हरे चारे का विकल्प एजोला,दुधारू पशुओं के लिए वरदान

 भारत दुनियाँ का दूसरा सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। भारत में पशुओं की संख्या भी बहुत अधिक है।वर्तमान में भारत में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान प्रथम है तथा वार्षिक उत्पादन लगभग 23.33 मिलियन टन है।अपने देश में दुग्ध उत्पादन की दर पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है, क्योंकि लगातार जंगलों की कटान तथा घटते चारागाहों के कारण पशुओं के आहार पर काफी दुष्प्रभाव पड़ा है। पशुओं के भोजन के लिए चारा अति आवश्यक है। दुग्ध उत्पादन की बढ़ोत्तरी के लिए आज दूध देने वाले पशुओं के पोषकता पर ध्यान देने की जरूरत है। जंगलों और चारागाहों के घटते क्षेत्रों की वजह से चारे की कमी की भरपाई के लिए पशुपालकों को व्यवसायिक चारे के रूप में ताजी हरी घास, सूखा भूसा आदि पर निर्भर रहना पड़ता है जिससे दुग्ध उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। यही नहीं व्यवसायिक चारे में यूरिया, कृत्रिम मिल्क बूस्टर के भी मिलाने से दूध की गुणवत्ता तथा जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। श्वेतक्रान्ति को बढ़ावा देने के लिए दुग्ध उत्पादन केन्द्रों, डेयरी फार्मों एवं गौशालाओं पर कम लागत पर अधिक दूध का उत्पादन किया जा सकता है।दुग्ध उत्पादन हेतु पशुपालकों को पशु आहार के रूप में एजोला का प्रयोग एक अच्छा विकल्प है।


                   
एजोला एक छोटा जलीय फर्न है जो स्थिर पानी के ऊपर तैरता हुआ पाया जाता है। यह पानी के ऊपर वृद्धि कर मोटी हरी सतह बना लेता है। कभी-कभी एन्थोसाइनिन पिगमेन्ट के संचय होने के कारण यह लाल सा दिखाई देता है। एजोला एजोलेयेसी कुल का पौधा है इसके अन्दर सहजीवी साइनोबैक्टीरिया ;ठसनम.हतममद ।सहंमद्धपाया जाता है। जिसे एनाबिना एजोली कहते हैं। जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सहायक है। एजोला एवं शैवाल का सहगठबन्धन अद्भुत है क्योंकि दोनों की फोटोसिन्थेटिक क्रिया सहजीवी तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में प्रभावी है। इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन्स, अमीनोएसिड्स, विटामिन्स तथा खनिज लवण पाये जाते हैं। यह भारत में सभी जगह पाया जाता है। एजोला की कई प्रजातियॉं होती है। एजोला पिन्नाटा भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता है।
एजोला में कई प्रकार के लाभकारी पोषक तत्व पाये जाते हैं। एजोला में बहुत ज्यादा प्रोटीन्स, आवश्यक अमीनोएसिड्स, विटामिन्स (विटामिन 'ए', विटामिन 'बी 12' और बीटा कैरोटिन) वृद्धिकारक और मिनरल्स में कैल्सियम, फास्फोरस, पोटैशियम, फेरस, कॉपर, मैगनीशियम इत्यादि पाये जाते हैं। सूखे वजन के आधार पर एजोला में 25 से 35 प्रतिशत प्रोटीन, 10 से 15 प्रतिशत मिनरल्स तथा 7 से 10 प्रतिशत अमीनोएसिड्स, बायो-एक्टिव पदार्थ तथा बायो-पॉलीमर्स पाये जाते हैं। इसमें कार्बोहाईड्रेट्स तथा वसा की मात्रा न के बराबर होती है। एजोला में मौजूद इस पोषक तत्व संरचना की वजह से पशुओं के लिए अत्यधिक कुशल, प्रभावी चारा के रूप में वरदानस्वरूप है। एजोला का उत्पादन आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत आसान एवं सस्ता है क्योंकि यह बहुत तेज वृद्धि करता है। इसमें ज्यादा प्रोटीन तथा कम लिगनिन की मात्रा होने के कारण पशुओ द्वारा इसे आसानी से पचा लिया जाता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उ0प्र0 द्वारा बायोटेक नेटवर्किंग फैसीलिटी केन्द्र, बक्शी का तालाब, लखनऊ के निकटवर्ती के गांवोंमें दुधारू पशुओं पर पशु आहार के रूप में एजोला का परीक्षण किया गया। पशुओं को दो किलोग्राम शुद्ध ताजे एजोला को उनके दैनिक साधारण चारे में मिलाकर 25 से 30 दिन तक लगातार खिलाया गया तो पशुओं की दूध की मात्रा में 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी पायी गयी। इससे यह सिद्ध होता है कि एजोला में पाये जाने वाले पोषक तत्वों के अलावा अन्य अवयव जैसे कैरोटिनाइड्स, बायोपॉलीमर्स, प्रोबायोटिक्स आदि के योगदान की वजह से ही पशुओं में दूध बढ़ाने की क्षमता में वृद्धि करते हैं। इतने ज्यादा लाभकारी पोषक तत्व अन्य किसी साधारण चारा जैसे- नैपियर घास, लूसर्न घास, लोबिया, ज्वार इत्यादि में नहीं पाये जाते हैं। देश में सबसे ज्यादा चारे के रूप में एजोला का वार्षिक उत्पादन 730 टन प्रति हेक्टेयर किया जाता है। जबकि नैपियर घास 250, लूसर्न 80, लोबिया 35 तथा ज्वार का 40 टन प्रति हेक्टेयर ही होता है। एजोला को मास्कीटो फर्न, डकवीड फर्न, फेयरीमॉस एवं वाटर फर्न के नाम से भी लोग जानते हैं। इसे लोग ग्रीन गोल्ड माइन ;ळतममद ळवसक डपदमद्धभी कहते हैं।
पशुओं के लिए प्रोटीन के तौर पर उपयोग किये जाने वाले एजोला को पशुपालक घर के पास ही इसे उगा सकते हैं। एजोला उगाने के लिए 5मीटर ग1मीटर ग 8-10 इंच साइज का पक्का सीमेन्ट टैंक बनाया जाता है। इसका आकार आवश्यकतानुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है। सीमेन्टेड टैंक के स्थान पर जमीन को समतल करके उस पर ईंटों को बिछाकर एक आयताकार टैंकनुमा गड्ढा बना लें, गड्ढे में 150 ग्राम मोटी सिल्पोलिन सीट को गड्ढे में बिछाकर चारो तरफ के किनारे की दीवारों को सीट से ढककर ईंटों आदि से दबा दें। यह टैंक या गड्ढा छायादार स्थान पर होना चाहिए। टैंक में लगभग 10 सेंमी0 पानी भर दें तथा लगभग 35-40 किग्रा0 खेत की साफ सुथरी छनी हुई उपजाऊ मिट्टी को टैंक में समान रूप से बिखेर दें। लगभग 4-5 किग्रा0 एक से दो दिन पुराने गोबर तथा 50 ग्राम सिंगल सुपरफास्फेट को 20 लीटर शुद्ध पानी में घोल बनाकर टैंक में समान रूप से सभी जगह डालकर मिला दें। दो-तीन घण्टे बाद एक से डेढ़ किग्रा0 शुद्ध ताजा मदर एजोला कल्चर को पानी के ऊपर समान रूप से छिड़क दें। एजोला के ऊपर फब्वारे से पानी का छिड़काव तुरन्त करें। 10 से 12 दिन में एजोला पानी के ऊपर वृद्धि कर समान रूप से फैलकर मोटी सतह बना लेता है। 10-12 दिन बाद एक किग्रा0 शुद्ध एजोला प्रतिदिन प्लास्टिक छन्नी से उपयोग हेतु निकाला जा सकता है। सप्ताह में एक बार पुनः गोबर का घोल टैंक या गड्ढे में अवश्य मिला दें। पशुओं के उपयोग हेतु निकाले गये एजोला को 2-3 बार शुद्ध पानी से अच्छी तरह से धुल लें, जिससे गोबर की गंध एजोला से निकल जाए। इसे गाय, भैंस, बकरी, भेंड़, सुअर, खरगोश, मछली, पोल्ट्री बर्ड आदि को खिला सकते हैं। साधारण चारा खाने वाली चिड़ियों की तुलना में एजोला खाने वाली चिड़ियाँ जल्दी विकसित हो जाती है तथा चिड़ियों का वजन 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाता है तथा अण्डे का आकार भी बढ़ जाता है।
एजोला पशुओं के लिए लाभकारी तो है ही, साथ ही यह धान की खेती में जैव उर्वरक की तरह भी काम करता है। धान को नाइट्रोजन की जरूरत होती है तो यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर मिट्टी तथा पौधों को उपलब्ध कराता है और फसल की उत्पादकता में वृद्धि करता है जिससे 40-80 किग्रा0/हेक्टेयर रसायनिक नाइट्रोजन की बचत होती है तथा धान की औसत उपज में 15-20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उ0प्र0 द्वारा बायोटेक नेटवर्किंग फैसिलिटी केन्द्र, बक्शी का तालाब, लखनऊ पर एजोला का वृहद उत्पादन किया जा रहा है, जो किसान भाई एजोला का उत्पादन व उपयोग करना चाहते हैं, वह उक्त केन्द्र से डा0 डी0सी0 वर्मा (फील्ड आफिसर) के मोबाइल नम्बर-9415577672 पर सम्पर्क करके प्रशिक्षण एवं एजोला कल्चर निःशुल्क प्राप्त कर सकते है।
1.फील्ड आफिसर, 2.संयुक्त निदेशक (कृषि)विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उ.प्र., विज्ञान भवन, 9, नवीउल्लाह रोड, सूरजकुण्ड पार्क, लखनऊ।


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