बढ़ती बेरोजगारी और आउट सोर्सिंग का धंधा

भारत युवाओं का देश है ,यहां की आवादी का 65 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है। देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है जिसे दूर करने के प्रति सरकार कतई गंभीर नही दिखती है। देश  की नई सरकार तथाकथित ''सेल'' कम्पनियों को बन्द कराना अपनी ईमानदारी का आइना समझती है मगर वह ये नही सोचती कि इन बन्द हो चुकी लगभग चार लाख कम्पनियों में जिनमे करोड़ो लोगों को रोजगार मिल रहा था अब उनका परिवार कैसे पल रहा होगा? नई सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते बड़े उद्योगपति तो दिन दूना रात चौगुना तरक्की कर रहे हैं मगर छोटे और कुटीर उद्योगों की अकाल मौत के चलते करोड़ां परिवार भुखमरी का संकट झेल रहा है। अपनी जिम्मेदारियों से भागने का सरकारों ने एक नया तरीका निकाल लिया है निजीकरण का। सरकार के कई विभाग दिनोदिन निजीकरण की ओर बढ़ रहे हैं और अधिकांश सरकारी योजनायें सेवा प्रदाताओं के जरिये चल रही हैं। वह सरकारी योजनायें भी जिनका निरंतर चलते रहना जरूरी है उनके लिए भी सरकार कर्मचारियों की भर्ती न कर सेवा प्रदाताओं के जरिये कर्मचारी रख कर काम करा रही है। चूँ कि लगातार 240 दिनों तक काम करने के बाद कर्मचारियों को नियमित करने का कानूनी विधान है इसलिए सरकार सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर) का सहारा लेती है। आउट सोर्सिंग कंपनियां भी अब अपने आप में एक उद्योग बनती जा रही है जहां सेवा तो है मगर वर्शोवर्श कार्य करने के बावजूद स्थयित्व नही है, रोजगार की गारंटी नहीं है।। इन आउट सोर्सिंग कम्पनियों पर कोई सरकारी नियंत्रण नही है। जब चाहते हें ले दे कर कर्मचारी भर्ती करते हैं और जब चाहते हैं निकाल देते है। सरकार शायद खुद देश के युवाओं को बंधक और बेबष बनाये रखना चाहती है। सरकारी योजनाओं के लिए भी संविदा कर्मियों की भर्ती में कुशल कार्मिक के नाम पर सवानिवृत कर्मचारियों को प्राथमिता दी जाती है और युवा बेराजगारोंका हक मारा जाता है। उत्तर प्रदेश में यह बीमारी कुछ जयादा ही है। आउट सोर्सिंग के तहत सिर्फ उत्तर प्रदेश मे 20 लाख लोग कार्यरत हैं, इनकी दशा अत्यंत दयनीय है,जो कि लोकतंत्र मे गुलाम खरीदने और मानव व्यापार का सबसे बड़ा उदाहरण है,आउट सोर्सिंग कर्मचारी को वेतन भी पूरा नहीं मिलता है न पी.एफ.की सुविधा है न मेडिकल की,इनके लिए वक्त जरूरत पर अवकाश भी अनुमन्य नही है। आउट सोर्सिंग कंपनियाँ मोटी रकम लेकर नौकरी देती हैं, और जिस दिन कोई भी कर्मचारी इन कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाता है,उसे निकाल बाहर कर दिया जाता है,एक एक साल तक वेतन नही मिलता है, कितने कर्मचारी अब तक आत्म हत्या कर चुके है ं, उन पीड़ित परिवारों की सिसकियां भी गरीबी और भूखे पेट में न जाने कहाँ दब जाती है,क्या होता होगा उन परिवारों का जिन के घर का एक मात्र सहारा उन्हे बेसहारा छोड़ कर चला जाता है। अभी भी समय है,इन आउट सोर्सिंग कंपनियों के ऊपर लगाम लाने की सख्त जरूरत है। यद्यपि यह संविदा कर्मी राजनीतिक दलों के लिए एक हथियार है और चुनावों के समय इनका भरपूर इस्तेमाल भी किया जाता है मगर सत्ता परिवर्तन के बाद ब्यूरोक्रेसी नये नीति नियंताओं को यह समझाने में कामयाब हो जाती है कि ''काम तो चल ही रहा है सरकार पर और आर्थिक बोझा डालने की क्या जरूरत है।भ्रष्ट अधिकारियों और आउट सोर्सिंग कंपनियों की मिलीभगत की वजह से,इन कंपनियों के मालिकों की चमडी बहुत मोटी हो गयी है, आउट सोर्सिंग संयुक्त कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मुख्य अतिथि के रूप मे एक युवा भाजपा नेता ने कहा कि ,इनकी खाल खींचने का समय आ गया है। इन भष्ट अधिकारियो को कर्मचारियो के पीड़ा का एहसास कराना बहुत जरूरी है, इस नेता ने कहा कि मुझसे कोई अगर पूछे की विश्व का आठवां आश्चर्य क्या है,तो मैं कहूँगा जिस देश की जनता अत्याचार सह कर भी चुप रहे यही विश्व का आठवां आश्चर्य है। नेतागीरी की बाते तो अलग हैं इन लोगों को तो भीड़ की तालियों से मतलब होता है इन्हे जनता की पीड़ा से क्या मतलब? जब जनता की पीड़ा ही समाप्त हो जाएगी तो इन नेताओं को पूछेगा कौन? मगर न्याय पालिका को इस मामले में स्वयं संज्ञान लेकर आउट सोर्सिंग कंपनियों के कर्मचारियों और उनके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए वरना देश के बेरोजगार युवा गुमराह भी हो सकते हैं होना यह भी चाहिए कि संविदा कर्मियों की भर्ती में कुशल कार्मिक के नाम पर सेवानिवृत कर्मचारियों की भर्ती सख्ती से बन्द कर दी जाये जब युवाओं को अवसर ही नहीं दिया जाएगा तो वह कुशल श्रमिक बन कैसे पायेंगे?


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