“आत्मनिर्भर भारत: लोकल के लिए वोकल” विषय पर ष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में “आत्मनिर्भर भारत: लोकल के लिए वोकल” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हो गया। समापन सत्र में संस्थान के निदेशक, डॉ. अश्विनी दत्त पाठक ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत लेखों से विकसित रोड-मैप से विभिन्न क्षेत्रों में स्वदेशी वस्तुओं के प्रति वोकल होकर देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता मिलने में विश्वास दर्शाया। प्रस्तुत विभिन्न वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए संगोष्ठी के सफल होने पर बधाई देते हुए डॉ. पाठक ने संगोष्ठी में प्रस्तुत विभिन्न विद्वजनों के आलेखों को एक पुस्तिका के रूप में संकलित व प्रकाशित करने का अनुरोध किया। डॉ. मनोज पटेरिया, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, भारत सरकार, नई दिल्ली ने स्वदेशी तकनीक द्वारा आर्थिक समृद्धि विषय पर बोलते हुए नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाकर एवं जमीनी स्तर के नवाचार के माध्यम तथा इसके औद्योगीकरण से आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकता है। गोपाल उपाध्याय, राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री, लोक भारती ने बीजामृत, जीवामृत, बहमात्र, अग्निमात्र आदि प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग द्वारा प्राकृतिक खेती से गुणवत्तायुक्त कृषि उत्पादों के उत्पादन से देश में आर्थिक, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होने से ही देश कृषि में आत्मनिर्भर बन सकेगा। प्रोफेसर मनोज अग्रवाल, विभागाघ्यक्ष, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने स्वदेशी तकनीकी ज्ञान को नवाचार के माध्यम से पहचान कर उसे तकनीकी रूप प्रदान करके देश को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने पर ज़ोर दिया। श्री एस.पी. सिंह, कार्यालय, पुलिस उपमहानिरीक्षक, ग्रुप केंद्र लखनऊ ने आत्मनिर्भर भारत हेतु सुरक्षा बलों के योगदान पर व्याख्यान देते हुए आंतरिक सुरक्षा को देश की प्रगति एवं उन्नति के मार्ग का प्रदर्शक बताया। डॉ॰ मोनिका अग्निहोत्री, मंडल रेल प्रबंधक, पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ ने कोविड के आपदाकाल में भी भारतीय रेलवे द्वारा खाद्यानों, दवाइयों एवं आवश्यक वस्तुओं के बाधारहित परिवहन द्वारा अपने विभाग के उल्लेखनीय योगदान का उल्लेख किया। डॉ॰ प्रबोध कुमार त्रिवेदी, वै.औ.अ.प.- केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ ने सदाबहार, अश्वगंधा, तुलसी, कालमेघ, जेरेनियम, मैंथा व नींबूघास आदि जैसी औषधीय फसलों की खेती की क़िस्मों एवं तकनीकी ज्ञान के प्रसार से देशवासियों के स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ किसानों की आय में भी कई गुना वृद्धि होने की चर्चा की। डॉ आलोक धावन, निदेशक, सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च, एसजीपीजीआई, लखनऊ ने कोरोना काल में विज्ञान प्रोद्योगिकी एवं नवाचार की भूमिका पर व्याख्यान देते कोरोना टेस्टिंग किट, पीपीई किट, वेंटिलेटर, सैनिटाइजर, औषधियों व वैक्सीन्स के निर्माण के साथ-साथ निर्यात द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर होने पर संतोष व्यक्त किया। डॉ. ए.पी. तिवारी, पूर्व अध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग, डॉ, शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालया, लखनऊ नें किसानों, प्रवासी श्रमिकों एवं युवाओं के विभिन्न क्षेत्रों में कौशल विकास प्रशिक्षण देकर रोजगार के अवसर सृजन हो सकेंगे। श्रीमती सीमा चोपड़ा, निदेशक (हिन्दी), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने प्रतिस्पर्धा के वैश्विक परिदृशय में हिन्दी भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए हिन्दी को वैज्ञानिक साहित्य की लिए भी समृद्ध भाषा बताया। डॉ. वाई.पी. सिंह, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने राजभाषा हिन्दी के उन्नयन में पारिभाषिक शब्दावली का योगदान पर चर्चा करते हुए बताया कि जब तक आईआईटी व आईआईएम की पढ़ाई तथा वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक संस्थानों में हिन्दी के माध्यम से कार्य होने पर ही देश आत्मनिर्भर हो पाएगा। श्री एस.के. सपरा, मुख्य परियोजना प्रबन्धक, उत्तर रेलवे ने भारतीय रेलवे के नए आयाम पर चर्चा करते हुए बताया कि भारतीय रेल 13,000 से अधिक रेलगाड़ियों तथा 7500 मालगाड़ियों के माध्यम से प्रतिदिन 2.3 करोड़ से अधिक यात्री यात्रा करते हैं तथा 30 लाख टन माल का दैनिक परिवहन करके रेल परिवहन में आत्मनिर्भर है। समापन सत्र में संगोष्ठी के आयोजन सचिव, डॉ. अजय कुमार साह, प्रधान वैज्ञानिक ने विभिन्न सत्रों में परिचर्चा के उपरांत मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला तथा बताया कि आत्मनिर्भर भारत में योगदान देने हेतु सभी सूचनाएँ हमारे कार्य क्षेत्र में सार्थकता प्रदान करेगा।