वानस्पतिक विधि से प्रसारण वाली सब्जियों की पौध तैयार करना

रोपाई योग्य एवं सीधे खेत में बोई जाने वाली सब्जियों के अतिरिक्त कुछ सब्जियॉं जैसे परवल, कुन्दरू, शकरकंद, ककरोल, करतोली इत्यादि के पौधों का प्रसारण उनकी शाखाओं, जड़ों व प्रकन्दो द्वारा किया जाता है। वानस्पतिक विधि से प्रसारित की जाने वाली सब्जियों के (प्रसारण) रोपण में प्रयुक्त भाग, कर्तनों/शाखाओं की लम्बाई एवं अखुये निकलने (प्रसारण) का समय निम्नलिखित तालिका-3 में दर्शाया गया है।


 वानस्पतिक विधि से प्रसारित की जाने वाली सब्जियों के रोपण में प्रयुक्त भाग, शाखाओं की लम्बाई और प्रसारण का समय


क्र. सं    सब्जियॉं                  लम्बाई                                                प्रसारण का उपयुक्त समय
1.           परवल                      20-25 सेमी. लम्बी व 5-7 गॉंठ वाली      अक्टूबर व फरवरी-मार्च
2.           कुन्दुरू                     20-25 सेमी. लम्बी, 2-3 गॉंठ वाली       फरवरी-मार्च व जुलाई-अगस्त
3.           करतोली व ककरोल   200-250 ग्राम वजन का कन्द       जुलाई-अगस्त (तना) फरवरी-मार्च (कन्द)


कर्तनों को कद्दूवर्गीय फसलों के बीजों की बुवाई हेतु तैयार की गयी छिद्रयुक्त पालीथीन की थैलियों में लगायें और 30-45 दिन बाद जब इनमें नई शाखायें निकलने लगे तब रोपाई करें। नर एवं मादा पौधों की नर्सरी अलग-अलग तैयार करें अन्यथा बाद में पहचान करना मुश्किल हो जाता है। रोपाई में नर व मादा का अनुपात 10ः90 रखना चाहिये।

रोपाई से पूर्व पौधों का उपचार


रोपाई के तुरन्त बाद पौधों की कीट-बीमारियों से सुरक्षा आवश्यक है। इस परिप्रेक्ष्य में रोपाई हेतु पौध उखाड़ने के एक दिन पूर्व पौधशाला में कीटनाशक एवं फफॅूंदनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए डाईमेथोएट 1.5 मिली. तथा मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रतिलीटर की दर से पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें।


रोपाई से पूर्व पौधशाला में पौधों का अनुकूलन


मुख्य खेत में रोपित करने के लिए पौधों को वातावरण के प्रति कठोर बनाना आवश्यक है। पौध रोपाई के बाद कम से कम मरे इसके लिए पौधशाला में पौधों को सहनशील बनाना आवश्यक है। इस क्रिया को अनुकूलन कहते हैं। अनुकूलन के उद्देश्य से पौध उखाड़ने के 4-7 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिये।


नियंत्रित वातावरण (लोटनल/पॉंली हाउस, ग्लास हाउस आदि) में उगाई गई पौध को उससे बाहर अर्ध छायादार स्थानों पर रखकर अनुकूलन करना चाहिए। उपरोक्त के साथ-साथ पौध का अनुकूलन करने से निम्नलिखित लाभ भी होते हैं-


* पौधों की जड़ों का उत्तम विकास होता है।
* खेत तैयार न होने की दशा में पौधों की बढ़वार रोकने में सहायक होता है।
* पौधों में पानी की कमी को सहन करने की क्षमता का विकास होता है।
* पौधों में कीट-रोग अवरोधिता का विकास होता है।
* दूर-दराज क्षेत्रों में पौधा भेजने में सुगमता रहती है।


सावधानियॉं


* पौधशाला के लिए बीज विश्वसनीय केन्द्रों से ही लें।
* रोपाई से पूर्व पौध का अनुकूलन अवश्य करें।
* पौध उखाड़ने के बाद जड़ वाले भाग में गीली मिट्टी का लेप लगायें ताकि जड़े सूखने न पायें।
* सही अवस्था की पौध ही लगाये। कम या अधिक अवस्था की पौध लगाने पर पैदावार पर कुप्रभाव पड़ता है।
* पौध रोपण सदैव सायंकाल में करें। सुबह के समय पौध लगाने से पौधे अधिक संख्या में मरते हैं।
* रोग एवं कीटों से ग्रसित पौध कदापि न लगायें क्योंकि इसका प्रभाव सीधे पैदावार पर पड़ता है।
* यदि पौध पर पत्तियॉं अधिक हों तो कुछ पत्तियॉं तोड़कर पौध लगायें तथा यदि पौध की ऊॅंचाई अधिक हो तो पौधे के ऊपरी       भाग की हल्की कटाई-छंटाई कर पौध लगायें।
* पौध निर्धारित/संस्तुत दूरी पर ही लगायें।
* पौध लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें।
* गर्मी एवं वर्षा में बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा जाड़ों में 40-45 दिन बाद पौध रोपाई योग्य हो जाती है। रोपाई के समय पौध 10-15 सेमी ऊॅंची होनी चाहिये।
* कीटनाशक-फफूॅंदनाशक दवायें बच्चों की पहुॅंच से दूर रखें।
* तेज हवा चलने की स्थिति में छिड़काव न करें।
* छिड़काव करते समय नाक व मुॅंह कपड़े से ढके तथा ऑंखों पर चश्मा चढ़ाये।


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