एक देशी गाय से : 10-30 एकड़ खेती
भारत में हरित क्रान्ति के नाम पर अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों, हानिकारक कीटनाशकों हाइब्रिज बीजों एवं अधिकाधिक भूजल उपयोग से, भूमि की उर्वरा शक्ति, उत्पादन, भूजल स्तर और मानव स्वास्थ में निरन्तर गिरावट आयी है। किसान बढ़ती लागत, बाजार पर निर्भरता एवं सरकार की कृषि विरोधी नीति के कारण खेती छोड़ रहें हैं और आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो रहे है। बाद में आयी विदेशी तकनीक जैविक खेती (वर्मी कम्पोस्ट, कम्पोस्ट बायोडायनामिक) भी जटिल होने के कारण अन्ततः किसान को बाजार पर ही निर्भर बनाती है। अतः आवश्यकता है ऐसी कृषि पद्धति की जिसमें किसान को बार-बार बाजार न जाना पड़ें, उत्पादन न घटे, खेत उपजाऊ बने रहें व मानव रोगी न बने- वह है शून्य लागत प्राकृतिक खेती जिसमें खेत के लिये कुछ भी बाजार से नहीं खरीदना पडें।
शून्य लागत कैसे ?
1- मुख्य फसल का लागत मूल्य साथ में उत्पादित सह फसलों के विक्रय से निकाल लेना और मुख्य फसल को बोनस (शून्य लागत) के रुप में लेना।
2- कोई भी संसाधन (बीज, खाद, कीटनाशक आदि) बाजार से न लेकर इसका निर्माण अपने घर या खेम में करके बाजारी लागत शून्य करना। किसान बाजार से कुछ खरीदेगा नहीं, तो कर्ज भी नहीं लेगा।
शून्य लागत खेती का आधार-प्रकृति में सभी जीव एवं वनस्पतियों के भोजन की एक स्वालम्बी व्यवस्था है जिसका प्रमाण है बिना किसी मानवीय सहायता के जंगलों में खड़े हरे भरे पेड़ व उनके साथ रहने वाले लाखों जीव जन्तु। इस प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरुप खेती करना क्या है ।
प्राकृतिक व्यवस्था?-पौधों के पोषण के लिये आवश्यक सभी 16 तत्व प्रकृति में उपलब्ध रहते हैं। उन्हें पौधे के भोजन के रुप(Available Form) में बदलने का कार्य मिट्टी में पाये जाने वाले करोड़ो-अरबों सूक्ष्म जीवाणु जीव (अनके प्रकार के उपयोगी जीवाणु, फफूंद आदि) करते हैं। इस पद्धति में पौधों को भोजन न देकर भोजन बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणु की उपलब्धता पर जोर दिया जाता है। प्रकृति में इस सूक्ष्म जीवाणु की उपलब्धता की विशिष्ट व्यवस्था है?पौधों के पोषण की प्रकृति में चक्रीय व्यवस्था है। पौधा अपने पोषण के लिये मिट्टी से सभी तत्व लेता है। फसल के पकने के बाद काष्ठ प्रदार्थ (कूड़ा-करकट) के रुप में मिट्टी में मिलकर, अपघटित (Decompose) होकर मिट्टी को उर्वरा शक्ति के रूप में लौटाता है।
देशी गाय का कृषि में महत्व-एक ग्राम देशी गाय के गोबर में 300-500 करोड़ उपरोक्त सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं। गाय के गोगर में गुड़ एवं अन्य पदार्थ डालकर किण्वन (Fermemtatopm)से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ा कर तैयार किया जीवामृत/घनजीवामृत जब खेत में पड़ता है, तो करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु भूमि में उपलब्ध तत्वों से पौधों का भोजन निर्माण करते है।
देशी केंचुओं का कृषि में महत्व-केंचुआ मिट्टी, बालू पत्थर (कच्चा व चूना) खाता हुआ 15 फुट गहराई तक भूमि के नीचे जाता है। नीचे से पोषक तत्वों को ऊपर लाता है तथा पौधे की जड़ के पास अपनी विष्टा के रूप में छोड़ता है जिसमें सभी आवश्यक तत्वों का भण्डार होता है। केंचुआ जिस छेद से नीचे जाता है कभी उससे ऊपर नहीं आता है। भूमि में दिन रात करोड़ों छिद्र कर भूमि की जुताई कर मुलायम बनाता है इन्हीं छिद्रों से पूरा वर्षा जल भूमि में संग्रहित होता है। प्राकृतिक कृषि के चरण
1- बीजामृत (बीज शोधन)- 5 किलो गोबर, 5 ली0 गौमूत्र, 50 ग्राम चूना, एक मुट्ठी मिट्टी, 20 ली0 पानी में मिलाकर 24 घंटे रखें। दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। इसे 100 किलों बीजों पर उपचार करें। छांव में सुखाकर बोयें।
2- जीवामृत-जीवामृत सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है, जो पेड़ पौधों के लिए कच्चे पोषक तत्वों को पकाकर पौधों के लिये भोजन तैयार करते हैं। गौमूत्र 5-10 लीटर, गोबर 10 किलों गुड़ 1-2 किलो, दलहन आटा 1-2 किलों, एक मुट्ठी जीवाणुयुक्त मिट्टी (100 ग्राम), पानी 200 लीटर, मिलाकर, ड्रम को जूट की बोरी से ढककर छाया में रखें। सुबह-शाम डंडा से घड़ी की सुई की दिशा में घोलें। 48 घंटे बाद छानकर सात दिन के अन्दर ही प्रयोग करें।
जीवामृत प्रयोग विधिः-1 एकड़ में 200 लीटर जीवामृत पानी के साथ टपक विधि से या धीमे-धीमें बहा दें। छिड़काव विधि से पहला छिड़काव बुवाई के 1 माह बाद 1 एकड़ में 100 लीटर पानी 5 लीटर जीवामृत मिलाकर दें। दूसरा छिड़काव 21 दिन बाद 1 एकड़ में 150 लीटर पानी व 10 लीटर जीवामृत मिलाकर दें। तीसरा व चौथा छिड़काव 21-21 दिन बाद 1 एकड़ में 200 लीटर पानी व 20 लीटर जीवामृत मिलाकर दें। आखिरी छिड़ाकव दाने की दूध की अवस्था (Milking Stage) में प्रति एकड़ में 200 लीटर पानी, 5-10 लीटर खट्टी छाछ (मट्ठा) मिलाकर छिड़काव करें।
(Mulching) -भूमि को ढंकना-
देशी केंचुओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं के कार्य करने के लिये आवश्यक ''सूक्ष्म पर्यावरण'' एव भूमि की नमी को सुरक्षित करने हेतु भूमि को ढंका जाता है। सूक्ष्म पर्यावरण का आशय है पौधों के बीच हवा का तापमान 25-32 नमी 65/72 प्रतिशत व भूमि सतह पर अंधेरा। जब हम भूमि का काष्ठ पदार्थो से या अन्य प्रकार से आच्छादन करते हैं तो सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण होता है व देशी केंचुओं,सूक्ष्म जीवाणुओं का उपयुक्त वातावरण मिलता है एवं भूमि की नमी का वाष्पन नहीं हो पाता। बाद में काष्ठाच्छादन भूमि में अपघठित होकर उर्वरा शक्ति का निर्माण करता है। सह फसलों द्वारा भी भूमि को सजीव आच्छादन के द्वारा ढका जा सकता है।
बेड व नाली व्यवस्था द्वारा जल की बचत
जड़ें सीधे पानी न लेकर मिट्टी कणों के बीच वाफसा (50 प्रतिशत हवा व 50 प्रतिशत वाष्प) को लेती हैं। ऊँचे तैयार बेड पर फसलों को नालियों द्वारा पौधों की सिंचाई वाफसा के रूप में उपलब्ध कराने से पानी बहुत कम लगता है। नालियों को भी आच्छादन से ढक दिया जाता है, जिससे वाष्पन न हो।
बहुफसली पद्धति-फसल चक्र
उचित मिश्रित फसलों को लेने पर फसलों की जड़े सहअस्तित्व के आधार पर रोगों एवं कीटों से बचाव तथा प्राकृतिक संसाधनों (नाइट्रोजन, प्रकाश, जल, क्षेत्र आदि) का बँटवारा कर लेती हैं। एक दलीय के साथ द्वि-दलीय, दलहन के साथ अनाज व तिलहन, गन्ना के साथ प्याज एवं सब्जियाँ, पेड़ों की छाया में हल्दी, अदरक, अरबी जैसे प्रयोगों से भूमि को नाइट्रोजन स्वतः प्राप्त हो जाता है।
ध्यान देने योग्य बातें-
* इस पद्धति में कीट नियंत्रकों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती क्योंकि कीट आते ही नहीं फिर भी आवश्यकता पड़ने पर गोबर गौमूत्र, छाछ एवं वनस्पतियों द्वारा तैयार नीमास्त्र, ब्रहा्रास्त्र, अग्नियास्त्र, फफूँदनाशक, दशपर्णी अर्क आदि बनायी जाती है।
* प्राकृतिक कृषि में देशी बीज ही प्रयोग करें। हाइब्रिड बीजों से अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे।
* प्राकृतिक कृषि में भारतीय नस्ल का देशी गोवंश ही प्रयोग करें। जर्सी या होलस्टीन हानिकारक है।
* जीवाणुयुक्त मिट्टी हेतु, बट वृक्ष पीपल के नीचे या मेंढ़ की मिट्टी लें।
* पौधों व फसल की पंक्ति की दिशा उत्तर दक्षिण हो। दलहन की सहफसली खेती करनी चाहियें।
* वर्मी कम्पोस्ट बनाने में जो आयसेनिया फीटिडा नामक जन्तु प्रयोग होता है, केंचुआ नहीं है। यह जन्तु (कैडमीयम, आर्सेनिक, पारा, सीसा) आदि विषैले तत्व छोड़ता है, जो कि भूमि के लिये बेहद हानिकारक है।
* पौधों का भोजन जड़ के निकट ही बनना चाहिये। यदि किसी दूसरे स्थान पर बनाकर खाद (कम्पोस्ट) लाकर खेतों में डाला जायेगा तो मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु निष्क्रिय हो जायेंगे।
नारा-गाँव का पैसा गाँव में। गाँव का पैसा शहर में। शहर का पैसा गाँव में