पिता के प्रति हमें प्रेम होता है, इसलिए वे हमें सद्बुद्धि से सजा भी दें, तो उनका हम द्वेष नहीं करते। उसी प्रकार जो हमारा द्वेष है, उसके लिए भी हम अहिंसा भाव रखें, तो उसमें द्वेष प्रेरित विरोध हमें क्षुब्ध नहीं करता तथा ऐसे विरोधियों के प्रति भी हम समभाव रख सकते हैं। अपने जीवन में गांधीजी ने जीवन भर विरोधियों के प्रति ऐसा आचरण किया था और ऐसा करके के ब्रिटिषों का भी सद्भाव रख सके थे। इस प्रकार हमारी अहिंसा भावना जितनी ऊँची, उतना हमारा सत्य-दर्षन सूक्ष्म। इस तरह शुद्ध सत्य पाने के लिए अहिंसा अनिवार्य साधन है।
                              3. सत्याग्रह
 गाँधीजी ने अपने आश्रम का नाम भी ‘सत्याग्रहाश्रम’ रखा था। 1906 में दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह जब शुरू हुआ, तब उस आन्दोलन के लिए बापू ने नया शब्द ‘सत्याग्रह’ का इजाद किया। वैसे तो उसका शब्दार्थ है सत्य का आग्रह, परन्तु आज तो सत्याग्रह का पूरा शास्त्र है और दुनिया में ‘सत्याग्रह’ षब्द अत्यन्त प्रचलित एवं लोकप्रिय है।
 सत्य अत्यन्त दुश्कर है। सत्य इतना आसान नहीं है। सत्य के अनुपानल में अपनी जिन्दगी भी जोखिम में डालनी पड़ती है। ऐसे वीर सत्याग्रही दुनिया भर में, हर कौम में, हर देष में, हर समय पर हुए है, जिनमें सकुरात, ईसा मसीह, हसन-हुसैन और अनेक सन्त-महात्माओं के नाम है। पौराणिक रूप में देखें तो प्रहलाद इस संसार का प्रथम सत्याग्रही था, जिसने भगवान के नाम को अनेक मुसीबतें सहन करके भी नहीं छोड़ा था और अन्त में सत्य की ही विजय हुई थी और भगवान ने दर्षन दिए थे। बापू ने दक्षिण अफ्रीका और भारत में ऐसे ही ‘सत्याग्रह’ का आन्दोलन चलाया। भारत 1947 में इसी कारण स्वतंत्र हुआ और आज दक्षिण अफ्रीका भी लोकतांत्रिक देष बना है।
 संस्कृत में कहा गया है, ‘‘सत्यान्नारिस्त परो धर्मः।’’ सत्य के सिवा कोई अन्य धर्म है ही नहीं। मनुष्य के विचार, वाणी और आचरण में सत्य का होना, निहायत जरूरी है। ऐसा सत्य बिना निर्भयता के आता ही नहीं  है। बापू ने सत्याग्रही के चार लक्षण बताये हैं-संयम, स्वैच्छिक गरीबी, निर्भयता तथा  सत्य-सेवन। वर्तमान में अनेक प्रकार के सत्याग्रहों को इसी कसौटी पर कसना चाहिए। बापू खुद ऐसे सत्याग्रही थे और इसीलिए तीन गोलियाँ खाकर शहीद हो गये।


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