‘आर्या’ युवाओं को उद्यमी कृषक बनाने की पहल


भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गत माह आयोजित 22वीं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की क्षेत्रीय समिति क्षेत्र-4 में प्रौद्योगिकी के उन क्रांतिक अंतरों पर विचार-विमर्श किया गया जिन पर शोध केन्द्रित करना है। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड में पशुपालन, मत्स्य पालन, पुष्पों की खेती, बागवानी जैसे विषयों में किसानों को उद्यमी बनाने हेतु ग्रामीण युवाओं में जागरूकता लाने एवं उत्कृष्ट बनाने पर बल दिया गया जिससे कृषि भी एक टिकाऊ व लाभकारी व्यवसाय के रूप में उभर सके। दो दिवसीय बैठक में गहन विचार-विमर्श के पश्चात यह निष्कर्ष निकला कि समय के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड राज्यों में कृषि सतत उत्पादन देने हेतु कड़ा संघर्ष कर रही है। बीज बदलाव की कम दर, क्षेत्र में कम वर्षा, जलाशयों में गिरता जल स्तर, गन्ने जैसी नकदी फसल की घटती उत्पादकता, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की अपर्याप्त उपलब्धता, सीमित यंत्रीकरण, पशुओं की कमजोर नस्ल, दूध की कम उपलब्धता, प्रतिकूल जलवायु दशाओं के अनुकूल पौधों एवं जानवरों की अनुकूल प्रजातियॉं तथा कृषि क्षेत्र में सामाजिक पहलुओं की अपर्याप्त समझ इस क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं हैं। खाद्यान्नों की भण्डारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने से भी कृषकों को आर्थिक क्षति होती है। क्षेत्र में बकरियों की अच्छी संख्या को देखते हुए बिहार व उत्तर प्रदेश को बकरियों के मांस उत्पादन तथा झारखंड में सुअर के प्रजनन व मांस उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
कृषि विज्ञान केन्द्रों के सुदृढ़ीकरण पर जोर
डा. एस. अय्यप्पन, सचिव, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा तथा महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के सुदृढ़ीकरण एवं सुव्यवस्थितिकरण पर जोर दिया है। डा. अय्यप्पन ने कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए, 'कृषक प्रथम' परियोजना द्वारा अधिकांश कृषकों की समस्याओं के समाधान हेतु कृषक-वैज्ञानिक संपर्क बढ़ाने पर बल दिया। उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्रों की समीक्षा करते हुए उन्होंने वित्त विभाग के साथ कृषि विज्ञान केन्द्रों की बैठक करके, अपने कर्त्तव्यों के निर्वाहन में बाधक बनी समस्याओं को सुलझाने का निर्देश दिया। डा. अय्यप्पन ने राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को कृषि विज्ञान केन्द्र व अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजनाओं के लिए आवंटित धनराशि के उचित उपयोग पर बल दिया। कई कृषि विज्ञान केन्द्रों ने मृदा परीक्षण के पुराने उपकरणों को बदलने हेतु रिवाल्विंग कोष को प्रयोग करने का मुद्दा उठाया। कुछ राज्य सरकारों जैसे झारखंड ने कृषि विज्ञान केन्द्रों में भर्ती हेतु कुछ अपने दिशानिर्देश जारी किए हैं जिससे कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। डा. अय्यप्पन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा दिये गये दिशानिर्देशों का ही पालन करने की सलाह दी। उन्होंने प्रजातियों के पंजीकरण पर जोर देते हुए अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजनाओं के परियोजना समन्वयकों से इसके लक्ष्यों तथा प्रयासों की तिमाही समीक्षा तथा इसके सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की नई पहल
डा. अय्यप्पन ने मृदा स्वास्थ्य के मुद्दों पर ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण की आवश्यकता बताई। उन्होंने बताया कि विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों में मृदा, उर्वरता की स्थिति के मानचित्रीकरण हेतु राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा संयुक्त रूप से एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। देश में सूखे एवं अस्थिर मानसून की दशाओं को देखते हुए देश भर में राज्य सरकारों एवं कृषक समुदायों के लिए कृषि एवं मौसम की सलाह देने के लिए परिषद के सभी संस्थानों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों ने एक कार्य योजना बनाई है। उन्होंने बताया कि उद्यमिता विकास के लिए प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण पर अनुकूल शोध, प्रौद्योगिकी प्रबंधन, त्वरित वृद्धि एवं उच्च आर्थिक प्रभाव वाली नवोन्मेषी प्रौद्योगिकी हेतु शोध के लिए एक वाह्य वित्तपोषित 'राष्ट्रीय कृषि उद्यमिता परियोजना' प्रस्तावित है। कृषि में ग्रामीण युवाओं को आकर्षित करने तथा कृषि को लाभकारी उद्यम बनाने के लिए युवा केन्द्रितएक नई परियोजना 'अट्रेक्टिंग एण्ड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर (आर्या)' शीघ्र ही आरंभ की जायेगी।


 


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