काश कोई मेरा होता ‘

जी हाँ यह कहना किसानों का ! किसानों का न तो भगवान है और ही भारत को चलाने वाले नेता एवं अधिकारी गण । फसलों को तो बार-बार अति वृष्टि और ओला वृष्टि ले जातीद है । अब सरकार की मार को कैसे झेला जाय । धान का बीज चाहिए तो पहले पंजीकरण करवाओं ,पंजीकरण करवाने के लिए खतौनी निकलवाओ ,बैक पास बुक की फोटा कापी, मोबाइल नम्बर  लाओं अब साइबर कैफे जाओ वहाँ पंजीकरण होगा मतलब बीज लेने से पहले लगभग सौ रुपये का खर्चा । इसके बीज नगद पैसा दे कर खरीदो एक सप्ताह में पैसा खाते में पहुँच जायेगा । मान्वर किसान की आमदनी का स्रोत क्या है कभी जानने की कोशिश किये है या जान बूझ कर अनजान बने हुए है । मेरी समझ से तो किसानों की आमदनी का स्रोत है फसल,  और दैविक आपदा के कारण गेहूँ  ,सरसों ,चना मटर ,अरहर सभी दलहनी ,तिलहनी एवं खाद्यान फसलें  नष्ट   जाती है और राहत के नाम पर 60 और 100 की चेक सरकार  द्धारा  सरकारी अफसरों के माध्यम से  बाँटी जाती है, अब किसान पैसा कहाँ से लाये और बीज कैसे खरीदें। तो जब फसल ही नही पैदा ही नही हुई तो किसान कहाँ पैसा ला कर अपना पंजीकरण कराये , फिर सम्बन्धित फसल के लिए खाद ,बीज,  शाकनाशी ,कीटनाशी , सूक्ष्म पोषक तत्व आदि खरीदें उसका यदि बैंक खाता खुला है तो ठीक नही तो खाता खुलवायें इसके सम्बन्धित अधिकारी और बैंक के चक्कर लगायें । महोदय भारत देश में अभी भी साक्षरता शत प्रतिशत नही है ,अभी भी बहुत से लोग खास कर ग्रामिण क्षेत्रों के बैंकों में अपनी जमा एवं निकासी पर्ची दूसरों से भरवातें है। और तो और कही -कही पर जमा एवं निकासी पर्ची भरने वाले दलाल बैंक के बाहर बैठे मिलते है और पर्ची भरने का शुल्क लेते है । और यदि किसान इसकी षिकायत कर दें तो आगे उसे कोई सुविधा नही मिलनी है। महोदय मरे हुए को क्यों मार रहे है । शहरी क्षेत्रों में तो लोग पढ़े लिखे है अपना अधिकार जानते है किन्तु किसान को हर कोई सताता है क्योंकि किसान अपना अधिकार जानता ही नही है और यदि जानने की कोशिश करता है तो उसे बताया ही नही जाता । शायद यही वजह है कि किसान किसी भी किसान मेला, किसान  गोष्ठी , कृषक प्रशिक्षण अथवा किसान वैठक में जाना नही पसन्द करता । इस तरह के आयोजनो में अधिकारियों  द्धारा  विकास खण्डवार बस भेज का विकास खण्ड के जिम्मेदारी पर गाँव से किसानों को खाद बीज या अन्य कोई लाभ का लालच देकर बुलाये जाते है । कुछ सीखने के उद्देष्य से तो गिने चुने किसान ही आते है, जो कि प्रगतिशील है और व्यवसायिक खेती कर रहे है । जो सही मायने में खेती कर रहे है उन्हें तो फुर्यत ही नही है की अपनी खेती का काम छोड़कर कही आये जाये और अपने हितोपयोगी  योजनाओं के बारें में जानकारी लें ।  


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण वंशावली

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा