कृषि भूमि को सशक्त बनाने के तरीके

एक जमाना था जब आदमी कम थे और तुलना में भूमि अधिक थी। तब जमीन का कुछ हिस्सा पड़ती रखकर उसे विश्राम दिया जाता था और दूसरे वर्श पड़ती जमीन की जुताई करते थे। इस अदल-बदल से जमीन की उर्वराशक्ति का बचाव होता था। अब यह संभव न होने से हर साल फसल लेते हुए जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ाने का पराक्रम करना है- यह कैसे करेंगे?
1. भूमि का कटाव रोककर उर्वरा मिट्टी और खाद की रक्षा 2. जमीन में नमी बनाये रखने से जीवाणुओं की रक्षा और उनमें बढ़ोत्तरी 3. फसल चक्र में बदलाव 4. संमिश्र फसलें बोना 5. एक साल गहरी जड़ वाली और दूसरे साल उथली जड़ वाली फसलें बोना 6. हरित खाद 7. बाड़े में मुलायम कचरा मिट्टी हर सप्ताह डालकर गोबर-गोमूत्र का पूरा लाभ लेना 8. खेत में से फसल निकालने पर खाली जगह में हर सप्ताह अदल-बदल करके पशु रखना 9. खर-पतवार आदि से कंपोस्ट खाद बनाना 10. मूत्र में दस गुना पानी मिलाकर उसका छिड़काव फसल पर कम से कम तीन बार करना 11. छाछ, दूध आदि में पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव 12. तुरत-फुरत खाद हौदी में गोमूत्र गोबर-गुड़ के पानी से दस दिन में तैयार करना 13. आच्छादन14. केंचुओं द्वारा खाद 15. गो-सिंग खा 16. गो-सिंग सिलीका खाद 17. जीवाणु खाद 18. अमृत पानी 19. पंचगव्य 20. हड्डी चूर्ण 21. खली 22. राख 23. आदमी का मलमूत्र 24. गोबरगैस प्लांट स्लरी 25. समुन्दर का फेन 26. नील-हरित शैवाल 27. तालाबों की मिट्टी 28. अग्निहोत्र आदि।
किसान को जहाँ जो चीज उपलब्ध होंगी, उसका उपयोग करके जमीन की शक्ति में निरंतर बढ़ोत्तरी करते जाने का पुरुषार्थ करना है। अपने खेत पर उगाई फसल की बीमारी रोकने की दवाई भी बनावें।


                                           नडेप कम्पोस्ट
नडेप कम्पोस्ट पद्धति में खाद बनाने के लिए एक किलो गाय के गोबर से कम से कम 30-33 किलो खाद बन सकती है। आपके पास कचरा है, आपके पास गोबर है, गाय का मूत्र है, मिट्टी आपके खेत में है उसका इस्तेमाल करते हुए खाद बना सकते  है  100 किलो गाय का गोबर अगर आपके पास हो तो 100 किलो गाय के गोबर से आप कम से कम 3300 किलो खाद बना सकते हैं। तरीका है।
                                         बनाने का तरीका
इसका तरीका बिल्कुल सरल है; 100 किलो गाय का गोबर, 1500 किलो उसमें चाहिए बायोमास कचरा और करीब 1700 किलो चाहिए उसमें मिट्टी, और इन तीनों को एक खास तरीके की टंकी को बनाकर उसमें रखा जाता है। कैसे टँकी बनाया जाता है? मान लीजिए 2 मीटर लम्बा गडढा है आधा मीटर चौड़ा है करीब एक मीटर गहरा है ऐसा एक टंकी बनवाइये। उसमें बीच-बीच में छेद खुले रहें इस तरह से टैंक की चुनवाई करवाइये, और सके नीचे बायोमास का लेयर बिछाइए। फिर उसके बाद जो गाय का गोबर है, गौमूत्र के साथ मिलाकर उसकी एक परत बिछाईए, मिट्टी उसमें बिछाइए, फिर उसके ऊपर इसी तरह की परत बनाते चले जाईये। और जब वह पूरा भर जायेगा तो दो महीने तक उसकों ढंक के रखिए। दो ढ़ाई महीने के बाद खाद तैयार हो जायेगा। यह एक बहुत अच्छा तरीका है खाद बनाने का। आपके पास गाय है गाँव में, गाय का गोबर है, और गाय के गोबर का आप इस्तेमाल कर सकते है।
                                             पंचगव्य
गाय के विभिन्न उत्पादोे यथा गोबर,मूत्र,दूध,दही,घी से बना एक ऐसा प्राकृतिक जैव नियामक है जिसमें पौधों की बढ़वार प्रोत्साहित करने एवं रोग रोधक क्षमता बढ़ाने की अद्भुत क्षमता होती है।
                                     संपूर्ण-सात्विक सेंन्द्रिय खाद
पानी पत्ती, घास-फूस-कपास, अरहर-ज्वार के डंठल, भूस, गोबर, गोमूत्र, हड्डी, खाली आदि सेंद्रिय वस्तु से बनाये खाद को सेंद्रिय खाद कहते हैं। खनिज-पेट्रोल आदि से बनाये गये यूरिया-फॉस्फेट-पोटाश  आदि खाद रासायनिक खाद के नाम से जाने जाते हैं।
सेंद्रिय खाद से फसलों के लिये आवश्यक  नत्र,जन फास्फोरस पोटाश  इन तीन तत्वों के साथ-साथ तेरह सूक्ष्म द्रव्य भी प्राप्त होते हैं। जबकि रासायनिक खादों में सूक्ष्म द्रव्यों का अभाव होने से उन्हें अलग से डालना पड़ता है। इसी कारण सेंद्रिय खाद संपूर्ण खाद है और संद्रिय खाद रासायनिक खाद जैसा नुकसानदेह न होने से सात्विक खाद भी उसे कह सकते है।
अब यह बात साबित हो चुकी है कि रासायनिक खाद से भूमि दिनोंदिन बंजर बन रही है, वह महंगी भी है। नशा  के आदी व्यक्ति को जिस तरह मात्रा बढ़ानी पड़ती है या अधिक विशैला नशा करने की  आवश्यकता होती है। वैसे ही रासायनिक खाद की आदी भूमि भी नशे बाज बनाती है। इसलिए मृदा स्वास्थ्य के लिए सम्पूर्ण सात्विक सेन्द्रिय खाद का प्रयोग करना चाहिए।


                              जैव उर्वरको का कृषि  में महत्व
विगत 20-25  वर्षों  से विकसित एवं विकासशी ल देशो  में निःसंदेह उच्च उपज वाली किस्मों के प्रयोग से, सघन शस्य पद्वतियों के अपनाने से एवं बढ़े उर्वरकों के उपयोग से कृषि  उत्पादन में काफी  वृद्धि हुई है, लेकिन नत्रजन एवं फॉस्फेटिक उर्वरकों की कमी एवं उनके उच्च मूल्य ने जैव-उर्वरकों के प्रयोग को काफी महत्व एवं क्षेत्र दिया है, घटती एवं बिगड़ती मृदा की दषा की स्थिति में जैव-उर्वरक निश्चय ही मृदा उर्वरता एंव फसल उपज को बढ़ाने में मदद करते है जो तत्वीय नत्रजन की अनुपलब्धता को उपलब्ध बनाते है, फॉस्फेट को बॉधना, सड़े-गले पौधों के  अवशेष को पौधे को तत्व रूप में उपलब्ध कराना, ताकि उन्हे पौधे षोशित कर सकें, आदि कार्य है। अतः 21वीं सदी के शुरू के 20-25   वर्षों में जैव-उर्वरकों का प्रयोग करना होगा तभी आगे उत्पादन बढ़ा सकेंगे।
जैव उर्वरक के अतंर्गत राइजोबियम इनॉकुलेंट मुख्य है, जिसे विभिन्न दलहनी फसलों में प्रयोग किया जाता है, इसके अलावा नीजी-हरित षैवाल सायनों बैक्टीरिया जिसे यदि भूमि में प्रयोग किया जाए मुख्य रूप से धान में,तो वायुमंडलीय


नत्रजन को संचित करती है। आज देश  में अन्य जैव- उर्वरक-एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम व फॉस्फेट घोलक जैसे  ट्राईकोडर्मा   एसीटोबैक्टर भी बनाए जा रहें है जो  राष्ट्रीय  जैव'उर्वरक विकास केन्द्र(भारत सरकार) गाजियाबाद, नेफेड इंदौर एवं भरतपुर कृभको तथा इफको द्वारा तैयार किए जा रहे है, अनुमानित 80,000टन एक हेक्टेयर भूमि के ऊपर वायुमंडलीय नत्रजन अर्थात वायु में 78% एन (नाइट्रोजन ) मौजूद है जिसे आसानी से इन जैव-उर्वरकों द्वारा ही संचित किया जाता है, लेकिन पौधे अथवा जन्तु सीधे इस स्वतन्त्र एन का उपयोग नहीं कर सकते।
                                              उपसंहार
जैविक कृशि के कारण ही भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और उत्तम खेती, मध्यमवान,निकट चाकरी की कहावत प्रचलित हुई लेकिन सघन एवं रासायनिक खेती के कारण मृदास्वास्थ्य खराब हो गया तथा उत्पाद की गुणवत्ता में भी कमी आई है। पर्यावरण में खराबी आई है इसलिए जैविक खेती आज की एवं भावी पीढ़ीके लिए परम आवष्यक है।


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