मधुमक्खियों कोबचाने के लिए कीटनाशकों पर रोक

फ्रांस दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने उन पांचों
कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है जो मधुमक्खियों की मौत
के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। देखना होगा कि बाकी दुनिया
इस रास्ते पर कब चलती है।
यह बात तो शायद आप जानते ही होंगे कि हर तीसरा निवाला
जो हम खाते हैं वह मधुमक्खियों का दिया हुआ है। हमें उनका
शुक्रगुजार होना चाहिए। मधुमक्खियां लाखों किस्म के
पेड़-पौधों का परागण करती हैं। इसी से इन पेड़ों में फल और
बीज लगते हैं। अगर मधुमक्खियां न हों तो इन पेड़-पौधों का
अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। यहां तक कहा जाता है कि
मधुमक्खियों का अस्तित्व अगर समाप्त हुआ तो धरती की
हरियाली समाप्त हो जाएगी और वह धूसर रंग की हो जाएगी।
अफसोस की बात यह है कि लोगों ने मधुमक्खियों के महत्व
को बहुत ही देर से समझा। इसका अंदाजा तब हुआ जब वे
लाखों की तादाद में मरने लगीं और उनकी प्रजातियों के समाप्त
होने का खतरा तक पैदा हो गया। खासतौर पर खेती में
कीटनाशकों के इस्तेमाल से मधुमक्खियों की स्मरणशक्ति
प्रभावित होती है। वे छत्ते तक का अपना रास्ता भूल जाती हैं।
वे पंखों को फड़फड़ा नहीं पाती और उनकी प्रजनन क्षमता भी
कमजोर हो जाती है। इसके चलते वे समाप्त होने लगती है।
आज दुनिया भर में ही मधुमक्खियों की आबादी खतरे में हैं।
कहा जाता है कि वर्ष 1990 में जब पहली बार इन खास किस्म
के कीटनाशकों का इस्तेमाल शुरू फ्रांस में शुरू किया गया तो
मरी हुई मधुमक्खियों की कालीन सी बिछ जाने लगी। हालांकि,
उस समय कारपोरेट के दबाव में इस तरह की खबरों को दबा
दिया गया। नियोनिकोटाइड किस्म के कीटनाशकों को
मधुमक्खियों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है।
इसे देखते हुए यूरोपियन यूनियन ने तीन प्रकार के कीटनाशकों
पर प्रतिबंध लगाए हैं।
अब इस पर एक कदम आगे बढ़ते हुए फ्रांस ने पांच किस्म के
कीटनाशकों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। माना जा
रहा है कि इससे प्रकृति में परागण की जिम्मेदारी निभाने वाली
मधुमक्खियों और तितलियों को जीवनदान मिलेगा और फिर से
उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी।
पृथ्वी को करोड़ों-अरबों मधुमक्खियों की जरूरत है। धरती की
सेहत के लिए वे इंसानों से ज्यादा जरूरी हैं।


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