जुताई के कुछ खास तरीके

जुताई के कुछ खास तरीके


खेत की जुताई अहम होती है। किस फसल के लिए कितनी गहरी जुताई आवश्यक है, यह बात किसानों को समझनी होगी। धान एवं गेहूं जैसी फसलें जिनकी जड़ें ज्यादा गहरी नहीं जाती हैं, की जुताई कम गहरी भी हो तो काम चलेगा। केवल खेत की मिट्टी बीज अंकुरण के लिए बारीक हो जानी चाहिए।


जुताई कब करें-


*गर्मियों की जुताई का उपयुक्त समय यथासम्भव रबी की फसल कटते ही आरम्भ कर देनी चाहिए, क्योंकि


फसल कटने के बाद मिट्टी में थोड़ी नमी रहने से जुताई में आसानी रहती है तथा मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले


बनते हैं जिससे भूमि में वायु संचार बढ़ता है।


*यदि जुताई में विलम्ब करते हैं तो तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी कड़ी हो जायेगी और जुताई से पूर्व


सिंचाई की आवश्यकता होगी। इसलिए समय से जुताई करके हम अतिरिक्त सिंचाई पर होने वाले व्यय को


कम कर सकते हैं।


*जुताई के लिए प्रातः काल का समय सबसे अच्छा रहता है क्योंकि कीटों के प्राकृतिक शत्रु परभक्षी पक्षियों


की सक्रियता इस समय अधिक रहती है इसलिए प्रातः काल के समय में जुताई करना सबसे ज्यादा


लाभदायक होता है।


गर्मियों की जुताई कैसे करें :-


*गर्मी की जुताई 15 सेमी गहराई तक किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से ढ़लान के विपरित दिशा में करनी


चाहिए।


*बारानी क्षेत्रों में किसान ज्यादातर ढ़लान के साथ-साथ ही जुताई करते हैं जिससे वर्षा जल के साथ


मृदाकणों के बहने की क्रिया बढ़ जाती है। अतः खेतों में हल चलाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए


कि यदि खेत का ढ़लान पूर्व से पश्चिम की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानी ढ़लान के


विपरीत ढ़लान को काटते हुये करनी चाहिए।


गर्मियों की जुताई से लाभ :-


*रबी फसल की कटाई के तुरन्त बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने से फसलों में लगने वाले


कीट जैसे सफेद कीट, कटवा इल्ली, लाल भ्रिंग की इल्ली तथा ब्याधियों जैसे उकठा, जड़ गलन की


रोकथाम एवं भूमि में मौजूद कीटों के अण्डे, प्यूपा, लार्वा आदि खत्म हो जाते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप


खरीफ एवं साथ ही साथ रबी में बोई जाने वाली तिलहनी, दलहनी, खाद्यान फसलों और सब्जियों में लगने


वाले कीटों-रोगों का प्रकोप कम हो जाता है।


*ढ़लान के विपरीत दिशा में जुताई करने से मृदा कटाव रूकता है और वर्षा का बहुत सारा जल मृदा सोख


लेती है जिससे पानी जमीन के निचले स्थान तक पहुँच जाता है साथ ही पोषक तत्व भी बहकर नहीं जा


पाते हैं।


*मृदा में वायु संचार बढ़ जाता है जिससे लाभकारी सुक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है और फसल


अवशेषों के सड़-गल कर मिट्टी में मिलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। चूंकि मिट्टी की जल अवशोषण


क्षमता बढ़ जाती है इसलिए वर्षा होने पर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन जल में घुल कर मिट्टी की उर्वरता को


बढ़ाती है।


*गर्मी की जुताई से खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाते हैं साथ ही भूमि में पड़े खरपतवारों के बीज भी


अधिक तापमान के कारण नष्ट होने से आगे बोई जाने वाली फसलों में खरपतवारों का प्रकोप कम हो


जाता है।


जुताई करते फसलवॉर सावधानियाँ 


*हर मौसम और हर फसल में जुताई का स्तर अलग होने से उपज बढ़ती है।


* गरमी की गहरी जुताई से ज्वार आदि की खेती अच्छी होती है। उपज करीब 10 प्रतिशत बढ़ जाती है।


* गहरी जुताई से जमीन के अंदर बनी कड़ी परत को तोड़ा जा सकता है।


*धान की खेती में रोग संक्रमण की संभावना होती है।


*ज्यादा जुताई से सतह की मिट्टी बह जाने की संभावना बलवती हो जाती है।


*लगातार एक गहराई तक जुताई करने से अंदर कड़ी परत बन जाती है। ऐसे खेतों में उपज कम मिलती है।


*ज्यादा गहराई तक जड़ें जाने वाली ग्वार आदि की फसल के लिए गहरी जुताई आवश्यक होती है और इससे उपज भी बढ़ती है।


* कम गहराई तक जड़ें जाने वाली गेहूं, जौ, धान, ज्वार, बाजरा एवं मक्का की फसल के लिए ज्यादा गहराई तक जोतना नुकसान दायक रहता है।


*मानसून में ली जाने वाली फसलों के लिए गर्मी में की गई गहरी जुताई बेहद कारगर होती है।


* गर्मी की जुताई करते समय खेत में बड़े ढेल नहीं बनने चाहिए। इससे जुताई का खर्चा बढ़ता है।


*जिस जमीन की निचली परत में कंकड़ हों उसकी ज्यादा गहराई तक जुताई नहीं करनी चाहिए।


 


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