संजीवनी

संजीवनी एक वनस्पति का नाम है जिसका उपयोग चिकित्सा कार्य के लिये किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सेलाजिनेला ब्राहपटेर्सिस है और इसकी उत्पत्ति लगभग तीस अरब वर्ष पहले कार्बोनिफेरस युग से मानी जाती हैं। लखनऊ स्थित वनस्पति अनुसंधान संस्थान में संजीवनी बूटी के जीन की पहचान पर कार्य कर रहे पाँच वनस्पति वैज्ञानिको में से एक डॉ० पी.एन. खरे के अनुसार संजीवनी का सम्बंध पौधों के टेरीडोफिया समूह से है जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे।
उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर खिल जाती है। यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है।, इसके इसी गुण के कारण वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जाँच कर रहे है कि आखिर संजीवनी में ऐसा कौन सा जीन पाया जाता है जो इसे अन्य पौधों से अलग और विषेष दर्जा प्रदान करता है। हालाँकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी असली पहचान भी काफी कठिन है क्योंकि जंगलों में इसके समान ही अनेक ऐसे पौधे और वनस्पतियाँ उगती है जिनसे आसानी से धोखा खाया जा सकता है।
मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लम्बाई में बढ़ने के बजाए सतह पर फैलती है।
संजीवनी के लिये हनुमान जी ने हिमालय को ही उठा लिया और लंका लाये
यह उत्तरप्रदेश उत्तराखंड और उड़ीसा सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है। बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बाल.ष्ण ने संजीवनी को द्रोणगिरी की पहाड़ियों पर १५,००० फुट की ऊँचाई पर भी पाया।ख्2, संजीवनी का उल्लेख पुराणों में भी है। आयुर्वेद में इसके औषधीय लाभों के बारे में वर्णन है। यह न सिर्फ पेट के रोगों में बल्कि मानव की लंबाई बढ़ाने में भी सहायक होती है।


               उम्र ने तलाश  ली, तो कुछ लम्हे बरामद हुए।
               कुछ गम के थे,कुछ नम थे, कुछ टूटे हुए।
                बस कुछ ही सलामत मिले, जो बचपन के थे।


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