शिकाकाई की खेती

शिकाकाई सगंधीय श्रेणी कृषि योग्य समूह का वनस्पति है। इस वनस्पति का प्रकार  झाड़ी और,वैज्ञानिक नाम  अकाचिया कांसिना तथा सामान्य नाम शिकाकाई है। इसका उपयोग रूसी नियंत्रित करने के लिए, बालों के विकास के लिए और बालों को जड़ो से मजबूत करने के लिए किया जाता है। यह बालों को फफूँदी संक्रमण और असमय सफेदी से बचाता है।


इसकी फलियों का अर्क विभिन्न त्वचा रोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह मस्तिष्क पर एक ठंडा और उत्तेजक प्रभाव डालता है और जिससे गहरी नींद आती है।मलेरिया ज्वर में इसकी पत्तियों का उपयोग किया जाता है। फलियों के काढ़े का उपयोग पित्तदोष और रेचक के रूप में किया जाता है। इसके उपयोगी भाग  पत्तियाँऔर फली है।


उत्पति और वितरण



यह संपूर्ण भारत में विशेष रूप से डेक्कन क्षेत्र में पाया जाता है। वर्मा, दक्षिण चीन और मलाया में भी यह पाया जाता है। मध्य भारत में यह व्यापक रूप से मिलता है। मध्यप्रदेश में यह समान्य रूप से पाया जाता है।


प्रसार-शिकाकाई आमतौर पर उपयोग की जाने वाली उपचारात्मक गुणों से परिपूर्ण झाड़ी है। शिकाकाई का मतलब “ बालो के लिए फल ” होता है और सदियों से भारत में पारंपरिक रूप से इसका उपयोग प्रा.तिक शैम्पू के रूप में किया जा रहा है। भारत और सुदूर पूर्व एशिया में अब यह वाणिज्यिक रूप से पैदा किया जा रहा है। बालों के शैम्पू और साबुन के लिए यह एक प्रमुख घटक है।


स्वरूप - यह एक आरोही झाड़ी है।


इसकी शाखायें काँटेदार होती है जिन पर भूरे रंग की चिकनी धारिया बनी होती है। काँटे छोटे और चपटे होते है।


पत्तिंया - पत्तियाँ को डंठल 1 से 1.5 से. मी. लंबे होते है।


पत्तियाँ दो सुफने में 5-7 जोड़े के साथ होती है।


फूल- फूल गुलाबी रंग के होते है। फूलों के सिरे परिपक्व होने पर 1 से.मी. व्यास के होते है।


फल -फल फलियों में, मांसल, चोंचदार और संकीर्ण होते है।


बीज -एक फली में 6-10 बीज होते है।


परिपक्व ऊँचाई -यह 4 से 5 मीटर तक की ऊँचाई बढ़ता है।


 इसकी कोई किस्म जारी नहीं की गई है


बुवाई का समय एवं जलवायु


 यह उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है।


 यह गर्म और शुष्क मैदानों में अच्छी उगती है।


 इसे भरपूर सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है।


भूमि -पौधो को मध्यम उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है।


 इसे उदासीन से अम्लीय मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।


बुवाई-विधि भूमि की तैयारी


रोपाई से पहले भूमि में अच्छी तरह हल चला लेना चाहिए ।


खेत में क्यारियों के बीच उचित दूरी रखना चाहिए।


फसल पद्धति विवरण


पूर्ण प्रकाश में पौधे को लगाया जाता है। बीजों को बसंत ऋतु में जब तापमान 180 डिग्री से अधिक होता है तब उन्हे बोया जा सकता है।


 बुबाई के पहले बीजों को गरम पानी में भिगोया जाता है।


 रोपण के तुंरत बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए।


पौधशाला प्रंबधन


उत्पादन प्रौद्योगिकी ,खाद


भूमि की तैयारी के समय मिट्टी में FYM मिलाना चाहिए।


 रोपण के बाद आवश्यकतानुसार उर्वरक दिये जाते है।


सिंचाई प्रबंधन


पौधे को पानी की बहुत आवश्यकता होती है। यदि वर्षा नहीं हो रही है तो नियमित अंतराल से सिंचाई की आवश्यकता होती है।


 सिंचाई रोपण के 15 दिनों के बाद करना चाहिए। घसपात नियंत्रण  नियमित निदाई पौधे के विकास के लिए अच्छी होती है।


 30 दिन के अंतराल पर हाथ से की गई निदाई खरपतवार को नियत्रित करने में मदद करती है।


तुडाई, फसल कटाई का समय


 जब फलियाँ पक जाती है तब उन्हे एकत्रित किया जा सकता है।फल इकट्ठा करने के बाद तुरंत सुखाने के लिए भेजे जाते है।


फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन सुखाना


 साफ फलियों को सुखाने के लिए नीचे फैलाया जाता है।


 सुखाने के बाद फालियों को पीसने के लिए भेजा जाता है।


पैकिंग वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है।नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पालीथीन या नायलाँन के थैलों में पैक करना चाहिए।


भडांरण चूर्ण को सूखे स्थानों में संग्रहीत करना चाहिए।गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है।शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।


परिवहन सामान्यतरू किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।


दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।


 परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।


अन्य-उत्पाद


शिकाकाई हेयर वॅास ,शिकाकाई केश तेल व शिकाकाई चूर्ण


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