गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग के प्रकोप से बचाने हेतु प्रभावित क्षेत्रों में गोष्ठी कर कृषकों को करें जागरूक-मुख्य मंत्री श्री योगी आदित्यनाथ
प्रदेश के मा. मुख्य मंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा गन्ने में लग रहे लाल सड़न रोग की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने के निर्देश दिये जाने के क्रम में मा. गन्ना मंत्री, श्री सुरेश राणा द्वारा गन्ना आयुक्त कार्यालय के अधिकारियों, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक, उ.प्र. गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के निदेशक, परिक्षेत्र लखनऊ, देवीपाटन, फैजाबाद, गोरखपुर एवं देवरिया के उप गन्ना आयुक्तों के साथ परिक्षेत्र में लाल सड़न रोग से प्रभावित फसल एवं उसके उपचार की व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में गहन समीक्षा की गई। सम्बन्धित उप गन्ना आयुक्तों द्वारा बताया गया कि लाल सड़न रोग से मुख्यतः लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, अयोध्या, अम्बेडकर नगर, गोण्डा, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया एवं आजमगढ़ जिलें प्रभावित है।
इस सम्बन्ध में गन्ना आयुक्त द्वारा दिनांक 25.09.2020 को विस्तृत दिशा-निर्देश निर्गत कर निम्नानुसार कार्यवाही के निर्देश जारी किये गये है। जिन क्षेत्रों में गन्ने की फसल 20 प्रतिशत से अधिक प्रभावित है, को तुरन्त कटाई कर सम्बन्धित चीनी मिल या कोल्हू क्रेशर पर सप्लाई कर दें तथा खाली खेत के ठूंठों को जला दें और खेत की जुताई करने के उपरांत धान या अन्य कोई फसल उगाये, अगले कम से कम 01 वर्ष तक उस खेत में गन्ने की फसल दोबारा न लें तथा इसके स्थान पर धान-गेहूं का फसल चक्र एवं तिलहन फसलों को अपनाये।
ऐसी फसल जहां बीमारी का प्रभाव 20 प्रतिशत से कम है वहां रोगग्रस्त पौधों का पूरा क्लम्प उखाड़ कर जला दें तथा उस स्थान पर ब्लीचिंग पाउडर डालकर मिला दें। शेष खड़ी फसल में सिस्टमिक फंजीसाइड जैसे कार्बेन्डाजिम, थियोफिनेटमिथाइल या हेक्साटाप का प्रत्येक माह छिड़काव करें तथा जैव पेस्टीसाइड ट्राइकोडर्मा 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेअर की दर से खेत में उपयोग करें।
गन्ने की बुआई हेतु रोग-रोधी किस्मों का चयन, शुद्ध रोग-कीट रहित स्वस्थ फसल या प्रमाणित नर्सरी से बीज का चयन करें। बुआई से पूर्व बीज का 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम, थियोफिनेटमिथाइल या हाॅट वाटर ट्रीटमेन्ट विधि से उपचारित करें।
प्रभावित क्षेत्रों में किस्म को. 0238 के स्थान पर दूसरी किस्मों का चयन करें और किसी एक किस्म का क्षेत्रफल अधिकतम 25 प्रतिशत तक सीमित रखें। इस हेतु किस्मों को. 0118, को.शा. 13235, को.लख. 14201, को.शा. 8272, को.लख. 94184, को. 98014 आदि किस्मों का उपयोग करें। वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि लाल सड़न बीमारी ऐसी बीमारी है जिसे प्रबन्धन द्वारा ही प्रभावी तौर से रोका जा सकता है तथा गन्ना आयुक्त द्वारा निर्गत दिशा-निर्देश इस दिशा में उचित कदम है।
प्रभावित क्षेत्रों के उप गन्ना आयुक्तों द्वारा बताया गया कि लाल सड़न रोग के प्रभावी नियंत्रण के सम्बन्ध में गन्ना आयुक्त द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार उपायों को तेजी से लागू किया जा रहा है। लखनऊ परिक्षेत्र के प्रभावित क्षेत्रों में 1.50 लाख कि.ग्रा. ब्लीचिंग पाउडर, 58,000 कि.ग्रा. हेक्साटाप, 1.33 लाख लीटर ट्राइकोडर्मा तरल एवं 3.20 लाख कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा पाउडर किसानों को वितरित किया जा चुका है। देवरिया परिक्षेत्र में 10,160 कि.ग्रा. हेक्साटाप, 36,835 कि.ग्रा. ब्लीचिंग पाउडर, गोरखपुर परिक्षेत्र में 20,500 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा तथा 10,500 कि.ग्रा. ब्लीचिंग पाउडर, 30 कि.ग्रा. हेक्साटाप एवं 90 कि.ग्रा. कार्बेन्डाजिम का वितरण किया जा चुका है। देवीपाटन परिक्षेत्र में 85,825 ली. ट्राइकोडर्मा, 72,500 कि.ग्रा. ब्लीचिंग पाउडर, 13,067 कि.ग्रा. हेक्साटाप का वितरण किया जा चुका है तथा अयोध्या परिक्षेत्र में 15,083 ली. ट्राइकोडर्मा, 14,500 कि.ग्रा. ब्लीचिंग पाउडर, 2,150 कि.ग्रा. हेक्साटाप का वितरण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त गोष्ठियों, वाल पेन्टिंग एवं पम्पलेट आदि के माध्यम से भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है।
यह भी निर्देश जारी किये गये है कि आगामी पेराई सत्र 2021-22 से लाल सड़न से प्रभावित होने वाले खेतों में दोबारा गन्ना उगाने वाले किसानों का सर्वे एवं सट्टा नहीं किया जायेगा और इसकी आपूर्ति चीनी मिलों को नहीं करायी जायेगी।
मा. मंत्री द्वारा निर्देश दिये गये कि विभाग द्वारा रोग की रोकथाम के लिए जारी निर्देशों को समयबद्ध एवं प्रभावी तरीके से लागू किया जाये। किसानों को तकनीकी जानकारी एवं उनकी जागरूकता के लिए विभागीय अधिकारी एवं वैज्ञानिक जिला मुख्यालय स्तर पर तत्काल गोष्ठी सम्पन्न करें तथा बीज प्रतिस्थापन के लिए कार्यक्रम तैयार कर प्रभावित क्षेत्र में दूसरी किस्मों की बुआई हेतु पर्याप्त बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करायी जाये। फील्ड विजिट कर लागू किये जा रहे उपायों को भी देखा जाये, जिससे कार्यों की गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो।