माटी कहै किसान से क्यों रौंदे है मोहि....

क्या आप जानते हैं कि जिसे हम भू-लोक कहते हैं उस पर मात्र 30 प्रतिशत जमीन और 70 प्रतिशत पानी है। भूमि में पर्वत पठार नदियां झरने झील सड़के भवन सब कुछ समाहित हे लेकिन हम जिस भूमि पर खेती करते हैं, बागवानी करते हैं वनस्पतियां उगाते हैं दरअसल में वही मिट्टी होती है और पृथ्वी के उत्पत्तिकाल से एक इंच मिट्टी बनने में लगभग एक हजार वर्ष का समय लगता हैं जबकि हम जिस मिट्टी पर फसलें उगाते हैं उसकी कम से कम छह इंच मोटी पर्त होना जरूरी है। जबकि पेड़-पौधों और मूसल जड़ वाली वनस्पतियों के लिए तो मिट्टी की और भी मोटी पर्त होना जरूरी है यानी मिट्टी अमूल्य ही नहीं अनमोल है इसलिए हमें हर जतन करके मिट्टी का संरक्षण करना चाहिए। उसका पोषण करना चाहिए तभी मिट्टी भी हमारा सम्यक रूप से पोषण करेगी। मिट्टी ही हमारी असली धरती माता होती है क्योंकि वही तो हमें धारण करती हैं इसीलिए हमारे वुजुर्गों ने इसे माता की पदवी प्रदान किया है। लेकिन आज हम इतने स्वार्थी हो गये हैं कि हमं अपनी अपनी जन्मदात्री माता और भारत माता के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों का बोध ही नहीं रहा। आज हम अपनी धरती माता, गो माता और गंगा माता के प्रति लापरवाह हो गये हैं उनकी परवाह ही नही है हमें यही कारण है कि आज हम तमाम संकटों से घिरते जा रहे हैं फिर भी मिट्टी के प्रति हममें समझ नहीं जग रही हैं । मिट्टी और खाक में भी फर्क होता है । खाक निर्जीव होती है जबकि मिट्टी सजीव होती है।मिट्टी जीवित तत्वों और जीवाश्म का समूह होती हैं जिसमे ये16 प्रकार पोषक तत्व होते हैं इन 16 पोषक तत्वों.नत्रजन,फास्फोरस,पोटाश,मैग्नीशियम,कैल्शियम, सल्फर,लोहा,मालिब्डेनम,जिप्सम कोबाल्ट ,फेरस, सिलिकान शीशा, .क्लोराइड. मैगनीज व जस्ता की हमें यानी हमारी शरीर को भी जरूरत होती हैं जो कि मिट्टी हमें कृषि उपज के रूप में प्रदान करती हैं। उपरोक्त 16 पोषक तत्व हमारी मिट्टी में मौजूद तो जरूर है मगर हम धरती में अन्न का एक दाना डाल कर उससे एक हजार दाना वापस तो पाना चाहते हैं मगर धरती के पोषण का ध्यान बिल्कुल नहीं रखते हे। धरती माता तो अपने अन्दर मौजूद पोषक तत्वों को फसलों के जरिये कृषि उपज के रूप में हमें दे देती है और उन पोषक तत्वों के जरिये हमारी शरीर का पोषण होता हैं। हमारे पोषण के चक्कर में हमारी धरती माता का दामन खाली होता जा रहा है। हमें इस बात को हमेशा ध्यान में रखना होगा कि धरती माता हमें वही तत्व लौटायेगी जो हम उसे प्रदान करेंगे। यदि हम उसे जहर देते हैं तो हमे उससे अमृत की उम्मीद कतई नहीं करना चाहिए। यदि हम उसे अधूरे पोषण तत्व प्रदान करेंगे तो वह भी हमें आधा अधूरा ही लौटाएगी। हमारी मिट्टी की बदहाली के लिए हम स्वयं जिम्मेदार है। हम दो गलतियां कर रहे हैं । एक तो हम मिट्टी का अतिदोहन कर रहे हैं,जितना तत्व हम उससे ले रहे हैं उतना उसे लौटा नहीं रहे हैं। दूसरी गलती हम यह कर रहे हैं कि मिट्टी में दो तीन तत्व ही नत्रजन ,फास्फोरस, व पोटाश का इस्तेमाल जरूरत न रहने पर भी बिना सोचे समझे कर रहे हैं। इन कारणों से मिट्टी का सेहत खराब होती जा रही है। किसान भाइयों कृषि ऋषि परम्परा से जुड़ा हुआ वेद है, विज्ञान है शास्त्र और उप निषद भी है । कृषि का मूल तत्व है मिट्टी तथा कृषि कार्य को करते हुए हम भी जाने अनजाने में मिट्टी की सेहत को खराब करते हैं। अतः हमें यह प्रण लेना होगा कि जब हम मिट्टी को खोदें तो यह महसूस करें कि हम अपनी धरती माँ को मार-पीट अथवा काट कर घायल कर रहे हैं जब हम अपने खेतों में फसलोंकी लाख जलाये तो हम महसूस कंरें कि हम अपनी धरती माता की चमड़ी जला रहे हैं। हमें धरती माँ के प्रति मोह जगाना होगा। किसान भाइयों अपने खेतों में जब हम ट्रैक्टर चलाये तो यह महसूस करें कि हम अपनी धरती माँ को रौंद रहे हैं उसे सता रहे हैं। ट्रैक्टर से खेती करने पर हमारा कृषि कार्य तो जरूर जल्दी में हो जाता है मगर उसके भार और निर्मम दबाव से मिट्टी मे मौजूद कई सारे जीवित उत्तक,मित्र कीट कुचल कर मर जाते हैं और हमारी मिट्टी का भुरभुरापन दब कर खत्म हो जाता है। किसान भाइयों जब हम अपने खेतों में फसल सुरक्षा के जहरीले रसायन डालते हैं तो यह महसूस करे कि हम अपनी धरती माता को जबरन जहर पिला रहे हैं। हमारी सरकार भी मृदा संरक्षण के प्रति काफीसजग और प्रयत्नशी ल है। इस अभियान मे हमें भी अपना सतत और सक्रिय योगदान देना होगा।


 


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्राह्मण वंशावली

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा