भारतीय कृषि क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियां हैं। 


कृषि विकास दर काफी कम तथा स्थिर है। इस क्षेत्र को भूतकाल की अपेक्षा बड़ी तेज गति से विकसित किए जाने की आवश्यकता है ताकि प्रति व्यक्ति आय एवं उपभोग को उच्च स्तर तक बढ़ाया जा सके। 
यह एक स्वीकार्य तथ्य है कि भारत की समग्र आर्थिक प्रगति के लिए अच्छा कृषि विकास आवश्यक है।
 कृषि-पारिस्थितिकी एवं उत्पादों के  दायरे को ध्यान में रखते हुए
भारतीय कृषि के समक्ष आवश्यकताओं, अवसरों एवं संभावनाओं की व्यापक विविधता की चुनौती है।
कम जल वाले वर्षा द्वारा खेती किए जाने वाले क्षेत्रों, जो जुताई की जाने वाली भूमि का 63 प्रतिशत है,में आस्थिर एवं निम्न उपज दर्ज की जाती है और सिंचित क्षेत्रों की अपेक्षा प्रौद्योगिकी अंतरण अंतर भी यहां काफी ज्यादा होता है। 
राष्ट्रीय कृषि विस्तार सेमिनार, 2009 के पृष्ठभूमि नोट में यह कहा गया है कि अविस्तारित भूमि, मृदा क्षय तथा जल संसाधनों, जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों, उत्पादन की बढ़ती हुई लागत, कम होती कृषि श्रम की उपलब्धता तथा कृषि में किसानों की घटती रूचि जैसी कुछ चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2025 तक 320 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करना तथा उसे बनाए रखना एक बेहद कठिन कार्य होगा। 
यदि भारत को इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करना है तथा तेज
विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो इसके लिए उत्साही एवं नवाचारी प्रौद्योगिकी के सृजन तथा डिलीवरी प्रणाली की आवश्यकता होगी।  
प्रौद्योगिकी के प्रसार पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। 
कृषि सूचना एवं प्रौद्योगिकी को अधिक प्रभावी ढंग से आंतरित करने के लिए शोधार्थियों, विस्तार कार्य में लगे हुए व्यक्तियों, किसानों एवं अन्य स्टेकहोल्डरों के बीच आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अधिक प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है। 
इसके अतिरिक्त, कृषि विस्तार के लिए ऊपर से नीचे तक प्रतिमान परिवर्तित करने कीआवश्यकता है तथा उत्पादकों को ज्ञान एवं समझ के साथ प्रौद्योगिकी पैकेजों की अनुशंसा की जानी चाहिए ताकि वे अपनी स्थल विशिष्ट समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकें। 
कृषि विस्तार की सबसे बड़ी कमी कृषि वैज्ञानिकों एवं विस्तार कार्यों में लगे हुए व्यक्तियों तथा किसानों के बीच परस्पर संवाद न होना है। 
इन बदलते हुए संदर्भों में किसानों की सहायता करने के लिए नई रणनीतियां तथा नवाचारी समाधानों की तत्काल आवश्यकता है जिसके लिए प्रौद्योगिकीय सहायता की आवश्यकता होगी।


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