खेत में सीधे बोई जाने वाली सब्जियों की पौध तैयार करना
खेत में सीधे बोई जाने वाली सब्जियों जैसे कद्दू, लौकी, तरोई, नेनुआ, ककड़ी, टिण्डा, करेला, पेठा, खीरा, खरबूजा, तरबूज की रोपाई टमाटर, बैंगन, मिर्च की तरह पौध उखाड़कर नहीं की जा सकती है क्योंकि इनकी जड़ों में सुवेरिन नामक पदार्थ पाया जाता है जो पोषक तत्वों को अवशोषित करने वाली कोशिकाओं के छिद्र बंद कर देता है। परिणामस्वरूप पानी एवं पोषक तत्वों की कमी से पौधे मर जाते हैं परन्तु यदि इनको सावधानीपूर्वक खोदकर खेत में इस प्रकार लगाया जाय कि इनकी जड़ों को कोई क्षति न हो तो यह आसानी से लग जाते हैं। इन फसलों की इस विधि से एक से दो माह तक अगेती खेती करके अधिक आय अर्जित की जा सकती है। इस विधि से दिसम्बर-जनवरी माह में पालीथीन थैलियों (आकार 10 X 7 सेमी. अथवा 15 X 10 सेमी मोटाई 200 गेज) की पेंदी में 2-3 छिद्र बनाने के पश्चात इन्हें मिट्टी, गोबर की खाद एवं बालू के 1ः1ः1 मिश्रण से भर कर हल्की सिंचाई करते हैं। इसके पश्चात इनमें 2-3 बीजों की बुवाई करते हैं। चूॅंकि ठण्ड (दिसम्बर-जनवरी) के कारण बीजों के जमाव में देर लगती है। अतः ऐसी परिस्थितियों में अंकुरित कराये हुए बीजों की बुवाई ही करनी चाहिए। बडे़ होने पर प्रत्येक थैली में एक या दो स्वस्थ पौधों को छोड़कर अन्य को निकाल देना चाहिए। पौधों की बढ़वार के लिए इन थैलियों को सूर्य प्रकाश में रखे और यदि अधिक ठंड हो तो पौध में विकास हेतु तापक्रम बढ़ाने के लिए लोटनल/पॉंलीहाउस में रखे तथा आवश्यकतानुसार पौधों की फुहारे से सिंचाई एवं कीट-रोगों से सुरक्षा करें तथा 4-6 पत्तियॉं निकलने के बाद फरवरी माह में रोपाई से 4-6 दिन पूर्व सिंचाई रोककर पौधों का कठोरीकरण (अनुकूलन) करें। रोपाई के 30-45 दिनों बाद उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है। इस विधि से पौध तैयार करने के निम्नलिखित लाभ हैं-
* एक से दो माह की अगेती फसल ली जा सकती है।
* बीज दर कम होने से उत्पादन लागत घट जाती है।
* बाढ़ या सूखे के समय जब खेतों में कार्य करना उपयुक्त नही रहता है तो अलग से पौधे तैयार कर खेती समय से की जा सकती है।
* वर्षा, कम या अधिक तापमान, ओला, कीट-रोगों से पौध सुरक्षा कर सकते हैं।
* पौधों के लिए आवश्यक वातावरण प्रदान कर समय से पौधे तैयार किये जा सकते हैं।