गांव का ठांव
डा शिव राम पाण्डेय
गांव के ठांव को भैया कभी तुम भूल मत जाना।
हमारे पूर्वजों का था कभी यह ही ठिकाना।
हमारे गांव की माटी में यादें ,अपनी बसती हैं।
यहां के लोग निश्छल, निष्कपट, जीवन में मस्ती है।।
सभी के दिल में बहती है परस्पर प्रेम की धारा।
खेती ,बाग ,पोखर,ताल बस्ती नदी की धारा।।
कोई चाचा, कोई ताऊ, कोई आजी कोई बहना।
सभी ने पहन रखा है यहां ,सम्बन्ध का गहना।
सभी के दुःख, सुख पीड़ा में ,हर कोई संघाती है।
चर्चा लोक-संस्कृति, और लोरी नींद लाती है।
मकुनी,बेझरी,ठोकवा,लप्सी,प्रिय पकवान हैं गांव के।
रिश्ता भले एक घर से हो, पर मेहमान गांव के।
कजरी, चैता फगुआ,सावन की स्वर लहरी गांव में।
असली भारत अब बसता प्यारे अपने गांव में।
हंसी ठिठोली ,धींगामुश्ती गांवो की पहचान है।
सुर्र , कबड्डी , गिभ्भी, लखना खेल गांव की शान है।
तिथी मिती त्योहार पर्व सब अब भी गांव मनाते हैं।
बरगद, पीपल, नीम औ महुआ गांव में पूजे जाते हैं।
गाय भैंस की बहुलता, बकरी पाली जाय।
कहते उसके दूध से, भैया छत्तीस रोग नशाय।।
डिउहारे, काली माता, औ, शिव दुर्गा के धाम।
मिलजुल सब पूजा करैं, बनते-बिगड़े काम।।
सुख-दुख में सबके सभी,होते सदा सहाय।
जिससे मुश्किल कार्य भी, स्वयं सरल हो जाय।।
धर्म-कर्म का आज भी ,यहां बड़ा सम्मान।
बड़े -बुजुर्ग यहां देते हैं, धर्म का को ज्ञान।।