सम्यक वृद्धि उन्नतशील बीज,उत्पादन में

कृषि उत्पादन में सबसे ज्यादा महत्व सम्यक् प्रजाति के बीज, संतुलित उवर्रक एवं खाद सही समय और सही मात्रा में सिंचाई का है। सर्वप्रथम कृषि बीज के गुणवत्ता का विशेष महत्व है क्योंकि हमारे यहाँ फसलों की आवश्यकतानुसार सर्वोत्तम जलवायु होते हुए भी लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन बहुत ही कम है, जिसका प्रमुख कारण प्रदेश के कृषकों द्वारा कम गुणवत्ता वाले बीजों का निरन्तर प्रयोग है। गुणवत्तायुक्त  बीज प्रयोग न करने से फसलों में दी जाने वाली अन्य लागतों का भी हमें पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। विभिन्न फसलों में लगने वाले अन्य लागत जैसे- उवर्रक सिंचाई, कीटनाशक इत्यादि का अधिकतम लाभ अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग से ही सम्भव है। उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज के प्रयोग से ही लगभग 15 से 20 प्रतिशत उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि सम्भव है। इसलिए किसानों को अपनी फसलों के बीज जैसं-धान, गेहूं, एवं राई-सरसों तथा सूरजमुखी को छोड़कर समस्त दलहनी फसलों का बीज प्रत्येक तीन वर्ष में बदल कर बुवाई की जानी चाहिए। इसी प्रकार ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अरण्डी एवं राई/सरसों की फसलों में प्रत्येक तीन वर्ष पर बीज बदल कर बुवाई की जानी चाहिए, जिससे उत्पादन में वृद्धि हो सके।


                आनुवांशिक शुद्धता वाले शत-प्रतिशत बीज को ही उत्तम कोटि का माना जाता है। तथा ऐसे बीज की अंकुरण क्षमता उच्चकोटि की होनी चाहिए। गुणवत्तायुक्त बीज, खरपतवार की बीजों से रहित एवं रोग कीट के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। बीज शक्ति और ओज से भरपूर  होना चाहिए। खेत में बीज के अच्छे जमाव से ही अन्ततः उपज अच्छी होगी।


                उत्तर प्रदेश कृषि विभाग द्वारा खरीफ रबी, एवं जायद फसलों के विभिन्न प्रजाति के गुणवत्तायुक्त प्रमाणित बीजों का वितरण सभी जनपदों के विकास खण्ड स्थित कृषि बीज भण्डार के माध्यम से कृषकों को उपलब्ध कराया जा रहा है।


                इसलिए उ0प्र0 के सभी किसान भाईयों से अपील है कि वे अपने विकास खण्ड के राजकीय बीज भण्डार से उन्नतशील प्रमाणित बीज प्राप्त कर समय से बीज शोधनोंपरान्त निश्चित गहराई पर पंक्तियों में बुवाई करें जिससे उत्पादकता में 15 से 20 प्रतिशत अधिक वृद्धि हो सके। हर दूसरे वर्ष अपने पुराने बीजों को नये बीज से प्रतिस्थापित कर दें। शोधित बीज बच जाने पर पुनः बीज प्रयोगशाला से जमाव परीक्षण कराकर मानक के अनुरूप होने पर दोबारा बोया जा सकता है।


                भारत देश एवं उत्तर प्रदेश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या के जीविकोंपार्जन का साधन कृषि एवं पशुपालन है। इसलिए कृषि एवं पशुपालन को शीर्ष प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश एवं देश में आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में वांछित सुधार केवल खेती-बाड़ी के सुदृढ़ीकरण से ही संभव हें। इन उन्नतिशील प्रजातियों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों का टिकाऊ कृषि उत्पादन में उच्च स्थान है।


उत्तर प्रदेश में गेहूँ, धान एवं अन्य फसलों की प्रतिस्थापना दर क्रमशः 32, 28 एवं 5-8 प्रतिशत के लगभग है। संकर बीजों के प्रयोग से 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है।


बीज में सम्पूर्ण पौधे होता है। इसमें भ्रूण अवस्थित है, जिसकी अंकुरण क्षमता, आनवुशिक एवं भौतिक शुद्धता तथा नमी आदि मानकों के अनुरूप होने के साथ ही बीज जनित रोगों से मुक्त है।


बीज के प्रकार (Types of seed)


राज्य प्रजाति विमोचन समिति एवं केन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति के विमोचन एवं उत्तर भारत सरकार एवं भारत सरकार की अधिसूचना के उपरान्त ही बीज उत्पादित किया जाता है। बीज की अधिसूचित फसलों/प्रजातियों की निम्न श्रेणियाँ होती है।


अ. प्रजनक बीज (Breeder Seed) : प्रजनक बीज सम्बन्धित पादक प्रजनक की देखरेख में उत्पादित किया जाता है जिसमें आनुवंशिक एवं उच्च गुणवत्ता का पूरा ध्यान एवं विवरण रखा जाता है। ब्रीडर बीज आधारीय बीज के उत्पादन का स्रोत है। इस बीज के थैलों पर सुनहरा पीला (Golden Yellow) रंग का टैग लगाते है जिसे सम्बन्धित अभिजनक द्वारा जारी किया जाता है।


ब. आधारीय बीज (Foundation Seed)  : आधारीय बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है तथा आवश्यकतानुसार आधारीय प्रथम से आधारीय द्वितीय बीज का उत्पादन किया जाता है। इस बीज का उत्पादन, संसाधन, पैकिंग, रसायन उपचार एवं लेबलिंग आदि प्रक्रिया बीज प्रमाणीकरण संस्था की देखरेख में निर्धारित मानकों के अनुरूप की जाती है। आधारीय थैलों में लगने वाले टैग का रंग सफेद  (White) होता है।


स. प्रमाणित बीज (Certified Seed)  : कृषकों को फसल उत्पादन हेतु बेचा जाने वाला बीज प्रमाणित बीज है जिसका उत्पादन आधारीय बीज से बीज प्रमाणीकरण संस्था की देख रेख में मानकों के अनुरूप किया जाता है। प्रमाणित बीज के टैग का रंग नीला ;ठसनमद्ध  होता है।


द. सत्यापित बीज (टी.एल.) (Truthful Seed)  सत्यापित बीज का उत्पादन बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा आधारीय  अथवा प्रमाणित बीज से मानकें के अनुरूप किया जाता है। उत्पादन संस्था का लेबिल लगा होता है या थैले पर उत्पादक संस्था द्वारा नियमानुसार आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है।


बीज उत्पादन की तकनीकी प्रक्रिया (Technical Process of Seed Production) 


    बीज उत्पादन की तकनीकी विधि में एक चरणवद्ध योजना बनाकर बीज मानकों के अनुरूप वैज्ञानिक तरीकों से बीज उत्पादित किया जाता है जिससे बीज उत्पादन, संसाधन, भण्डारण एवं वितरण का कार्य प्रभावी ढंग से निष्पादित किया जाता है ताकि बीज की गुणवत्ता बीज के बोने तक बनी रहे। बीज उत्पादन प्रक्रिया की निम्न विशेषतायें है :-



  1. आधारीय बीज जो आनुवंशिक एवं भौतिक रूप से एकदम शुद्ध होता है।

  2. उन्नत कृषि शस्य विधियों एवं फसल सुरक्षा को अपनाया जाता है।

  3. आनुवंशिक या भौतिक संदुषण के स्रोतों से निर्दिष्ट पृथक्करण दूरी का ध्यान रखा जाता है।

  4. अनुपयुक्त पौधों को बीज उत्पादन हेतु फसल से समय -समय पर निकाला जाता है।

  5. खरपतवार और अन्य फसलों के पौधों को भी समय से निकाल देते है ताकि इन बीजों का फसल बीजों में मिश्रण न हो पायें।

  6. समय से रोगग्रस्त पौधों को भी रोग फैलाने के पूर्व निष्कासित कर दिया जाता है।

  7. बीज उत्पादन हेतु फसल की कटाई, मड़ाई, सफाई आदि में विशेष सावधानी रखी जाती है ताकि यॉत्रिक क्षति एवं मिश्रण न हो सकें।

  8. सुरक्षित वैज्ञानिक भण्डारण के समय कीट, रोग संक्रमण आदि की रोकथाम हेतु विशेष ध्यान एवं सावधानी रखा जाता है।

  9. आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता के लिए नियमानुसार परीक्षण किये जाते हैं तथा अंकुरण परीक्षण एवं आर्द्रता परीक्षण आदि भी किये जाते है।

  10. बीजों का संसाधन विशेष सर्तकता के साथ किया जाता है ताकि बीजों की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप बनी रहे।

  11. उत्पादित बीज को उपयुक्त थैलों में भरकर प्रमाण पत्र संलग्न कर सील किया जाता है।

  12. न्यून तापमान एवं आर्द्रता पर बीजों का भण्डारण किया जाता है जिससे रोग एवं कीट से बीज सुरक्षित रहे एवं अंकुरण क्षमता प्रभावित न हों।


बीजों की गुणवत्ता नियंत्रण हेतु प्रक्रिया बीजों की गुणवत्ता को वॉछित स्तर पर सुनिश्चित करने के लिए बीज प्रमाणीकरण का प्राविधान है। जनक बीजों का प्रमाणीकरण गठित समिति द्वारा किया जाता है जबकि आधारीय एवं प्रमाणिता बीजों का प्रमाणीकरण का उत्तरदायित्व प्रदेश का बीज प्रमाणीकरण संस्था का है। प्रमाणीकरण की प्रक्रिया निम्न चरण में पूर्ण की जाती है।


1.बीज सत्यापन:-


आधारीय एवं प्रमाणित बीजों का उत्पादन हेतु क्रमशः प्रजनक एवं आधारीय बीजों का प्रयोग आवश्यक है। उसी श्रेणी के बीज से उसी श्रेणी के बीज उत्पादन की अनुमति विशेष परिस्थितियों में दी जाती है। बीज प्रमाणीकरण संस्था निरीक्षण के समय बिल, भण्डार रसीद तथा टैग से बीज स्रोत का सत्यापन करती है।


2.फसल निरीक्षण:-


फसल के पुष्पावस्था एवं फसल पकने के समय दो निरीक्षण आवश्यक है। निरीक्षण के समय बीज फसल में अवॉछित पौधे नहीं होने चाहिए। फसल भी खरपतवार रहित होनी चाहिए। निरीक्षण के समय खेत में जगह-जगह पर काउन्ट लिये जाते हैं। काउन्ट की संख्या खेत क्षेत्रफल तथा एक काउन्ट पौधों की संख्या पर निर्भर करती है। यदि काउन्ट में आवॉछित पौधों की संख्या निर्धारित मानक से अधिक है तो फसल निरस्त कर दी जाती है।


3.प्रयोगशाला परीक्षण :-


 बीज विधायन के उपरान्त प्रत्येक लाट से न्यायदर्श लेकर प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेज दिया जाता है। जनक बीजों का परीक्षण विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला तथा आधारीय व प्रमाणित बीजों का परीक्षण बीज प्रमाणीकरण संस्था की प्रयोगशाला में किया जाता है। यदि कोई न्यायदर्श बीज मानक के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो उसको निरस्त कर दिया जाता है। आधारीय व प्रमाणित बीजों का परीक्षण बीज प्रमाणीकरण संस्था की प्रयोगशाला में किया जाता है। यदि कोई न्यायदर्श बीज मानक के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो उसको निरस्त कर दिया जाता है।


4.टैगिंग :-


  बीज विधायन के उपरान्त बीजों को ऐसे आकार के थैलों में भरा जाता है कि उसमें एक एकड़ बुवाई हेतु बीज आ जाय। जनक बीज पर सुनहरी पीले रंग का टैग सम्बन्धित प्रजनक तथा आधारीय व प्रमाणित बीजों पर क्रमश सफेद एवं नीले रंग के टैग बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा उपलब्ध करायं जाते है।


किसान भाइयों एवं सभी सम्बन्धित से अपेक्षा की जाती है कि अधिक उत्पादन हेतु उपरोक्तानुसार बीज के प्रकार बीज उत्पादन की तकनीकी प्रक्रिया तथा गुणवत्ता की जानकारी उपरान्त बीज का क्रय करें ताकि सम्यक उत्पादन एवं उत्पादकता प्राप्त हो सके।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्राह्मण वंशावली

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा