भारत की स्वास्थ्य सेवा नीति, महामारी के अलावा
भारत के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य और उनकी खुशहाली के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तक उनकी पहुंच, सामर्थ्य और जवाबदेही का होना आवश्यक है। श्रम उत्पादकता में सुधार और बीमारियों के आर्थिक बोझ को कम करके स्वास्थ्य सीधे तौर पर घरेलू आर्थिक विकास को प्रभावित करता है। बारो (1996) ने पाया कि जीवन प्रत्याशा 50 वर्ष से बढ़कर 70 वर्ष (40 प्रतिशत की वृद्धि) होने से आर्थिक वृद्धि दर प्रति वर्ष 1.4 प्रतिशत अंक बढ़ सकती है।
भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में, हालांकि कुछ सुधार देखने को मिले हैं, खराब स्वास्थ्य नतीजों ने नुकसान पहुंचाया है; कम पहुंच और उपयोग; बीमा के बिना मरीज या उसके परिवार द्वारा स्वास्थ्य सेवा प्रदाता पर किया गया खर्च; स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता में पक्षपात; स्वास्थ्य देखभाल के लिए कम बजट का आवंटन; स्वास्थ्य के लिए कम मानव संसाधन; बाजार की विफलता के उच्च स्तर द्वारा चिह्नित एक उद्योग में अनियमित निजी उद्यम; और स्वास्थ्य देखभाल की खराब गुणवत्ता (अध्याय 5, आर्थिक सर्वेक्षण, 2020-21). स्वास्थ्य देखभाल की आपूर्ति और मांग दोनों ही कारकों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
बुनियादी सुविधाओं और मानव संसाधन के सम्बन्ध में स्वास्थ्य क्षेत्र के आपूर्ति पक्ष को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने स्वास्थ्य सेवा की पहुंच में पक्षपात को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिए इसके बजट में पर्याप्त वृद्धि करने की आवश्यकता है। आयुष्मान भारत के अंतर्गत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) के साथ मिलकर एनएचएम स्वास्थ्य सेवाओं की लोगों तक समान पहुंच नहीं होने के अंतराल को पाट सकता है। वैश्विक स्वास्थ्य व्यय के क्रॉस-कंट्री डेटा से पता चलता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय के निम्न स्तर पर; सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में तेजी से वृद्धि, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता पर होने वाले खर्च को कम करती है। अनुमान है कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि कर उसे जीडीपी के 3 प्रतिशत तक ले जाने से 60 प्रतिशत के ओओपी व्यय को कम करके वर्तमान में लगभग 30 प्रतिशत पर ले जाया जा सकता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवा का अधिकांश हिस्सा निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान किया जाता है, वैसे तो, नीति निर्माताओं को इस ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है कि स्वास्थ्य देखभाल में जानकारी देने के मामले में पक्षपात न हो। असमान जानकारी से मुक्त बाजार में वस्तुओं और सेवाओं का अपर्याप्त वितरण होता है जिससे अनियमित निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र संभावित सर्वोत्कृष्ट स्तर से नीचे रह जाता है। इसलिए, सूचना के लाभ जो सूचना की असमानता को कम करने में मदद करते हैं, समग्र भलाई में वृद्धि करने में बहुत उपयोगी हो सकते हैं। जानकारी सम्बन्धी इस असमानता को दूर करने से कम प्रीमियम, बेहतर उत्पादों की पेशकश करने और देश में बीमा पैठ बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
महामारी के दौरान भारत में टेलीमेडिसिन की प्रभावशाली वृद्धि स्पष्ट है क्योंकि ईसंजीवनीओपीडी (एक मरीज-से-डॉक्टर के साथ टेली-परामर्श प्रणाली) ने अप्रैल 2020 में अपनी शुरूआत के बाद से लगभग दस लाख परामर्श दर्ज किए हैं। टेलीमेडिसिन परामर्श का सम्बन्ध किसी राज्य में इंटरनेट की पैठ से है, इंटरनेट तक अधिक पहुंच टेलीमेडिसिन के उपयोग को बढ़ाएगी और स्वास्थ्य सेवा के उपयोग में भौगोलिक असमानताओं को कम किया जा सकेगा।
कोविड-19 महामारी तबाही की एक और चेतावनी है जो संचारी रोग पैदा कर सकते हैं, लेकिन गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) द्वारा उत्पन्न जोखिम को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। दुनिया भर में होने वाली मौतों में 71 प्रतिशत मौतें एनसीडी से होती हैं और भारत में लगभग 65 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होती हैं। हांलाकि एनसीडी का आंशिक सम्बन्ध जीवन शैली विकल्पों से है, जिसे लोगों के व्यवहार में बदलाव लाकर उन्हें स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके नियंत्रित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य सेवा का भविष्य सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की हमारी क्षमता में निहित है। महामारी से होने वाले नुकसान के बावजूद भारत की स्वास्थ्य नीति को दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करना जारी रखना चाहिए। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में मांग और आपूर्ति दोनों बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। सबसे पहले, पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया टीमों का गठन करके संचारी रोग से प्रभावी तरीके से निपटना और जिला स्तर पर समर्पित नियंत्रण कक्ष स्थापित करना। दूसरा, भारत में आंशिक रूप से स्वस्थ जीवन शैली के बारे में जागरूकता अभियानों के माध्यम से एनसीडी के बढ़ते प्रसार को नियंत्रित करना है। तीसरा, पर्याप्त मानव संसाधन और उपकरणों के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना। चौथा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना और आयुष्मान भारत के पीएमजेएवाई और स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों का व्यापक प्रचार और उपयोग करना। छठा, अस्पतालों, चिकित्सकों और बीमा कंपनियों के लिए स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता की जानकारी देने के लिए एक मानकीकृत प्रणाली जरूरी है जो ऐसी सेवाओं के लिए न्यूनतम मानदंड तय कर सके। अंत में यह भी महत्वपूर्ण है कि ‘नीम-हकीमों’ को व्यवस्था से खत्म करने और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सूचना की असमानता से निपटने के लिए, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नियंत्रण और निगरानी को और अधिक शक्ति के साथ लाने की आवश्यकता है, जैसे कि एक स्वतंत्र खंडीय नियंत्रक (अध्याय 5)। आर्थिक सर्वेक्षण, 2020-21)।
अबिनाश दास
संयुक्त निदेशक
आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय