अरहर की विशेष प्रजातियांः एक बार लगायें कई फसल पायें
किसान भाइयों, भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता है. इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती है. इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैं. दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती है. चना, मटर, मसूर, उर्द, मूग, राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैं.
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 - 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैं. हर पौधे में लगभग 5-6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता हो. जी हां, पेड़ जैसा अरहर का पेड़. अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता है. एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैं. इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैं. छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैं. अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता है. इसका दाना कुछ मोटा, बड़ा और चमकीला होता है. इसकी फलियां 2 - 3 बार तोड़ी जा सकती हैं. फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता है. यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती है. जुलाई-अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिए. फसल 6 महीने में तैयार हो जाती है. एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता है. गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता है. उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय - समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहीं. जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे -धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैं. एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती है. इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती है. अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता है. सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता है. इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती है. इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैं.
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से तंजानिया, आस्ट्रेलिया, म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता है. विदेशों से चना, मटर, उरद, मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैं. देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन है. मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहर, मूंग, चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती है.
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की है. साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैं. रांची, झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती है. विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगा. जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थी. फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थे. जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थी. नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैं. इनकी अधिकतम ऊंचाई 1.5 फीट ही है. जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती है. छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती है. पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया है. मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती है. एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगा. जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक है.
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगी, इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगी. फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता है. पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगा.इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगा. मुनाफा भी अच्छा होगा. किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकते. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा है. इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थी. पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही है. 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजना, कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा है.जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा. झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगा. अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगा.
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैं. उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती है. बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने 'आर एस अरहर 10' नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की है.
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थे. उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखा. अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगाया. पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआ. इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकला, इसके बाद दो किलो तक निकला. पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे-जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे-वैसे इसका उत्पादन बढ़ता है.
गाँव किसान
अरहर की विशेष प्रजातियां
अमरेन्द्र सहाय अमर
मो० दृ 9415545620
किसान भाइयों, भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता है. इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती है. इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैं. दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती है. चना, मटर, मसूर, उर्द, मूग, राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैं.
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 - 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैं. हर पौधे में लगभग 5-6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता हो. जी हां, पेड़ जैसा अरहर का पेड़. अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता है. एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैं. इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैं. छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैं. अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता है. इसका दाना कुछ मोटा, बड़ा और चमकीला होता है. इसकी फलियां 2 - 3 बार तोड़ी जा सकती हैं. फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता है. यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती है. जुलाई-अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिए. फसल 6 महीने में तैयार हो जाती है. एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता है. गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता है. उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय - समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहीं.
जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे -धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैं. एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती है. इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती है. अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता है. सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता है. इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती है. इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैं.
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से तंजानिया, आस्ट्रेलिया, म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता है. विदेशों से चना, मटर, उरद, मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैं. देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन है. मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहर, मूंग, चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती है.
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की है. साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैं. रांची, झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती है. विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगा. जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थी. फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थे. जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थी. नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैं. इनकी अधिकतम ऊंचाई 1.5 फीट ही है. जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती है. छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती है. पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया है. मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती है. एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगा. जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक है.
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगी, इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगी. फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता है. पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगा.इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगा. मुनाफा भी अच्छा होगा. किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकते. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा है. इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थी. पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही है. 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजना, कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा है.
जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा. झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगा. अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगा.
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैं. उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती है. बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने 'आर एस अरहर 10' नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की है.
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थे. उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखा. अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगाया. पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआ. इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकला, इसके बाद दो किलो तक निकला. पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे-जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे-वैसे इसका उत्पादन बढ़ता है.
एम एम 3 ध् 272 विनय खंड
गोमतीनगर, लखनऊ - 226010
गाँव किसान
अरहर की विशेष प्रजातियां
अमरेन्द्र सहाय अमर
मो० दृ 9415545620
किसान भाइयों, भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता है. इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती है. इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैं. दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती है. चना, मटर, मसूर, उर्द, मूग, राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैं.
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 - 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैं. हर पौधे में लगभग 5-6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता हो. जी हां, पेड़ जैसा अरहर का पेड़. अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता है. एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैं. इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैं. छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैं. अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता है. इसका दाना कुछ मोटा, बड़ा और चमकीला होता है. इसकी फलियां 2 - 3 बार तोड़ी जा सकती हैं. फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता है. यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती है. जुलाई-अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिए. फसल 6 महीने में तैयार हो जाती है. एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता है. गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता है. उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय - समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहीं.
जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे -धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैं. एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती है. इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती है. अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता है. सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता है. इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती है. इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैं.
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से तंजानिया, आस्ट्रेलिया, म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता है. विदेशों से चना, मटर, उरद, मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैं. देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन है. मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहर, मूंग, चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती है.
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की है. साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैं. रांची, झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती है. विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगा. जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थी. फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थे. जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थी. नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैं. इनकी अधिकतम ऊंचाई 1.5 फीट ही है. जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती है. छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती है. पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया है. मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती है. एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगा. जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक है.
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगी, इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगी. फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता है. पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगा.इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगा. मुनाफा भी अच्छा होगा. किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकते. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा है. इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थी. पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही है. 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजना, कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा है.
जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा. झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगा. अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगा.
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैं. उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती है. बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने 'आर एस अरहर 10' नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की है.
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थे. उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखा. अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगाया. पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआ. इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकला, इसके बाद दो किलो तक निकला. पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे-जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे-वैसे इसका उत्पादन बढ़ता है.
एम एम 3 ध् 272 विनय खंड
गोमतीनगर, लखनऊ - 226010
अमरेन्द्र सहाय अमर मो० . 9415545620
किसान भाइयोंए भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान हैण् दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता हैण् इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती हैण् इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैण् दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैंण् दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती हैण् चनाए मटरए मसूरए उर्दए मूगए राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैंण्
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 . 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैंण् हर पौधे में लगभग 5.6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता होण् जी हांए पेड़ जैसा अरहर का पेड़ण् अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता हैण् एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैंण् इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैंण् छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैंण् अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता हैण् इसका दाना कुछ मोटाए बड़ा और चमकीला होता हैण् इसकी फलियां 2 . 3 बार तोड़ी जा सकती हैंण् फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता हैण् यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती हैण् जुलाई.अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिएण् पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिएण् फसल 6 महीने में तैयार हो जाती हैण् एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता हैण् गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता हैण् उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय . समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहींण् जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे .धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैंण् एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती हैण् इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती हैण् अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैंण् जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता हैण् सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता हैण् इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती हैण् इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैंण्
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता हैण् इसमें मुख्य रूप से तंजानियाए आस्ट्रेलियाए म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता हैण् विदेशों से चनाए मटरए उरदए मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैंण् देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन हैण् मध्य प्रदेशए कर्नाटकए राजस्थानए उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहरए मूंगए चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती हैण्
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की हैण् साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैंण् रांचीए झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती हैण् विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगाण् जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगाण् अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थीण् फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थेण् जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थीण् नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैंण् इनकी अधिकतम ऊंचाई 1ण्5 फीट ही हैण् जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती हैण् छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती हैण् पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया हैण् मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती हैण् एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगाण् जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक हैण्
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगीए इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगीण् फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता हैण् पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगाण्इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगाण् मुनाफा भी अच्छा होगाण् किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकतेण् बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा हैण् इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थीण् पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही हैण् 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजनाए कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा हैण्जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगाण् झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगाण् अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगाण्
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैंण् उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती हैण् बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण.पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने ष्आर एस अरहर 10ष् नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की हैण्
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थेण् उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखाण् अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगायाण् पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआण् इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकलाए इसके बाद दो किलो तक निकलाण् पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे.जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे.वैसे इसका उत्पादन बढ़ता हैण् एम एम 3ध्272 विनय खंड गोमतीनगरए लखनऊ.226010
गाँव किसान
अरहर की विशेष प्रजातियां
अमरेन्द्र सहाय अमर
मो० दृ 9415545620
किसान भाइयोंए भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान हैण् दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता हैण् इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती हैण् इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैण् दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैंण् दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती हैण् चनाए मटरए मसूरए उर्दए मूगए राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैंण्
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 . 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैंण् हर पौधे में लगभग 5.6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता होण् जी हांए पेड़ जैसा अरहर का पेड़ण् अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता हैण् एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैंण् इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैंण् छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैंण् अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता हैण् इसका दाना कुछ मोटाए बड़ा और चमकीला होता हैण् इसकी फलियां 2 . 3 बार तोड़ी जा सकती हैंण् फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता हैण् यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती हैण् जुलाई.अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिएण् पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिएण् फसल 6 महीने में तैयार हो जाती हैण् एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता हैण् गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता हैण् उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय . समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहींण्
जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे .धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैंण् एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती हैण् इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती हैण् अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैंण् जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता हैण् सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता हैण् इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती हैण् इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैंण्
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता हैण् इसमें मुख्य रूप से तंजानियाए आस्ट्रेलियाए म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता हैण् विदेशों से चनाए मटरए उरदए मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैंण् देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन हैण् मध्य प्रदेशए कर्नाटकए राजस्थानए उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहरए मूंगए चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती हैण्
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की हैण् साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैंण् रांचीए झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती हैण् विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगाण् जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगाण् अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थीण् फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थेण् जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थीण् नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैंण् इनकी अधिकतम ऊंचाई 1ण्5 फीट ही हैण् जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती हैण् छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती हैण् पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया हैण् मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती हैण् एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगाण् जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक हैण्
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगीए इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगीण् फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता हैण् पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगाण्इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगाण् मुनाफा भी अच्छा होगाण् किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकतेण् बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा हैण् इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थीण् पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही हैण् 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजनाए कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा हैण्
जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगाण् झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगाण् अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगाण्
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैंण् उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती हैण् बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण.पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने ष्आर एस अरहर 10ष् नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की हैण्
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थेण् उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखाण् अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगायाण् पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआण् इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकलाए इसके बाद दो किलो तक निकलाण् पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे.जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे.वैसे इसका उत्पादन बढ़ता हैण्
एम एम 3 ध् 272 विनय खंड
गोमतीनगरए लखनऊ . 226010
गाँव किसान
अरहर की विशेष प्रजातियां
अमरेन्द्र सहाय अमर
मो० दृ 9415545620
किसान भाइयोंए भारतीय कृषि में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान हैण् दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद प्रदान करती हैं जिससे भूमि का कटाव रुकता हैण् इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का विशेष गुण होने के कारण भूमि की उर्वरता बढ़ती हैण् इसकी जड़ प्रणाली मूसलाधार होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैण् दलहनी अनाजों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस के अलावा दूसरे खनिज लवण भी पाए जाते हैंण् दलहनी फसलों की खेती सीमान्त और कम उपजाऊ भूमि में भी की जा सकती हैण् चनाए मटरए मसूरए उर्दए मूगए राजमा आदि दलहनी फसले मुख्य रूप से खरीफ और रबी मौसम में की जाती हैंण्
अरहर का पेड़
आमतौर पर अरहर के लगभग 4 . 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैंण् हर पौधे में लगभग 5.6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता होण् जी हांए पेड़ जैसा अरहर का पेड़ण् अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता हैण् एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैंण् इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैंण् छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैंण् अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता हैण् इसका दाना कुछ मोटाए बड़ा और चमकीला होता हैण् इसकी फलियां 2 . 3 बार तोड़ी जा सकती हैंण् फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता हैण् यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती हैण् जुलाई.अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिएण् पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिएण् फसल 6 महीने में तैयार हो जाती हैण् एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता हैण् गर्मी तेज होने पर यह पौधा सूखने लगता हैण् उस वक्त इसके तने को जमीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय . समय पर एक दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहींण्
जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे .धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैंण् एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती हैण् इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत पड़ती हैण् अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतरू किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैंण् जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं इस अरहर का इस्तेमाल सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता हैण् सब्जी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता हैण् इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती हैण् इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैंण्
भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के अनुसार भारत मे दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से दालों का आयात किया जाता हैण् इसमें मुख्य रूप से तंजानियाए आस्ट्रेलियाए म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता हैण् विदेशों से चनाए मटरए उरदए मूंग और अरहर दालें मंगाई जाती हैंण् देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग लगभग 220 लाख टन हैण् मध्य प्रदेशए कर्नाटकए राजस्थानए उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहरए मूंगए चना समेत कई दलहनी फसलों की खेती की जाती हैण्
एक साल में तीन फसल
एक अन्य समाचार के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत प्रजाति विकसित की हैण् साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैंण् रांचीए झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती हैण् विश्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगाण् जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगाण् अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थीण् फसल तैयार होने में कम से कम 240 दिन लगते थेण् जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थीण् नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैंण् इनकी अधिकतम ऊंचाई 1ण्5 फीट ही हैण् जबकि मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती हैण् छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती हैण् पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया हैण् मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद लगती हैण् एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगाण् जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक हैण्
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगीए इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगीण् फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता हैण् पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगाण्इस प्रकार अब भविष्य में अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगाण् मुनाफा भी अच्छा होगाण् किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकतेण् बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा हैण् इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थीण् पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही हैण् 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजनाए कानपुर ने विश्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ था जो अब रंग ला रहा हैण्
जल्द ही इस किस्म को आम किसानों को उपलब्ध कराया जाएगाण् झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगाण् अब अरहर खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा मिलेगाण्
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक 56 वर्षीय किसान राजेन्द्र सिंह भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैंण् उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती हैण् बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण.पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने ष्आर एस अरहर 10ष् नाम की एक देसी अरहर की प्रजाति विकसित की हैण्
राजेन्द्र सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थेण् उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखाण् अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगायाण् पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआण् इस प्रजाति के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकलाए इसके बाद दो किलो तक निकलाण् पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे.जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे.वैसे इसका उत्पादन बढ़ता हैण्
एम एम 3 ध् 272 विनय खंड
गोमतीनगरए लखनऊ . 226010