बादल

जुलाई का महीना है। आकाश  बिल्कुल चमाचम। बादल का कहीं कोई नामो निशा न नहीं। कैसे ढाढ़स बढ़े। जब बरसात हुई रहती है। बोरिंग भी पानी उठाती है।
''का भगवान हर साल इहै नरक।''
''अरे भाई भगवानै नाय दोषी  हैं।''
''तब कौन?''
''हम आप।''
''कैसे।''
''जंगल काटते जा रहें हैं।''
''जंगल काटने और बरसात से क्या सम्बन्ध।
''पेड़-पौधे बादल को अपनी ओर खींचते हैं''
''क्यों खीचतें हैं?''
''अपनी प्यास बुझाने के लिए। और धरती माँ का प्यास बुझाने के लिए।''
कभी-कभी अभिव्यक्ति के सामने विषाल पहाड़ जैसा खड़ा हो जाता है जिससे अभिव्यक्ति बाहर नहीं जाने पाती ऐसे में अन्तः छटपटाता रहता है। मनुष्य कहीं-कहीं इतना मजबूर हो जाता है कि दिल मसोस कर रह जाना पड़ता है नाराज हो जाने के भय से। आश्रित होना प्रायः अन्तः करण को नोचता रहता है जिससे उवर पाना भी दुष्साध्य हो जाता है।
एक वृद्ध किसान अपने बेटे से कहता हैं, ''अभी धान न बैठाओ बहुत डीजल लगेगा बैठवाने पर अगर फिर न बरसा तो फिर भरने में डीजल लगेगा। यह पैसा अनावष्यक हो जायेगा।''
''बरस जाने पर बैठाने वाले नही मिलेंगे क्योंकि मेघों की तरह बिल से निकलकर कूदते-फादते मजूरों की ओर ही भागेंगे। सबको बैठवाने की धुन घेर लेगी।'' वह वृद्ध किसान
दृढ़ होकर नहीं कह पाता कि मत बैठवाओ अभी। बरसात की आस सभी जोह रहे हैं। क्योंकि करना उसी को है।
लड़का धान बैठवा देता है। बैठाने के चार दिन बाद बादलों का दिल फैला पानी बरसा अब मछली का मराव शुरू हो गया। सबको धान की धुन सवार हुई। अब ठेकेदारों को लोग घेर रहे हैं, ''भइया हमारा बैठा दो। अब इनका भाव बढ़ गया हैं अभी चार दिन मौका नहीं है। यद्यपि कि कई ठीकेदारों की झुण्ड बढ़ गई हैं फिर भी लोगों को चैन नहीं। किसी को पाँचवे दिन बाद, किसी को सात दिन के बाद, किसी को दस दिन बाद।
अपने लोगों का ठीकेदार पहले बैठवा रहै हैं। क्योंकि हारे गार्हे उनसे हरज-गरज चलती है।
वृद्ध बाप के बेटे का मित्र आया भइया हमारा धान बैठवा दीजिए। मैंने तभी कहा था, बैठवा लो, ये ही ठीकेदार मेरा बैठा रहे है आप का बैठा देंगा तब आपने डीजल का मुँह ताका। देखिए उमाकान्त ने हमारे ही ठीकेदारों से बैठवा लिया। यह ठीकेदार पहले हमारा तब किसी और का। यह बरसात बैठवाये धानों के लिए काफी फायदे मंद हो रही है।
'भइया खेती जान लेवा हो गई है। काफी मंहगी। किन्तु मजबूरी है किसानों के सामने और क्या करें वो। मार-काट गोसाइंया तेरे आस। सब नौकरी लायक नहीं, व्यवसाय लायक नहीं तो करेंगें क्या। चाहे घाटा हो या बाढ़ माता को छोड़ पाना मुश्किल । पेट कहा से भरेगा। पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे करते खाते अपना जीवन काट लाया। किसानों की जीवन हमेंशा से दुखिया रहा हैं। यदि पैदावार न बढ़ेगा तो देष का पेट कैसे भरेगा। इतनी बेषुमर जनता का।''
हाँ भइया डिग्री लेने के बाद भी नौकरी नहीं मिली इसके अलावा और कौन सा विकल्प है। यहाँ की षिक्षा भी लूली- लगडी। वाह रे जनतंत्र लूटम-लूट।
धान सबका बैठ गया। उसके बाद सूखा पड़ गया। ऐसा प्रायः हुआ करता हैं। धरती बहुत उदास होकर बोली, ''ऐ बादल भैया मेरा क्या कसूर है, जो मुझे अतृप्त रखते हों।''
''है।''
''क्या है?''
''धरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणियों को तुम समझा नही सकती हों।''


ये तो सर्वश्रेष्ठ हैं ही इन्हें क्या समझाना ? ''तुम्हे तृप्त कर देने से सब बौरा जाते हैं। दो धक्का उन नराधमो को।''
ऐसा करने से नराधमो के साथ देव भी पिस जाते है।
''बडी दयालु हो।''
''माँ हूॅ ना।'' सभी मेरी औलादे है। लायक हो या नालायक। इन्हे तड़फते नही देख सकती।
बादल भैया अब मोरा गहरी पीडा सुनो। तुम इधर हर साल रुठ रहे हो। तुम्हारे न वरसने से हमारा गर्भ सूखता जा रहा है। फिर भी नोची जा रही हूॅ । हमारा तुमारा जन्म भी जगत की सेवा के लिए ही हुआ। विदेशीयो ने मेरी छाती पर पैर रखा। मैं तडफती रही। स्वभिमान रौदा जाने कारण। अस्तु अब रुठना छोड दो। भारतवासियो पर कृपा दृष्टि रखे।''
धरती बहन की बात सुना। द्रवित भी हुआ। तत्काल पानी के रुप में प्रेमाश्रु बहाने लगा। बहन को गदगद करने स्वागातर्थ।


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