शून्य बजट खेती.

शून्य बजट का मतलब है ! चाहे कोई भी बागवानी की फसल हो या अन्य फसल हो , उसकी लागत का मूल्य शून्य  होगा। मुख्य फसल का लागत मूल्य आंतरवर्तीय फ़सलों के या मिश्र फ़सलों के उत्पादन से निकाल लेना और मुख्य फसल बोनस रूप में लेना या आध्यात्मिक कृषि का जीरो बजट है। फ़सलों को बढ़ने के लिए और उपज लेने के लिए जिन.जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है। वे सभी घर में ही उपलब्ध करनाए किसी भी हालत में मंडी से या बाजार से खरीदकर नहीं लाना। यही जीरो बजट खेती है। हमारा नारा है। गांव का पैसा गांव मेंए गांव का पैसा शहरों में नहीं। बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना ही गांव का जीरो बजट है।
फ़सलों को बढ़ने के लिए जो संसाधन चाहिए वह उनके जड़ों के पास भूमि में और पत्तों के पास वातावरण में ही पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। ऊपर से कुछ भी देने की जरुरत नहीं। क्योंकि हमारी भूमि अन्नपूर्णा है। हमारी फसलें भूमि से कितने तत्व लेती है। केवल 1.5 से 2. 0 प्रतिशत लेती है। बाकी 98 से 98.5% हवा सूरज की रोशनी और पानी से लेती है।


उद्देश्य 
खेती की लागत कम करके अधिक लाभ लेना।
ज़मीनध्मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना।
रासायनिक खादध्कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना।
कम पानीध्सिंचाई अधिक उत्पादन लेना।
किसानों की बाजार निर्भरता में कमी लाना।


शून्य बजट/प्राकृतिक खेती के मुख्य घटक 
आच्छादन 2 बाफसा 3 बीजामृत 4 जीवामृत


1 आच्छादान
(अ) मृदाच्छादन : हम जब दो बैलों से खींचने वाले हल से या कुल्टी (जोत) से भूमि की काश्तकारी या जोताई करते हैंए तब भूमि पर मिट्टी का आच्छादन ही डलते हैं। जिस से भूमि की अंतर्गत नमी और उष्णता वातावरण में उड़कर नहीं जातीए बची रहती है।
(ब) काष्टाच्छादन रू जब हम हमारी फ़सलों की कटाई के बाद दाने छोड़कर फ़सलों के जो अवशेष बचते हैंए वह अगर भूमि पर आच्छादन स्वरूप डालते हैंए तो अनंत कोटी जीवजंतु और केंचवे भूमि के अंदर बाहर लगातार चक्कर लगाकर चौबीस घंटे भूमि को बलवानए उर्वरा एवं समृद्ध बनाने का काम करते हैं और हमारी फ़सलों को बढ़ाते हैं।
(स) सजीव आच्छादन रू हम कपासए अरंडीए अरहरए मिर्चीए गन्ना, अंगूर, अमरुद, लिची, इमली, अनार, केला, नारियल, सुपारी, चीकू, आम, काजू आदि फ़सलों में जो सहजीवी आतर फसलें या मिश्रित फसलें लेते हैंए उन्हें ही सजीव आच्छादान कहते हैं।


2- वाफसा 
वाफसा माने भूमि में हर दो मिट्टी के कणों के बीच जो खाली जगह होती हैए उन में पानी का अस्तित्व बिल्कुल नहीं होना हैए तो उन में हवा और वाष्प कणों का सम मात्रा में मिश्रण निर्माण होना। वास्तव में भूमि में पानी नहींए वाफसा चाहिए। याने हवा 50% और वाष्प 50% इन दोनों का समिश्रण चाहिए। क्योंकि कोई भी पौधा या पेड़ अपने जड़ों से भूमि में से जल नहीं लेताए बल्किएवाष्प के कण और प्राणवायु के याने हवा के कण लेता है। भूमि में केवल इतना जल देना हैए जिसके रूपांतर स्वरूप भूमि अंतर्गत उष्णता से उस जल के वाष्प की निर्मिती हो और यह तभी होता हैए जब आप पौधों को या फल के पेड़ों को उनके दोपहर की छांव के बाहर पानी देते हो। कोई भी पेड़ या पौधे की खाद्य पानी लेने वाली जड़े छांव के बाहरी सरहद पर होती है। तो पानी और पानी के साथ जीवामृत पेड़ की दोपहर को बारह बजे जो छांव पड़ती हैए उस छांव के आखिरी सीमा के बाहर 1.1. 5 फिट अंतर पर नाली निकालकर उस नाली में से पानी देना चाहिए।


3- बीजामृत (बीज शोधन) 100 किलो ग्राम बीज के लिए :-
सामग्री
1.  5 किग्राण् गाय का गोबर
2.  5 लीटर गाय का गौमूत्र
3. 20 लीटर पानी
4.  50 ग्राम चूना
5. 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी
बनाने की विधि रू इस सभी सामग्री को चौबीस घंटे एक साथ पानी में डालकर रखें। दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। बाद में बीज पर बनाए हुए बीजामृत का छिड़काव करें। बीज को मिलाकर छाया में सुखाएं और बाद में बीज बोएं। बीज शोधन से बीज जल्दी और ज्यादा मात्रा में उगकर आते हैं। जड़े गति से बढ़ती हैं और भूमि से पेड़ों पर जो बीमारियों का प्रादुर्भाव होता है वह नहीं होता है।
अवधि प्रयोग रू बुवाई के 24 घंटे पहले बीजशोधन करना चाहिए।


4.  जीवामृत 
(अ) घन जीवामृत (एक एकड़ खेत के लिए)


सामग्री 
1- 100 किलोग्राम गाय का गोबर
2- 1 किलोग्राम गुड /ध्लों का गुदा की चटनी
3- 2 किलोग्राम बेसन (चनाए उड़द, अरहर, मूंग)
4- 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी
5- 1 लीटर गौमूत्र


बनाने की विधि 
सर्वप्रथम 100 किलोग्राम गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श व पोलीथीन पर फैलाएं फिर इसके बाद 1 किलोग्राम गुड या फलों गुदों की चटनी व 1 किलोग्राम बेसन को डाले इसके बाद 50 मेड़ या जंगल की मिट्टी डालकर तथा 1 लीटर गौमूत्र सभी सामग्री को फॉवड़ा से मिलाएं फिर 48 घंटे छायादार स्थान पर एकत्र कर या थापीया बनाकर जूट के बोरे से ढक दें। 48 घंटे बाद उसको छाए पर सुखाकर चूर्ण बनाकर भंडारण करें।


अवधि प्रयोग 
इस घन जीवामृत का प्रयोग छः माह तक कर सकते हैं।


सावधानियां .
सात दिन का छाए में रखा हुआ गोबर का प्रयोग करें।
गोमूत्र किसी धातु के बर्तन में न ले या रखें।


छिड़काव 
एक बार खेत जुताई के बाद घन जीवामृत का छिड़काव कर खेत तैयार करें।


(ब) जीवामृत - (एक एकड़ हेतु)
सामग्री 
1-10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर
2- 5 से 10 लीटर गोमूत्र
3- 2 किलोग्राम गुड या फलों के गुदों की चटनी
4- 2 किलोग्राम बेसन (चनाए उड़द, मूंग)
5- 200 लीटर पानी
6-50 ग्राम मिट्टी


बनाने की विधि
सर्वप्रथम कोई प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी लें फिर उस पर 200 लीण् पानी डाले। पानी में 10 किलोग्राम गाय का गोबर व 5 से 10 लीटर गोमूत्र एवं 2 किलोग्राम गुड़ या फलों के गुदों की चटनी मिलाएं। इसके बाद 2 किलोग्राम बेसनए 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी या जंगल की मिट्टी डालें और सभी को डंडे से मिलाएं। इसके बाद प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी को जालीदार कपड़े से बंद कर दे। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं और यह 48 घंटे बाद तैयार हो जाएगा।
अवधि प्रयोग 
इस जीवामृत का प्रयोग केवल सात दिनों तक कर सकते हैं।


सावधानियां 
प्लास्टिक व सीमेंट की टंकी को छाए में रखे जहां पर धूप न लगे।
गोमूत्र को धातु के बर्तन में न रखें।
छाए में रखा हुआ गोबर का ही प्रयोग करें।


छिड़काव
जीवामृत को जब पानी सिंचाई करते है तो पानी के साथ छिड़काव करें अगर पानी के साथ छिड़काव नहीं करते तो स्प्रे मशीन द्वारा छिड़काव करें।
पहला छिड़काव बोआई के 15 से 21 दिन बाद 5 लीटर छना जीवामृत 100 लीटर पानी में घोल कर।
दूसरा छिड़काव बोआई के 30 से 45 दिन बाद 5 लीटर छना जीवामृत 100 लीटर पानी में घोल कर।
तीसरा छिड़काव बोआई के 45 से 60 दिन बाद 10 लीटर छना जीवामृत 150 लीटर पानी में घोल कर।


60 से 90 दिन की फसलों में
चौथा छिड़काव बोआई के 60 से 75 दिन बाद 20 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर ।


90 से 180 दिन की फसलों में
चौथा छिड़काव बोआई के 60 से 75 दिन बाद 10.15 लीटर छना जीवामृत 150 लीण् पानी में घोल कर। पांचवा छिड़काव बोआई के 75 से 0 दिन बाद 20 लीटर छना जवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर।
छठा छिड़काव बोआई के 90 से 120 दिन बाद 20 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर।
सातवां छिड़काव बोआई के 105 से 150 दिन बाद 25 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर।
आठवां छिड़काव बोआई के 120 से 165 दिन बाद 25 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर। नौवां छिड़काव बोआई के 135 से 180 दिन बाद 25 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर पानी में घोल कर।
दसवां छिड़काव बोआई के 150 से 200 दिन बाद 30 लीटर छना जीवामृत 200 लीटर  पानी में घोल कर।


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