ठंड के मौसम में पशुओं का आहार प्रबंधन

डा. ए.के. सिंह  एंव  ’’डा. नरेन्द्र रघुवंशी  एंव ’’’एस.के. सिंह  



पशुपालक भाईयों ठंड के मौसम मे पशुओ की देखभाल में विशेष सावधानी बरतनी चाहिये क्योकि मौसम का सबसे पहले त्वचा पर प्रभाव पड़ता है। त्वचा पर उपस्थित रोम छिद्रो के द्वारा ठंड का प्रभाव केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है। केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है तो इसके कारण पाचन, प्रजनन एवं हारमोनो के सन्तुलन पर भी प्रभाव पड़ता है। इसमे पशुपालक भाई लापरवाही करेगे तो पशुओ के दुग्ध उत्पादन पर असर पड़ेगा एंव पशु भी बीमार पड़ सकते है और अगर एक बार पशु ठंड से पिड़ित हो जायेगा तो उसको सुधरने मे बहुत समय लगता है जीससे पशुओ को बहुत नुकसान उठाना पडता है। इस मौसम मे गााय/भैस एंव उनके नवजातो के साथ-साथ ढ़लती उमर के पौढ पशुओ पर भी काफी असर पडता है। इसके साथ ही साथ इस मौसम मे छोटे पशु भेड बकरियांे पर भी ठंड का असर पडता है अगर इनकी उचित देखभाल न की जाय तो भी बीमार पड जाते है और उनका वजन भी तेजी से नही बढता है। ठंड से खासकर भेड बकरी के नवजान बच्चो पर भी काफी असर पडता है। अगर ठंड के मौसम मे उनके खानपान एंव प्रबंधन पर ध्यान न दिया जाय तो नवजातो की मृत्युदर बढ जाती है, क्योकि सर्दी के मौसम मे अन्दर एंव बाहर के तापक्रम में काफी अन्तर होता है समान्यतः पशुओ के शरीर का तापकम 37-38 सेन्टीग्रेट होता है एंव बाहर का तापकम फरवरी तक 20-30 सेन्टीग्रेट तक रहता है। ऐसे मे पशुओं के शरीर से निरंतर ऊर्जा का ह्यस उष्मा के रुप मे होता रहता है। जीससे पशुओ को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है ऐसे में दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओ में दूध का उत्पादन कम हो जाता है। वृद्धिरत पशुओ की वृद्धि रूक जाती है। जीससे पशुपालको को काफी नूकसान उठाना पडता है। ऐसे में पशुओ के उचित प्रबन्ध के माध्यम से मौसम के कुप्रभाव को रोका जा सकता है। अचानक ठंड बढने से शरीर में ताप का सन्तुलन, पानी, कार्बन तत्वो का सन्तुलन, इलेक्ट्रोसाइट, हृदय की क्रिया, श्वसन प्रक्रिया ब्लड प्रेसर, पल्स रेट आदि सभी पर प्रभाव पड़ता है, जिससे पशु सुस्त रहता है या बीमार पड़ जाता है। ऐसे में पशुपालको को पशुओ की विशेष देख-रेख की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में ठंड के मौसम मे अन्य मौसम की अपेक्षा पशु की सम्पूर्ण आहार की आवश्यकता  का 20 प्रतिशत अधिक दाना देना चाहिये। जनवरी के मौसम मे काफी ठंड पडती है लेकिन फरवरी के महीने तक सावधान रहना पडता हैै। फरवरी के महीने तक पशुओ को अच्छी मात्रा मे पैष्टिक आहार खिलाना चाहिये जिसमें सभी पैष्टिक तत्व जैसे- कार्बोहाइडेट, प्रोटीन, वसा, जल, खनिज लवण, तथा विटामिन्स उचित मात्रा मे होना चाहिये। ये सभी पोषक तत्व हरे चारे जैसे- जाड़े में बरसीम, लुर्सन जई, में पाये जाते है। प्रोटीन एंव वसा की पूर्ति के लिये लगभग सभी खलिंया तथा अनाज दाने को पशु आहार मे प्रयोग करना चाहिये। विटामिन्स तो हरे चारे से मिल जाती है लेकिन खनिज के लिये खड़िया, गेहँू का चोकर, या बजार से ब्रान्डेड कम्पनी का खनिज तत्व प्रयोग करना चाहिये।  

ठंड से बचाव के लिये पशुओ के लिये आहार:- 

समान्यतः दुधारु पशु अपने शरीर भार का 2.0 -3.5 प्रतिशत तक चारा खाते हैै। दुधारु पशु 500 कि.ग्रा. शरीर भार के होते है इनको 10 कि.ग्रा.-17.50 कि.ग्रा. चारे दाने की आवश्यकता पडती है। चारे की मात्रा शुष्क भार पर निर्भर करती है। पशुओ को उसके शुष्क पदार्थ की पूर्ण आवश्यकता का 2/3 भाग मोटे चारे से तथा 1/3 भाग दाने से देना चाहिये।

-: दाना बनाने के लिये आवश्यक सामग्री :-

दाने के प्रकार

बच्चों के लिये

दुग्ध उत्पादन के लिये

गेहू@जौ@मक्का का दर्रा

40 किलो ग्राम 

40 किलो ग्राम 

कोई भी तेल की खली

40 किलो ग्राम 

40 किलो ग्राम 

दाल की चुन्नी

1 0 किलो ग्राम 

&

खनिज तत्व

3  किलो ग्राम 

2  किलो ग्राम 

ued

1  किलो ग्राम 

1  किलो ग्राम 

                    1. कार्बोहाइड्रेट - पशु आहार में शक्तिवर्धक पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट की भूमिका काफी अहम होती है। कार्बोहाइड्रेट से शरीर में काम करने की शक्ति एवं ऊर्जा मिलती है। कार्बोहाइड्रेट शरीर को ठंड से बचाव करता है, गरम रखता है एवं आंत के कार्यों को बढ़ाता है। गेहूँ का भूसा, धान का पुआल, ज्वार, बाजरा, मक्का की कड़वी एवं अनाज के दानों के रेशे में भरपूर कार्बोहाइड्रेट मिलता है। पूर्वी यू0पी0 में जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा के दानों का अधिक प्रयोग होता है। जिसका कि विकास एवं दुग्ध उत्पादन में काफी महत्व है। शर्करा के लिये गूड़, शीरा, गाजर, चुकन्दर आदि का प्रयोग किया जाता है जिसमें शर्करा पर्याप्त मात्रा में होती है। यह पशुओं में तुरन्त स्फूर्ति एवं शक्ति पैदा करती है।

2. प्रोटीन- टुटी फूटी कोशिकाओं की मरम्मत के अलावा नये ऊतकों के निर्माण के लिए यह आवश्यक है। यह शरीर में पाचक रस, हारमोन्स एवं एन्जाइम बनाता है तथा शरीर में शक्ति का अहसास कराता है। प्रोटीन मादा से निकले दूध, पाचक रसों, भ्रूण के विकास एवं दुग्ध उत्पादन के लिये भी अति आवश्यक है। यह अनाज, खलियों में तथा दलहनी हरे चारे लोबिया एवं बरसीम मे पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इन्हे आहार के माध्यम से देना पड़ता है। प्रोटीन से शरीर के तन्तओं की वृद्वि होती है एंव ठंड से बचाव करता है। दुग्ध एंव मांस उत्पादन के लिये जब ज्यादा प्रोटीन की आवश्यकता होती है तो बरसीम, लूर्सन, ग्वार, लोबिया आदि हरे चारे के रूप में एंव ज्वार, बाजरा, गेहूँ, मक्का को दाने के रूप में तथा चोकर, दाल, चुन्नी तथा मूँगफली, सरसों, तीसी आदि की खली खिलानी चाहिए। पशुओं को दुग्ध उत्पादन के लिये 15-16ः प्राच्य प्रोटीन वाला दाना तथा भेड़, बकरियों के वृद्धि एवं विकास के लिये भी 15-16ः प्राच्य प्रोटीन वाला दाना देना चाहिए।

3. वसा- यह शक्ति का अनिवार्य स्रोत है। इससे ऊर्जा और उष्मा मिलती है यह वृद्धि, विकास, स्वास्थ्य, त्वचा एवं प्रजनन के लिये अति आवश्यक है। यह सरसो, राई, तीसी, मूँगफली आदि की खलियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। पशुओं के आहार में इसकी अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। वसा पशुओं के आहार में उपस्थित विटामिन्स ।ए क्ए म् और के को घुलाता है। यह कार्बोहाइड्रेट से दो गुना अधिक गर्मी एवं शक्ति उत्पन्न करता है। वसा के अभाव में विटामिन्स का अवशोषण नहीं हो पाता है। वसा के अभाव में शरीर पतला हो जाता है। वृद्धि एवं विकास में रूकावट आ जाती है। वसा का अवशोषण नहीं होने से गोबर भूरा एवं चिकना हो जाता है जिसे स्टपाटोरिया कहते हैं।

4. खनिज लवण- यह शरीर में उपस्थित हड्डियों एवं मांसपेशियों को निरोग एवं मजबूत रखता है। शरीर को स्वस्थ, कार्यकुशल, वृद्धि एवं प्रजनन कार्यो को संतुलित रखने में आवश्यक होता है। ये खनिज लवण जैसे-कैल्सियम फाॅस्फोरस, लौह, आयोडिन, काॅपर, कोबाल्ट, सोडियम, पोटैशियम, मैगनेशियम और जिंक महत्वपूर्ण है। इसकी कमी से दुधारू पशुओं में मिल्क फीवर नामक बीमारी हो जाती है कैल्सियम एवं फाॅस्फोरस की कमी से पशुओं के वृद्धिरत बच्चों की हड्डियाँ कमजोर पड़ जाती है एवं टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। इस सब कमियों से बचने के लिये बड़े पशुओं को 50 ग्राम एवं छोटे पशुओं को 25 ग्राम/दिन अच्छे किस्म का बाजार में उपलब्ध खनिज लवण पशुओं को देना चाहिए। सोडियम की कमी को पुरा करने के लिये बड़े पशुओं को 25 ग्राम नमक एवं छोटे पशुओं को 10 ग्राम नमक /दिन देना चाहिए।  

5. विटामिन्स- विटामिन्स की कमी से पशुओं में रतौधी, बेरी-बेरी, शारीरिक दुर्बलता, विटामिन-ई की कमी से प्रजनन असफल रहता है पशु को गर्भ नहीं ठहरता है एवं बांझपन हो जाता है। विटामिन-डी की कमी से हड्डियाँ टेढ़ी एवं मुलायम हो जाती है। पशुओं को भरपूर मात्रा में हरा चारा खिलाये जाने से विटामिन की कमी पूरी हो जाती है। यह शरीर के लिये बहुत आवश्यक है इसे जीवन तत्व कहते हैं। प्रयोगों के द्वारा यह पाया गया है कि विटामिन्स के बिना शरीर निरोग एवं स्वस्थ नहीं रह सकता वास्तव में विटामिन कोई आहार नहीं है, लेकिन सभी जीवों में जीवन क्रियाओं को संतुलित तथा स्वाभाविक रूप में चलाने के लिये भोजन में इनकी आवश्यकता होती है। 

ठंड से बचाव के लिये पशुओ के आहार मे दाना मिश्रण के साथ प्रर्याप्त मात्रा मे खली खिलाना चाहिये। अगर पशुओ को ठंड मे 5.0 ली. दुध उत्तपादन के लिये 5.0 कि.ग्रा. भूसा  10 कि.ग्रा. बरसीम के साथ 2.0 कि.ग्रा. दाना मिश्रण दे रहे हो तो ठंड से बचाव के लिये 1.0 कि.ग्रा. दाना मिश्रण अतिरिक्त देना चाहिये। कई बार देखा गया है कि जिन पशुपालको के यहा प्रर्याप्त मात्रा मे हरा चारा होता है तो केवल पशुओ को हरा चारा खिला देते है जिससे कि पशुओ को अफरा एंव अपच जैसी बीमारी हो जाती है जैसे- इस मौसम मे बरसीम को ज्यादा खिला दिया जाय तो पशु के पेट मे पानी की मात्रा ज्यादा हो जाने पर पशु को दस्त होने लगती हैै।

नवजात बच्चो का सर्दी से बचाव:- सर्दियो मे नवजात की बहुत देखभाल की आवश्यकता होती है अगर इसमे लापरवाही बरती गयी तो डायरिया एंव निमोनिया का संक्रमण नवजात मे बहुत तेज फैलता है, जिससे बच्चो की मृत्यु संभावित है। ऐसी स्थिति मे बच्चो को सुबह शाम बोरी से ढक देना चाहिये। 

पशु ओ के बाड़े का प्रबंधन:- पशुओ को बाॅड़े में बाॅधने से पूर्व बाड़े की मरम्मत करा लेनी चाहिए खिड़की एवं दरवाजे का पल्ला ठीक करा लेना चाहिए क्योकि रात्रि में जब ठंड बढ़ेगी तो ठंडी हवाओं का प्रकोप होगा जिससे पशु प्रभावित होगें। बाड़े के फर्श में गढ्ढे वगैरह हो गये हो तों उसे समतल बना लेना चाहिए एवं बाॅडे़ का फर्श हमेशा ढालानयुक्त होना चाहिए क्योकि रात्रि में पशु जब मूत्र त्याग करेगें तो फर्श के ढालान से मूत्र नीचे की तरफ बह जायेगा जिससे पशुओं को ठंड नही लेगेगी। इसलिए इस मौसम में बाड़े के रखरखाव का पूरा ध्यान देना चाहिए। ठंड जैसे-जैसे बढ़ेगी तो फर्श पर गन्ने, धान का पुआल एवं गन्ने की खोई का झरावट से फर्श को ढकना चाहिए, विछावन के रुप मे चुल्हे कीराख को भी पेयोग किया जा सकता है। इसके अलावा पशुओ को बाधने से बाड़े मे 1-2 घंटे के लिये अलाव जलाकर बाड़े को गरम कर देना चाहिये इससे पशुओं को ठंड नहीं लगेगी। हो सके तो प्रतिदिन विछावन को धूप में सुखने के लिए डाल देना चाहिए एवं पुनः शाम को बाड़े में फैला देना चाहिए। हप्ते-दस दिन पर विछावन बदलते रहना चाहिए एवं पुराने विछावन को गोबर के घूरे पर गोबर से दबा देना चाहिए जिससे अच्छी खाद तैयार हो जायेगी।

ठंड के मौसम मेे पशुओं  की प्रमुख बीमारी:- ठंड के मौसम मे बड़े पशुओ मे हाइपोथर्मिया, नजला, आँख से पानी आना, बच्चो मे न्यूमोनिया एंव  डायरिया मुख्य रुप से होती है।

1. हाइपोथर्मिया:- ठंड के मौसम मेे पशुओं के श्रीर से थायराक्सिन हारमोन का अधिक स्राव होने लगता है जीसके कारण पशुओ के शरीर से ऊर्जा का हृास तेजी से होने लगता है और पशु को ठंड लग जाती है। प्रभावित पशु का कान, नाक, अंण्डकोष बर्फ के समान ठंडा हो जाता है एंव हृदय गति कम हो जाती है ओर पशु कापने लगता है अगर समय से इलाज न मिले तो पशु अचेत होकर मर जाता है। उपरोक्त लक्षण दिखे तो सबसे पहले अलाव जलाकर पशु को गरम करना चाहिये एंव साथ मे अजवाइन का धुआ भी देना चाहिये यह बेहद फायदेमंद होता है। दस दौरान पशु की दशा मे सुधार न हो तो देर नही करनी चाहिये नजदीक के पशुचिकित्सक से मिलकर इलाज करवाना चाहिये 

2. न्यूमोनिया:- ठंड लगने से पशु के आँख  एंव नाक से पानी गिरने लगता है एंव ज्वर हो जाता है तथा फेफडे मे संक्रमण के कारण पशुओ एंव उनके नवजात बच्चो को सांस लेने मे दिक्कत होने लगती है। फेफडे मे सूजन हो जाती है एंव फेफड़ा ठोस हो जाता है। गंभीर अवस्था मे पशु की मृत्यु हो जाती है। उपचार के तौर पर खैलते एक बाल्टी पानी मे तारपीन का तेल या टिंचर बेन्जीन को 30 मी.ली.डाले और उसके भाप को पशु के आगे सुघने के लिये रखे। अगर इससे पशु की दशा मे सुधार न हो तो देर नही करनी चाहिये नजदीक के पशुचिकित्सक से मिलकर इलाज करवाना चाहिये। 

3. डायरिया:- ठंड लगने के कारण पशु को दस्त होने लगती है, चारा दाना नही पचता है और लगातार दस्त बढती जाती है। जीससे पशु के शरीर मे पानी कम होने लगता है एंव पशु को कमजोरी महसूस होने लगती है और पशु लड़खड़ाकर गीर जाता है। बचाव मे सबसे पहले पशु के शरीर को गरम करने की व्यवस्था करनी चाहिये तत्पश्चात छोटे पशुओ को 25 ग्रा. खडिया 10 कथ्था एंव 10 सोठ एंव बड़े पशुओ को अजवाइन 25 ग्रा.+ कथ्था 25 ग्रा.+ सौफ 25 ग्रा. सबको बारीक पीसकर मिलाकर चावल के आधा किलो माड के साथ सुबह शांम दो बार देना चाहिये जब तक की पशु स्वस्थ न हो जाय। साथ ही पीने के लिये गरम पानी देना चाहिये

इस प्रकार पशुपालक भाई अपने पशुओं को ठंड में ध्यान देगें तो निश्चित रूप से वे अपने पशुओं से उचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं तथा साथ ही साथ पशुओं को अच्छे स्वास्थ्य के साथ उनको लम्बा उत्पादक जीवन भी मिल सकेगा एवं पशु स्वस्थ स्फूर्ति से भरपूर प्रसन्न रहेगा।



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