जिजीविषा

डा. आनन्द त्रिपाठी 
पूर्व कृषि निदेशक 


 जिजीविषा 

अजीब उदासी है 

रोग और शोक से भरी 

मृत्यु का लोमहर्षक तांडव,

किंकर्तव्यविमूढ़ और 

पथराती संवेदनाओं के बीच 

हवाओं में तैर रहा है 

मृत्यु का देवता। 

सभ्यता की शुरुआत से 

चलती आयी है ज़ंग 

मनुष्यता की 

अपने को सुरक्षित रखने की

मृत्यु से,

जीवन और मृत्यु के दो ध्रुवों के बीच 

जूझता रहा है अहर्निश। 

पेड़ों से उतर कर 

नदियों की घाटियों 

मैदानों और पर्वतों की उपत्यकाओं

महासागरों की उफनती

लहरों से मुठभेड़ 

स्मारक हैं ,

मनुष्य की जिजीविषा के ।

दुख,रोग,शोक,भय,मृत्यु 

निरंतर रही हैं चुनौतियां मनुष्य की,

इस निरंतर चलने वाले संघर्ष में 

कभी कभी दिखता है 

होता हुआ पराजित,

लेकिन अगले ही पल 

उठ खड़ा होता है 

अपनी राख के बीच से 

मृत्यु को चुनौती देता 

फ़ीनिक्स की तरह ।

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