मोदी की जीत के लिए सबको हारना पड़ा


आम चुनाव २०१९में अपनी अपनी पार्टी के प्रदर्शन से अमित मोदी,उद्धव ठाकरे, नितीश कुमार, राम विलास पासवान,वाई एस राजशेखर, नवीन पटनायक और स्टालिन के सिवा किसी भी पार्टी के नेता खुश नहीं हैं मगर हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफे का साहस दिखाया केवल राहुल गांधी ने ही। यह पलायन नहीं बल्कि त्याग का साहस है। पार्टी के सबसे बुरे दौर में उन्होंने बागडोर संभाली है। पार्टी को चुनाव भले ही जिता पाये मगर कैडर विहीन पार्टी का मत प्रतिशत और लोकसभा में पार्टी की आठ सीटों को बढ़ाने का श्रेय तो उनको जाता ही है। जीते तो केवल मोदी , पटनायक और वाई एस आर है। अन्य पार्टियों की जीत हार का एक मात्र कारण मोदी की जीत है। किसी को जीतने के किसी का हारना अनिवार्य शर्त होती है।
दो विपरीत विचारधाराओं की लड़ाई में विपक्ष भी कांग्रेस से ही लड़ रहा था। मायावती, मुलायम ममता बनर्जी समेत एक दर्जन नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए उतावले थे। ऐसा लग रहा था कि त्रिशंकु संसद का गठन होगा और जोड़ तोड़ से मजबूर सरकार बनेगी।यह भी लगभग-लगभग तय था कि नरेंद्र मोदी मजबूर सरकार का नेतृत्व कतयी नहीं करना चाहेंगे क्योंकि ऐसा करना उनके स्वभाव के विपरीत होता।
शायद राहुल गांधी भी ऐसा सौदा पसंद न करते जिसमें कदम कदम पर घुटने टेकना पडे़। अगर प्रधानमंत्री बनने का इतना ही शौक होता तो डाक्टर मनमोहन सिंह के १०वर्ष के कार्यकाल में से कुछ समय के लिए वह भी अपना प्रधानमंत्री बनने का शौक पूरा कर लेते। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। इन हालात में कोई सौदागर ही प्रधानमंत्री बनता जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता।
न तो मैं मोदी जी का विरोधी हूं और न ही राहुल गांधी का चमचा या भक्त। नये जनादेश से मुझे खुशी इस बात की है कि नयी सरकार के पास जन अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य न करने के लिए कोई बहाना नहीं रहेगा। नयी सरकार के पास देश की एकता , अखंडता ,सद्भाव, मजबूत अर्थव्यवस्था , देश की सीमाओं की सुरक्षा, विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का भरपूर अवसर है । उम्मीद है कि नयी सरकार देश को नई ऊंचाई पर ले जाने में कामयाब होगी।


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