जल ही जीवन है, इसे बचाइये बचाइये

समग्र भारत ही नहीं समूची दुनिया में जल संकट बढ़ता जा रहा है और इस संकट को लेकर सारी दुनिया चिंतित भी है और कुछ न कुछ उपाय भी कर रही है। बात यदि भारत के संदर्भों में करें तो देश के पास 91 बड़े जलाशय हैं जिनमें कम से कम 77 प्रतिशत जल हमेशा रहा करता था मगर अब इनमें मात्र 23 प्रतिशत पानी बचा हुआ है। बात यदि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में करें तो राज्य में आजादी के समय मौजूद 8लाख 91 हजार प्राकृतिक जल स्रोतों में से 69 हजार जल स्रोत लापता हो चुके हैं। इसके बावजूद देश में पानी के संकट को गंभीरता से न लेकर अब भी उस पर सियासत ही चल रही है। महाराष्ट्र लातूर में भीषण जल संकट है, पनी बिना पशु-पक्षी ,जीव-जन्तु तड़प-तड़प कर मर रहें हैं । मगर जब लातूर के लिए पानी एक्सप्रेस चलाने की बात आयी और दिल्ली सरकार ने मानवतावश लातूर के लिए पानी देने की पेशकश की तो धन्यवाद देने के वजाय उसका प्रस्ताव ठुकरा कर ,जल संकट से जूझ रहे एक और प्रांत राजस्थान के कोटा जनपद से पानी भेजने का निर्णय लिया गया। यानी दिल्ली के पानी को अछूत मान लिया गया,ऐसा शायद इसलिए क्योंकि वह भाजपा शासित राज्य नहीं है। अरे कम से कम विपत्ति काल में ही एकजुटता दिखाते। दिल नहीं मिल रहे तो,कम से कम हाथ ही मिला लेते। इसी प्रकार जब बुन्देलखण्ड की बारी आई और जगह -जगह चर्चा होने लगी कि लातूर के लिए पानी एक्सप्रेस चला तो बुन्देलखण्ड के लिए क्यों नहीं। चूँकि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव होने हैं अतः केन्द्र सरकार ने बुन्देलखण्ड के लिए भी पानी एक्सप्रेस चलाने की घोषणा करके खाली बोगियां भेज कर झांसी में बुन्देलखण्ड का ही पानी उनमें भरवा दिया। जिस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने पहले तो बोगियां खाली होने की बात कही और बाद में पानी पीने लायक न होने की बात कही, इस पर भी खूब सियासत हुई। अन्त में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने असली बात कह दी कि प्यासे बुन्देलखण्ड की प्यास बुझाने के लिए हमे पानी की ट्रेन नहीं पानी के टैंकर चाहिए, उन्होंने प्रधानमंत्री से 10 हजार टैंकर मुहैया कराने की वाजिब मांग रखी । उन्होने बुन्देलखण्ड के लिए प्रधानमंत्री से 10,600 करोड़ रुपये के पैकेज की मांग भी की। बात बिल्कुल सही है शहरों में साहब लोग बसते हैं, नेता अफसर और बड़े लोग बसते हैं वहां पर पानी की व्यवस्था तो हो ही जाती है, हमें जरूरत है प्यासे गाँवों को पानी पिलाने के लिए गाँव-गाँव तक पहुँच सकने वाले जल टैंकरों की। यह बात भी सही है कि रेल यातायात की तुलना में सड़क परिवहन काफी खर्चीला पड़ता है। यदि आपको असली प्यासे लागों तक पानी पहुँचाना है तो जल टैंकरो की नितांत आवश्यकता है। हम अभी तक बात कर रहे थे जलस्रोतों की। कुएं तालाब और बरसाती नदियों को पाट कर कुछ लोभी लोगों ने कब्जा कर लिया है और पानी की जगह पर पत्थरों का जंगल खड़ा कर लिया है। सूबे के मुख्य सचिव अब एक लाख नए जल स्रोत विकसित करने की बात कर रहे हैं यदि ऐसा हो सके तो बहुत अच्छा होगा । दूसरा मुद्दा है पानी के व्यवसाईकरण का। पानी का जब से व्यवसाय बन गया तब से लोगों की आँखों का पानी मर सा गया है। पानी का व्यवसायीकरण किया है शीतल पेय बनाने वाली आर ओ वाटर प्यूरीफायर बनाने वाली कम्पनियों ने। पता नही कभी आप ने गौर किया या नहीं मगर आपके घर में आर ओ की मशीन आपको तीन लीटर पानी देने के लिए चार लीटर पानी नाली में बहा देती है। पानी की यह बर्बादी ही हमें जल शुद्धि का बोध कराती है। यानी तथाकथित शुद्धता के नाम पर हम शान से 60 प्रतिशत पानी बर्बाद कर देते हैं। हमारे फिल्मी एवं क्रिकेट सितारे इन जलशोधक मशीनों का प्रचार इस कदर करते है कि मानो हमारे लिए पानी से ज्यादा जरूरी यह जलशोधक मशीनें ही हैं। हम यह भी सोचने की तकलीफ नहीं उठाते कि जब जल ही नहीं रहेगा तो जलशेधक मशीनें किस काम की रह जाएंगी। देश में निरन्तर छीज रहे प्राकृतिक संसाधनों की ओर इनका ध्यान कतई नहीं हैं। इन्हें तो सिर्फ और सिर्फ पैसे से मतलब है ,जो पैसा देगा ये उसका प्रचार करेंगे, जिस धरती पर इन्होंने जन्म लिया है जिस मिट्टी में पले बढ़े हैं जिस हवा में सांस ले रहे हैं और जिस जल से इनका जीवन निर्मित है तथा मशीनों से शोधित होकर जिस पानी से इन्हें चमत्कारिक जल मिलता है उस जलस्रोत की सुरक्षा के प्रति इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। उसका संरक्षण करने का संदेश यह लोग कभी भी नहीं करते जानते हैं कयो? क्योंकि उसके प्रचार के लिए उन्हें पैसा नहीं मिलता। जल के निरन्तर बढ़ते व्यवसाईकरण के चलते जल की उपलब्धता संबंधी चुनौतियां निरन्तर बढ़ती जा रही है। अब तो गोमती नदी के तट पर बसे लखनऊ जैसे शहर में भी जिला प्रशासन को पानी पर पहरा लगाना पड़ रहा है। ईमानदारी से सोचिए कि हम निरन्तर यदि किसी चीज का दोहन ही करेंगे, पुनर्भरण नहीं करेंगे तो एक न एक दिन वह स्रोत समाप्त हो जाएगा यह धु्रव सत्य है। इधर बिना सोचे समझे कुछ विदेशी पौघे भी हमने अपना लिया है जिनकी जड़ें मिट्टी की सतह से 60 मीटर तक नीचे पहुँच कर जल का अवशोषण कर भू जल का दोहन कर रहे हैं जिससे हमारा भू जल स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। अतः यदि धरा पर जीवन को बचाना है,जिंदा रहना है तो सोचिए ,संभलिए, और चल पड़िये जल स्रोतों का संरक्षण करने,केवल सरकार के भरोसे मत रहिए।


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