नये बागों की स्थापना


फल पौध रोपण-
नवीन उद्यान की स्थापना तकनीकी एवं महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। सर्वप्रथम क्षेत्र का मापन किया जाय, फिर
चयनित फल एवं उसकी प्रजाति के आधार पर कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी निर्धारित करें।


नये बागों के लिए प्रारम्भिक तैयारियॉं-
वर्गाकार पद्धति, आयताकार पद्धति, त्रिभुजाकार या षटभुजाकार तथा हाई डेन्सिटी पद्धति
से किये जा सकते हैं।


फल एवं सब्जियों में एकीकृत कीट रोग प्रबन्धन की गतिविधियॉं


1. शस्य क्रियाओं द्वारा नियंत्रण-
स्थल निर्धारण के पश्चात भूमि की सप्लाई, सर्वेक्षण, मिट्टी परीक्षण,
समतलीकरण, मिट्टी की जुताई, बागों के चारों ओर घेरबाड़, पत्थर की दीवार, वायु अवरोध लगायें।
ऽफसल कटाई के बाद असमान प्रजाति के पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट करना तथा प्रमाणित
बीज/रोगरोधी किस्मों का ही प्रयोग किया जायें।
1.फ्रेंचबीन के साथ फसल चक्र अपनाने से बैक्टीरियल विल्ट बीमारी का प्रकोप कम होता है।
2.खाद्यान फसलों के साथ फसल चक्र तथा गेंदा, प्याज और लहसुन के साथ इन्टरक्रांपिग (अन्तराशस्य)
करने से निमेटोड्स का प्रकोप कम हो जाता है।
3.पौधशाला में उठी हुई क्यारियों में पौध उत्पादन से भूमि जनित रोगों से बचाया जा सकता है।
4.पारदर्शी काली पॉलीथीन फिल्म 60-100 गेज नर्सरी क्यारियों पर 15-21 दिन तक लगाने पर सौर्य
ऊष्मीकरण द्वारा खरपतवारों के बीज, निमेटोड्स तथा भूमि के कीट एवं बीमारियाँ नष्ट हो जाती है।
5.गर्मियों में गहरी जुताई करने से सूर्य की गर्मी से हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं।
6.एन0पी0के0 उर्वरकों को सन्तुलित मात्रा में प्रयोग करने से फसल स्वास्थ होती है।
7.सब्जियों की पौध उत्पादन लो टनल नर्सरी में करें।


2. यांत्रिक नियंत्रण-
1.एपीलेकना बीटिल, कीटों के अण्डे, लार्वी ग्रब्स प्यूपा तथा वयस्कों को पकड़ कर नष्ट करना।
2.क्षतिग्रस्त शाखाओं को काटकर तथा फलों को एकत्र कर नष्ट करना।
·Yellow pan/sticky trapsप्रति हे0 की दर से रस चूसने वाले कीड़ों के लिए लगाते है। फैरोमोन-ट्रेप 5 से
15 प्रति हे0 की दर से लगाने पर फल भेदक कीटों के वयस्कों को नष्ट किया जा सकता है।
3.फसल की बुआई/रोपाई के बाद 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए।
4.प्रीडेटर्स जैसे लेडीवर्ड बीटिल जो एफिड को खाती है, का संरक्षण किया जाये।


3. जैविक नियंत्रण-
1.प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण के लिए मेंड़ों पर लोबिया या दाल वाली फसल लगानी चाहिए।
2..ट्राईकोग्रामा को 50 हजार अण्डे प्रति हे0 पुष्पारम्भ से सप्ताहिक अन्तराल पर 6 बार प्रयोग करते हैं।
3.क्राइसोपरर्ला कार्नियॉ के 2 ग्रब्स प्रति पौधा की दर से हैलिकोवर्पा, एफिड्स तथा अन्य कोमल कीटों की
रोकथाम हेतु छोड़ते है।


4.क्राइसोपरर्ला कार्नियॉ के 2 ग्रब्स प्रति पौधा की दर से हैलिकोवर्पा, एफिड्स तथा अन्य कोमल कीटों की
रोकथाम हेतु छोड़ते है।


5.फसल में पुष्पारम्भ से फलों के विकास तक (HaNPV LE )6X10 PIB/LE) तीन बार छिड़काव करें।
6.बी0टी0(kurstaki) 500 ग्रा0/हे0 की दर से कीट पतंगों के विरूद्ध छिड़काव करते हैं।
7.ट्राईकोडरमा विरडी/ट्राईकोडरमा हार्जिएनम 5 ग्रा0/किलो बीज की दर से बीज जनित रोगों की
रोकथाम हेतु बीजोपचार किया जाता है।
8.मूलग्रन्थि निमेटोड की रोकथाम हेतु 200 किलोग्राम नीम की खली भूमि तैयारी के समय प्रयोग की जाती है।
9.आई0पी0एम0 कार्यक्रम को सफलता पूर्वक क्रियान्वित करने और अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिएऔद्यानिक फसलों के सघन क्षेत्रों का चयन आवश्यक है तथा संहत क्षेत्रों के अन्तर्गत वर्ष की तीनों मौसमों
में उगाई जा रही फसलों में 4 हे0 सीमा तक आई0पी0एम0 सुविधा अनुमन्य होगी तदुपरान्त आगामी वर्ष में
अन्य सघन क्षेत्रों का चयन करना होगा। ऐसी फसलें जिनमें रसायनिक दवाओं अन्धाधुन्ध प्रयोग किया जा
रहा है, चयनित संहत क्षेत्रों के अन्तर्गत उन फसलों में आई0पी0एम0 पैकेज को प्राथमिकता दी जाये।
1. फल एवं शाकभाजी फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन कार्यक्रमों के आयोजन हेतु उपरोक्त वर्णित
क्रमिक गतिविधियों को फसल की आवश्यकतानुसार अपनाने हेतु कृषकों को प्रेरित किया जाये।
2. राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के अन्तर्गत कुल लागत धनराशि रू0 4000/- का 30 प्रतिशत अधिकतम रू0
1200/- प्रति हे0 की दर से राज्य सहायता की व्यवस्था है।
3. यह सहायता एक कृषक को अधिकतम 4 हे0 की सीमा तक देय होगी जो प्रमुख आई0पी0एम0 टूल्स
जैसे-अल्काथीन शीट 400 गेज, ल्योर मिथाइल यूजीनॉल, एसपरजिलस, फेरोमोन ट्रप$ल्योर्स,
एन0पी0वी0, ट्राइकोडर्मा हार्जेनियम, इन्सेक्ट अट्रैक्टेन्ट, बायोपेस्टीसाइड्स, आई0एन0एम0 कम्पोनेंट
लिक्विड बायो फर्टीलाइजर आफ एन0पी0 एण्ड के0 पर अनुमन्य होगी।


फल एवं सब्जियों का संरक्षण/मूल्य संवंर्धन-
विविधिकरण के अन्तर्गत हम फूलों, फलों एवं सब्जियों के खेती के साथ ही साथ यदि इसको मूल्य संवंर्धन
से जोड़ दे तो कृषकों की आय में चार चांद लग सकता है। फल एवं सब्जियॉ शीध्र ही नष्ट होने वाले उत्पाद है,
इन्हें कोल्ड चेन/शीत गृहों में अधिक दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। कोल्ड चेन की उपलब्धता न होने की
स्थिति में कृषक इनका संरक्षण एवं मूल्य संवंर्धन कर सकते हैं। इन प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए निम्न तरीके
शामिल है जैसे सुखाना, स्प्रे ड्राइंग, फ्रीज ड्राइंग, प्रशीतन, निर्वात-पैकिंग, डिब्बाबंदी, सिरप, चीनी क्रिस्टलीकरण
और खाद्य विकिरण में संरक्षण और परिरक्षक या निष्क्रिय गैसों जैसे कार्बनडाई आक्साईड मिलाना यह विधियां न
केवल खाद्य पदार्थों को संरक्षित करती है, अपितु उसके स्वाद में भी वृद्धि करती है, इसमें अचार बनाना, नमक
मिलाना, चीनी क्रिस्टलीकरण एवं क्योरिंग शामिल है।
इस हेतु जनपदों के खाद्य प्रसंस्करण विभाग से सम्पर्क कर कृषक विशेषकर महिला कृषकों/समूहों
द्वारा अपने उत्पाद का अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। महिला समूहों को विभिन्न योजनाओं यथा- सब
मिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्टेन्शन, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, कौशल विकास योजना, नाबार्ड आदि
समाहित करते हुये इस कार्य हेतु उपलब्ध सीड मनी का लाभ समूहों/महिला समूहों को दिलाया जा सकता है।


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