धान की खेती,फसल सुरक्षा के उपाय

नील हरित शैवाल का प्रयोग करने से नाइट्रोजन की मात्रा में लगभग 20-25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयरकी दर से कमी कर सकते है नील हरित शैवाल के प्रयोग के लिए 10-15 कि.ग्रा. टीका (मृदाआधारित) रोपाई के एक सप्ताह के बाद खड़े पानी में
प्रति हैक्टेयर की दर से बिखेर दिया जाता है। शैवाल का प्रयोग कम से कम तीन साल तक लगातार किया जाना चाहिए। इससे अच्छे परिणाम प्राप्त होते है। मृदा आधारित टीका जिसमें शैवाल के बीजाणु होते है, 10 रूपये प्रति कि.ग्रा. की दर से खरीद सकते है। अगर नील हरित शैवाल का प्रयोग कर रहे हैं, तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में पानी सूखने नहीं पाए अन्यथा शैवाल जमीन में चिपक जाते हैं और उनकी नाइट्रोजन एकत्रीकरण की क्षमता में कमी जा जाती है।
सिंचाई और जल प्रबंधन


धान (चावल) की फसल के लिए पानी नितांत आवश्यक है परंतु फसल में अधिक पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है। रोपाई के 2-3 सप्ताह तक 5-6 से.मी. पानी बराबर खेत में रखना चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार खेत में पानी भरा रहना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि फुटाव से लेकर दाने भरने तक खेत में नमी की कमी न होने पाये तथा भूमि में दरार न पड़ने पाए, अन्यथा पैदावार में भारी कमी हो सकती है।
निराई, गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
धान (चावल) के खरपतवार नष्ट करने के लिए खुरपी यापैडीवीडर का प्रयोग किया जा सकता है।
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं
का प्रयोग करना चाहिए। धान (चावल) के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ शाकनाशियो का उल्लेख सारणी में किया गया है।
शाकनाशियों के प्रयोग करने की विधि
1. खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।
2. रोपाई वाले धान (चावल) में खरपतवारनाशी रसायनों की
आवश्यक मात्रा को 60 कि.ग्रा. सूखी रेत में अच्छी तरह मिलाकर रोपाई के 2-3 दिन के बाद 4-5 से.मी. पानी में समान रूप से बिखेर देना चाहिए।
सावधानियाँ
1. प्रत्येक खरपतवारनाशी रसायन के उपयोग से पहले डिब्बे
पर लिखे गए निर्देशों तथा उसके साथ दिए गए पर्चे को ध्यानपूर्वक पढ़े तथा उसमें बताए गए तरीके का विधिवत पालन करें।
2. शाकनाशी रसायनों की पर्याप्त मात्रा का उचित समय पर
छिड़काव करें।
3. पानी का उचित मात्रा में प्रयोग करें।
4. शाकनाशी और पानी के घोल को छानकर ही स्प्रे मशीन में
भरना चाहिए।
5. शाकनाशी का पूरे खेत में समान रूप से छिड़काव करें।
6. छिड़काव करते समय मौसम साफ होना चाहिए तथा हवा की
गति तेज नही होनी चाहिए।
7. छिड़काव के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम
(1) ब्लास्ट या झुलसा रोग -
यह रोग फफूंद से फैलता है। पौधे के सभी भाग इस बीमारी द्वारा प्रभावित होते है। प्रारम्भिक अवस्था में यह रोग पत्तियों पर धब्बे के रूप में दिखाई देता है। इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के तथा बीच वाला भाग राख के रंग का होता है। रोग के तेजी से आक्रमण होने पर बाली का आधार से मुड़कर लटक जाना। फलतः दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है।
नियत्रंण-
(1) उपचारित बीज ही बोयें, (2) जुलाईके प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें। देर से रोपाई करने पर झुलसा रोग के लगने की संभावना बढ़ जाती है,
(3) यदि पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगे तो कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या हिनोसाव 500 मि.ली. दवा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर में छिड़काव करें। इस तरह
इन दवाओं का छिड़काव 2-3 बार 10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार किया जा सकता है, (4) संवेदनशील किस्मों में बीमारी आने पर नाइट्रोजन का कम प्रयोग करें और (5) रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को कटाई के बाद जला देना चाहिए।
(2)पत्ती का झुलसा रोग-
यह बीमारी जीवाणु के द्वारा होती है। पौधों में यह रोग छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक कभी भी हो सकता है। इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते है। सूखे पीले पत्तोंके साथ-साथ राख के रंग जैसे धब्बे भी दिखाई देते है। पूरी फसल झुलसी प्रतीत होती है। इसलिए इसे झुलसा रोग कहा गया है।
नियंत्रण-
(1) इसके नियंत्रण के लिए नाइट्रोजन की टॉपड्रेसिंग नहीं करनी चाहिए।
(2) पानी निकालकर प्रति हैक्टेयर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम या 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे ब्लाइटाक्स 50 या फाइटेलान का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करने चाहिए, (3) जिस खेत में रोग के लक्षण हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें। इससे बीमारी के फैलने की आशंका रहती है।


(3) गुतान झुलसा (शीथ ब्लाइट)-
यह बीमारी भी फफूंद द्वारा फैलती है। इसके प्रकोप से पत्ती
के शीश (गुतान) पर 2-3 से.मी. लंबे हरे से भूरे धब्बे पड़ते है जो धीरे-धीरे भूरे रंग में बदल जाते है। धब्बों के चारों तरफ नीले रंग की पतली धारी-सी बन जाती है।
नियंत्रण-
इस बीमारी की रोकथाम के लिए निम्नलिखित दवाओं का छिड़काव करें-
(1)कार्बेन्डाजिम
500 ग्राम दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें,
(2) बॉविस्टीन
की 300 मि.ली. मात्रा या हीनोसान 1 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें (3) अगर बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो नाइट्रोजन का छिड़कावकम करे दें।
4 . खैरा रोग-
रोग यह बीमारी धान (चावल) में जस्ते की कमी के कारण होती है। इसके लगने पर निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं और बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवा धब्बे उभरने लगते है। रोग की तीव्र अवस्था में रोग ग्रसित पत्तियां सूखने लगती है। कल्ले कम निकलते है और पौधों की वृद्धि रूक जाती है।
नियंत्रण-
(1) यह बीमारी न लगे इसके लिए 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए।
(2) बीमारी लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिए 5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट तथा 2.5 कि.ग्रा. चूना 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हैक्टेयर में छिड़काव करें। अगर रोकथाम न हो तो 10 दिन बाद पुनः छिड़काव करें। पौधशाला में खैरा के लक्षण प्रकट होने पर इसी घोल का छिड़काव करना चाहिए।
5 . टुंग्रो विषाणु रोग-
टुंग्रो यह रोग हरे फुदके कीट के माध्यम से फैलता है। यदि रोग का प्रकोप प्रारंभिक अवस्था यानी 60 दिन में पूर्ण होता है इससे पौधे रोग के कारण बौने रह जाते है,
कल्ले भी कम बनते है, पत्तियों का रंग सतंरे के रंग समान या भूरा हो जाता है। रोगग्रस्त पौधों में बालियां
देर से बनती है, जिनमें दाने या तो पड़ते ही नहीं और यदि पड़ते है तो बहुत हल्कें।
नियंत्रण-
(1) इस बीमारी की रोकथाम के लिए जेसे ही खेत में एक-दो
रोगी पौधे दिखाई दें, वैस ही उन्हें खेत से बाहर निकाल देना चाहिए, (2) रोपाई से पूर्व पौध की जड़ों को 0.62 प्रतिशत क्लोरोपायरीफॉस घोल में डुबाना चाहिए, (3) कल्ले बनते समय तथा बालिया आने पर 8-10 कीट प्रति हिल दिखाई देने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी प्रति हैक्टेयर 20 कि.ग्रा. की दर से 3-5 से.मी. पानी में प्रयोग करना चाहिए।
धान (चावल) के प्रमुख कीट और नियंत्रण
धान (चावल) की फसल पर निम्नलिखित कीट-पतंगे मुख्य रूप से नुकसान पहुंचाते है-
1 . तना छेदक (स्टेम बोरर)-
स्टेम बोररछेदक यह धारीदार गुलाबी, पीले या सफेद रंग का होता है। इस कीड़े की सूंडी नुकसान पहुंचाती है। फसल की प्रारभिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधों का मुख्य तना सूख
जाता है, इसे 'डैड हर्ट' कहते है।
नियंत्रण-
(1) इसके नियंत्रण के लिए रोपाई के 20-25 और 70 दिन बाद 250 मि.ली. डेमेक्रान 85 ई.सी. या 800 मि.ली. मोनोक्रोटोफास 30 डब्ल्यू.पी. की मात्रा 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने या 25 कि.ग्रा. कार्बोफ्यूरॉन रोपाई के 30 और 70 दिन बाद खड़े पानी में डालें,
(2)तना छेदक कीड़े की सूंडी के अगले साल फैलने से रोकने
के लिए धान (चावल) की जड़ों को जलाकर समाप्त कर दें या गहरी जुताई करके नष्ट करे दें, (3) तना छेदक कीड़े को लाइट ट्रेप से पकड़कर समाप्त कर सकते है।
2 . पत्ती लपेट कीड़ा (लीफ फोल्डर)-
इस कीड़े की सूंडी पौधों की कोमल पत्तियों के सिर की तरफ से लपेटकर सुरंग-सी बना लेती है और उसके अंदर-अंदर खाती रहती है। फलस्वरूप पौधों की पत्तियों का रंग उड़ जाता है और पत्तियां सिर की तरफ से सूख जाती है। अधिक नुकसान
होने पर फसल सफेद और जली-सी दिखाई देने लगती है। अगस्त से लेकर अक्टूबर तक इसके द्वारा नुकसान होता है।
नियंत्रण-
(1) कीड़ों को लाइट ट्रेप पर इकठ्ठा करके मार सकते है।(2) एण्डोसल्फान (35 ईसी.) दवा की एक लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाये।
3. धान (चावल) का गंधी कीड़ा-
गंध्इस कीड़े के प्रौढ़ व निम्फ दोनों दूधिया दानोंऔर पत्तियों का रस चूसते है। फलस्वरूप दाना आंशिक रूप से भरता है या खोखला रह जाता है। इस कीड़े को छूने से या छेड़ने से बहुत तीखी गंध निकलती है। इसी कारण इसे गंधी बग भी कहते है।
नियंत्रण-
इस कीडेघ् की रोकथाम के लिए फॉलीडाल या मैलाथियान पाउडर का 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बुरकाव करें या इण्डोसल्फॉन 35 ई.सी. की 1.2 लीट र दवा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
4. मधुवा या फुदके (हापर)
ये कीड़े बहुत छोटे आकार के और भूरे रंगे के होते हैं जो कि पौध की नीचली सतह पर कल्लों के बीच में पाए जाते हैं और तने और पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके प्रकोप से हरी-भरी दिखने वाली फसल अचानक झुलस जाती है। झुलसे हुए हिस्से को 'होपर बर्न' कहते है।
नियंत्रण-
इन कीड़ों के नियंत्रण के लिए फ्यूराडॉन 3 जी. की 33 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर या थिमेट 10 जी. की 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर मात्रा पौधों के निचले हिस्सों में डालनी चाहिए।
चूहों का नियंत्रण
धान (चावल) की फसल में चूहे भी बहुत नुकसान पहुंचाते है। चूहों का नियंत्रण एक सामूहिक कार्य है।
एकाकी नियंत्रण अप्रभावी होता है। इनके नियत्रंण के
लिए सभी उपलब्ध विधियों जैसे चूहों के फंदे,
विषयुक्त खाद्य, साइनों गैस उपयोग में लाना इत्यादी। विषयुक्त खाद्य के सही उपयोग के लिए पहले दिन विषरहित खाद्य देना चाहिए। दूसरे दिन 19 भाग मक्का, गेहूं, चावल, एक भाग रेटाफिन या रोडाफिन का तेल व चीनी के साथ मिलाकर देना चाहिए।
एक खाद्य एक सप्ताह तक देने के बाद जिंक फास्फाइड मिला हुआ खाद्य 95 भाग (भार से) ज्वार के दाने, 2.5 भाग जिंक फास्फाइड तथा उतना ही भाग सरसों का तेल मिलाकर देना चाहिए। मरे हुए चूहों को जमीन में दबा देना चाहिए।


 


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