समय के पाबंद थे वोरा जी

डॉ शिव राम पाण्डेय की कलम से! 



मोती लाल वोरा जी जैसे नेताओं का न रहना वाकई में राष्ट्रीय क्षति है। उनसे मेरी पहली मुलाकात तब हुई थी जबकि अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में वह शिक्षा मंत्री के रूप में पत्रकारों के बीच आये थे ।उसके बाद कांग्रेस के केंद्रीय हाई कमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर मध्य प्रदेश की कमान सौंप कर अर्जुनसिंह को पंजाब का राज्यपाल बना दिया था। 

बाद में उत्तर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता के चलते उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। उस समय मैं भी नवजीवन भोपाल से उत्तर प्रदेश आ गया था और लखनऊ में उप संपादक के रूप में नवजीवन में सेवा कर रहा था। उस दौर में तो मोबाइल फोन सेवा थी नहीं । उस दिन नवजीवन में रात्रिकालीन पाली में मैं ही सिफ्ट इंचार्ज था। सूचना ब्यूरो से रात में फोन आया कि वोरा जी का सबेरे दस बजे ओरई में कार्यक्रम है,कबरेज के लिए कोई रिपोर्टर भेज दीजिए। मैने कहा काफी देर हो गई है अब रिपोर्टर से बात नहीं हो सकती। सूचना अधिकारी ने मेरे घर का पता और फोन नंबर नोट कर लिया और कार्यक्रम के कबरेज के लिए मुझसे ही आग्रह किया । मेरे मना कर देने के बावजूद सबेरे चार बजे ही सूचना अधिकारी सभा नारायण चौबे जी ने पहले मेरे घर का फोन और फौरन ही कालबेल भी बजा दी ,रात दो बजे मैं घर लौटा था। दरवाजा खोला तो मुझसे अपरिचित चौबे जी मेरे सामने थे । मेरे कुछ बोलने से पहले उन्होंने ने परिचय देते हुए कहा , पाण्डेय जी चलिए तैयार होइए देर हो रही है , कोई बहाना बनाने अवसर भी नहीं दिया उन्होंने। उम्र में मुझसे बड़े थे चौबे जी।चाह कर भी मैं उनका आग्रह टाल नहीं पाया और चौबे जी ने मुझे उठा लिया। बिना नहाये धोये मैं चल पड़ा। मेरे घर से हम दोनों लोग गाड़ी लेकर सराय माली खां पहुंचे । वहां से वीरेंद्र सक्सेना जी को लेकर (तब वह दैनिक जागरण में थे ) हम लोग सूचना निदेशालय आये। वहां पर पता चला कि बोरा दुर्ग गये हुये थे, वहां से आये ही नहीं हैं, कार्यक्रम कैंसिल। फिर एक पत्रकार से सूचना मिली कि वोरा दुर्ग से दिल्ली चले आए हैं। रात में वहीं रुक गये। फिर किसी पत्रकार ने बताया कि नहीं, सुबह चार बजे वह नियमित मार्निंग वाक कर रहे थे, फिर सूचना विभाग के एक अधिकारी ने बात की पुष्टि करते हुए बताया कि महामहिम रात दो बजे आ तो गए थे मगर विश्राम करेंगे या ओरई जायेंगे कह नहीं सकता। इसी उहापोह में सात बजे सूचना मिली कि कैंसिल नहीं हुआ है ओरई जायेंगे। फिर चार गाड़ियों में हम लोगों का काफिला रवाना हुआ। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू होने की वजह से शासन की बागडोर वोरा जी के हाथों में थी। हम लोगों का काफिला रास्ते में सिर्फ एक ही जगह रुका। केवल चार पी मगर हम लोगों के पहुंचने से १५ मिनट पहले वोरा जी ओरई पहुंच चुके थे। हम लोगों को उम्मीद थी कि कार्यक्रम भले निरस्त भले नहीं हुआ है मगर चूंकि रात दो बजे लखनऊ लौटे हैं इसलिए देर तो होगी ही वरना हम लोग रास्ते में चाय भी नहीं पीते। वोरा जी ठीक १०बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए थे। वक्त के ऐसे पाबंद थे वोरा जी। उनका निधन न सिर्फ उनके परिवार और कांग्रेस के लिए अपूर्णीय क्षति है बल्कि भारतीय राजनीति और देश के लिए अपूर्णीय क्षति है। उस महान आत्मा को शत-शत नमन, विनम्र श्रद्धांजलि।


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