खेती-किसानी एवं कृषि विभाग का सम्यक विकास सम्भव
“An Agriculture Officer without a dream of Sustainable Organic Agriculture and Agriculture Department without a vision of Co-operation of All for Development of All, will perish.”
शांति एवं विकास का सीधा-सकारात्मक सम्बन्ध है। अर्थात जिस देश , विभाग एवं परिवार में शांति होगी वहां समग्रता में विकास होगा। शांति, संघर्ष और विकास का शुभारम्भ मनुष्य के मन से होता है। हम जैसा सोचते है वैसा ही बन जाते है और जो सोचते है वही मिलता है। (What we think we become & get) शांतिप्रिय एवं विकासशील व्यक्ति समाज के लिए फलदायी एवं उपयोगी है जबकि अशांत व्यक्ति समाज में अषांति फैलाता है एवं व्यर्थ ही जीता है।(A Peaceful person is a fruitful & useful person and a peaceless mind is a useless mind) सर्वप्रथम हमे अपने जीवन और जीवन के लक्ष्य को समझना एवं तदनुसार क्रियान्वयन करते हुए अपने परिवार, विभाग, किसान के लिए उपयोगी बनना होगा। हमारे जीवन का परम लक्ष्य-''स्वअनुभूति'' एवं ''अपने को जानना'' (Self-Realization & Know Thyself) है तथा अपने को और अपने कर्तव्यों- अधिकारों को निष्काम भाव से निष्पादन करते हुए ईश्वर को समर्पित करना है। यह चिन्तन-मनन एवं आत्मविश्लेषण के लिए सर्वथा सबसे उपयुक्त समय है कि हम क्या और क्यों कर रहे है? कहीं ऐसा तो नही हम अपना बहुमूल्य समय का सदुपयोग न कर इसे व्यर्थ ही गलत स्वार्थ पूर्ति के कार्यो में लगा रहें है। अभी नही तो कभी नही।
कृषि विभाग की पूर्णता, शोभा एवं उपयोगिता उसके सातों अनुभागों के आपसी समन्वय एवं भाईचारा में निहित है, जिसकों परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। अगर हम अपने प्रयासों से कुछ बदल सकते है तो वह है सर्वहित में एकता, अनुशासन, भाईचारा तथा कृषि धर्म का सम्यक अनुपालन से। भारत के पड़ोसी देश के रुप में श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल हमेशा रहेंगे। इन्हें भौगोलिक रूप से कभी भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। लेकिन भाईचारा एवं शांति से सभी का सम्यक विकास अवश्य किया जा सकता है। इसी प्रकार कृषि विभाग की पूर्णता एवं मर्यादा के लिए सभी सातों अनुभाग एक स्थायी व्यवस्था है, जो गुलदस्ता के विभिन्न रुप-रंग वाले फूल के सामान शोभायमान है। जिसे प्रदेश के खेती-किसानी तथा भावी पीढ़ी के लिए बनाये रखना है।
प्राचीन एवं मध्यकाल में भारत को सोने की चिड़ियाँ, ''कृषि-ऋषि परम्परा'', विश्व आध्यात्मिक गुरु,''गुरु-शिष्य परम्परा'', संतुलित और सुसंस्कृतराश्ट्र ''योग तथा वर्णाश्रम व्यवस्था'' के कारण कहा जाता था। समृद्ध कृषि-ऋषि परम्परा के कारण ही ''उत्तम खेती, मध्यम वान, निकट चाकरी'' की कहावत प्रचलित हुई। हम प्राचीन कृषि-ऋषि परम्परा,
गुरु-शिष्य परम्परा और योग तथा वर्णाश्रम व्यवस्था को भूलने लगे। परिणामतः आर्थिक रुप से गरीब तथा आध्यात्मिक एवं नैतिक रुप से क्रमशः विपन्न होते गए।
लार्ड मैकाले ने फरवरी 1835 में ब्रिटिश पालिर्यामेन्ट में भारत के लिए नई शिक्षा नीति लागू करने के बारे में अपने सम्बोधन में कहा था कि भारत में मैने एक भी भिखारी एवं चोर नही देखा। भारत की आर्थिक समृद्धि, बुद्धिमत्ता, संस्कृति,एवं विरासत इतनी उत्कृष्ट कोटि है कि भारत को कभी भी जीता नहीं जा सकता है। लेकिन लार्ड मैकाले फिर कहता है कि भारत को मात्र दो तरह से जीता/पराजित/गुलाम बनाया जा सकता है। पहला-भारतीयों को यह विश्वास दिला दिया जाय कि अंग्रेजी भाषा एवं विदेशो में जो कुछ हो रहा है, वह अच्छा एवं आधुनिक है और भारत की संस्कृति एवं शिक्षा कालातीत हो गई है। तथा दूसरा-भारत की रीढ़ भारतीयता, भाषा , संस्कृति एवं विरासत की कमर तोड़ दी जाय। और वास्तव में यही हुआ। 184 साल बाद आज हम अंग्रेजी, अंग्रेजियत एवं पाश्चात्य सभ्यता तथा रासायनिक खेती को अपने जीवन तथा देश में अधाधुंध नकल कर अपनी गौरवषाली परम्परा, विरासत एवं संस्कृति को भूलने लगे है। गुलामी मानसिकता, कमजोर इच्छाशक्ति तथा राष्ट्रीय चरित्र का अभाव (Slave Mentality, Lack of Will Power & Lack of National Character) ही हमारे आर्थिक एवं नैतिक पतन का प्रमुख कारण है।
भारत=भा+रत (प्रकाश में रत)यानी सूर्य (प्रकाश) की तरह चमकने वाला राष्ट्र भारत वर्ष है। (India is the Light of World) । आपको जानकर शायद आश्चर्य होगा कि प्राचीन एवं मध्यकाल में भी ईश्वरीय कृपा से अन्य देशों के मुकावले भारत में प्राकृतिक संसाधन यथा भूमि, जल, वायु, सूर्य के प्रकाश प्रचुर एवं ज्यादा मात्रा उपलब्ध में था और है। जैविक कृषि एवं पशुपालन तकनीक तथा किसान का ज्ञान पूरे विष्व में सर्वश्रेष्ठ एवं प्रसिद्ध था। यही नहीं भारतवर्ष अकेले विश्व का लगभग एक तिहाई कृषि उत्पाद पैदा करता था एवं विश्व व्यापार में वृहत्तर भारत की भागीदारी लगभग 30 प्रतिशत थी। अंग्रेजों के आने से पहले भी कमोवेश भारत विश्व जगत में काफी समृद्ध एवं समुन्नत था। और समृद्धि ही वह कारण था कि पूरी दुनियाँ भारत को ललचाई नजरों से देखता है और भारत वर्श पर समय-समय पर आक्रमण करता रहा है, लेकिन वर्तमान में हमारे आत्मविश्वास -आत्मबल की कमी के कारण ही हमारी स्थिति बहुत खराब हुई है और हमारा पतन हुआ है। इसलिए हम भारतवासी नागरिक ही अपना पुराना गौरव एवं आत्मबल अपने पुरुशार्थ तथा आत्मोन्नति से ही प्राप्त कर सकते है।
अंग्रेजी शासन काल की 'फूट डालो और राज करो,' हड़पनीति, 'अत्यधिक कृषि कर,' आई0सी0एस0 एक्ट, लैण्ड एक्वीजीसन एक्ट, इन्डियन फारेस्ट एक्ट, इन्डियन वाईल्ड लाईफ एक्ट तथा रासायनिक खेती इत्यादि की असम्यक नीति के अविवेकपूर्ण अनुपालन से भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार जैविक कृषि एवं पशुपालन चरमरा गई और किसान की कमर टूट गई। फलस्वरूप भारत अकाल, भूखमरी एवं गरीबी की कगार पर आ गया और ये तीनों हमारे जीवन का अभिन्न अंग हो गया है।
1947 में स्वतंत्रता के बाद उक्त अंग्रेजी नीतियों के फलस्वरूप मजबूरी एवं समय की मांग (मुखमरी को दूर करना) के अनुसार 'हरितक्रांति' के नाम पर रासायनिक खेती-बाडी को अत्यधिक बढ़ावा मिला और फलस्वरूप हमारे प्रदेश में अन्न उत्पादन 12 मिलियन टन से बढ़कर 62 मिलियन टन तथा देश में खाद्यान्न उत्पादन 50 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 270 मिलियन टन हो गया। जिसमें हम सबका भी बधाई योग्य सराहनीय योगदान है। लेकिन रासायनिक कृषि के प्रोत्साहन से मृदा एवं मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण अत्यन्त खराब हो गया
था गरीब-अमीर की खाई, फसल एवं क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ता गया। कुपोषण की समस्या निरन्तर बढ़ती गयी। यही नहीं शस्य विज्ञान के सिद्धान्तों, फार्मिग सिस्टम (जैविक कृषि एवं पशुपालन), मिश्रित फसल, मिश्रित खेती इत्यादि की तिलांजलि से मृदा-मानव-पर्यावरण स्वास्थ्य की भारी हानि हुई है। अस्वस्थ मृदा से प्राप्त अस्वस्थ उत्पाद सेवन ही हमारी शारीरिक एवं मानसिक बीमारी (Psychomatic Disease) की मुख्य वजह है।
आज परम आवश्यकता है कि भारतीय उपलब्ध संसाधनों यथा जमीन, जल, जंगल, जानवर तथा जन आधारित ''प्राकृतिक जैविक कृषि'' तथा कम लागत की सम्यक तकनीक को बढ़ावा देकर प्रदेश एवं राष्ट्र को समृद्ध बनाने की, ताकि हम कृषि-ऋषि परम्परा के माध्यम से अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर सके। और यही हमारे समक्ष सबसे बड़ी समस्या एवं चुनौती है जिसे हमे स्वीकार कर समाधान -कृषि एवं ऋषि परम्परा पर बल देना ही होगा।
1 मई सन् 1920 में स्थापित कृषि विभाग का अतीत अत्यन्त गौरवशाली रहा है एवं इसकी समृद्ध परम्परा रही है। कृषि विभाग का दायित्व क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुसार तकनीकी विकास एवं उनका प्रसार तथा सम्यक कृषि निवेश प्रबन्धन के माध्यम से विभिन्न फसलों की उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि करने तथा प्रदेष में कृषि विकास दर को गति प्रदान करना है। इस कार्य हेतु राज्य सरकार, भारत सरकार एवं राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से उपयोगी कार्यक्रमों के क्रियान्यवन का दायित्व कृषि विभाग उ0प्र0 पर है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए क्षेत्र विशेष हेतु विशिष्ट एवं तकनीकी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन तथा खेती-बाड़ी में रोजगार के नये अवसर सृजित करना है।
''कृषि मूलश्च जीवनम्'' अर्थात कृषि हमारा जीवन एवं धर्म है। पशु हमारा धन है। अन्य बातों के अलावा हमारी गौरवषाली परम्परा का प्रमुख कारण कृषि विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों का नैतिक आचरण, कार्य का उच्च मानदण्ड, विभाग तथा किसानों के प्रति लगन एवं निष्ठा के साथ समर्पण, आपसी एकता, शान्ति, भाईचारा एवं तात्कालिक परिस्थितियाँ रही है। किसान अन्नदाता है। इसलिए हमारा अराध्य है। भूमि (मृदा) हमारी माता है। कृषि विभाग हमारी जीवन रेखा है। इसलिए भूमि का स्वास्थ्य, प्राकृतिक जैविक खेती-बाड़ी एवं किसान की खुशहाली हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश हम निजी स्वार्थो एवं अनुभाग युद्ध के कारण अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों को भूल गए है और अपने जीवन के मूल उद्देश्यों से भटक गए है, जिससे सबका अहित हो रहा है। हम सभी निजी स्वार्थवष एक दूसरे को परास्त करने में अपनी ऊर्जा का गलत प्रयोग से अशान्त हो, और कर रहे है। मानसिक शांति के अभाव में सारे पद वैभव एवं एश्वर्य व्यर्थ है। हमारा नियत कर्म यानी कृषि प्रेम एवं खेती-बाड़ी का कार्य तथा विकास ही राज्य एवं राष्ट्र प्रेम है। हमारा लक्ष्य अपने तथा परिवार और कृषि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र एवं नियतकर्म से प्रेम करना चाहिए। जिस मिट्टी एवं प्रदेश में हमने जन्म लिया, उसका हमे सदैव ऋणी रहना चाहिए। यदि हम अपने नियत विभागीय कार्य एवं राष्ट्र हित में पूर्ण निष्ठा रखें और सभी नियम-कानूनों का पालन करें तो उस राष्ट्र एवं विभाग की चारों ओर तारीफ होती है। नियत कार्य न करने से हमारे एवं विभाग के साथ-साथ देष के चरित्र का भी पतन होता है। हमारी आपसी लड़ाई एवं गलत प्रतिद्वन्द्वता के कारण कृषि विभाग की छवि धूमिल हो रही है। जिस विभाग एवं देष में लोगों के बीच आपस में नफरत और घृणा व्याप्त होगी, उस प्रदेश में अधिकारियों एवं विभाग की छवि नकारात्मक होगी। इसके विपरीत जहां लोग आपसी मतभेदों एवं स्वार्थो को भुलाकर स्वयं, विभाग तथा खेती-किसानी के हित में सेवा और त्याग का परिचय देंगे, वहाँ प्रदेश -देश एवं विभाग की छवि सकारात्मक होगी। जिस प्रकार प्रेम के अभाव में मनुष्य के अस्तित्व का कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह आपसी भाईचारा एवं प्रेम के बिना हमारा, कृषि विभाग एवं खेती-बाड़ी का विकास कदापि संभव नहीं है। आपसी वैमनस्यता, नफरत एवं घृणा, मनुष्य, विभाग और देश-प्रदेश सभी को भीतर ही भीतर खोखला कर देती है। वैसे गाँधीजी के अनुसार हमारी आवष्यकता के लिए ईष्वर ने पर्याप्त संसाधन दिए है लेकिन लालच की पूर्ति के लिए विष्व के समस्त संसाधन भी कम है। (Resources are enough for our need But not for our greed)। सातंवे वेतन आयोग के लागू होने से हमारी समस्त भौतिक एवं आर्थिक आवष्यकता पूर्ण हो जाती है। ऐसे में कृषि विभाग के अधिकारियों को आपस में प्रेम एवं भाईचारा रखते हुए एक साथ एक दिशा में जनहित में अपने एवं भावी पीढ़ी के विकास के लिए अग्रसर होना चाहिए। हालांकि अलग-अलग अनुभागों के अधिकारियों के बीच आपस में 'मतभेद' स्वाभाविक हैं, लेकिन उनके बीच 'मनभेद' कभी नहीं होना चाहिए। वैसे कृषि विभाग में बीते कुछ सालों से कार्य संस्कृति एवं सामाजिक परिदृष्य पूरी तरह बदल गया है, जिसकी वजह से विभाग में भाईचारा, नफरत और वैमनस्यता बढ़ रहा है। यदि विभाग एवं हम में अशांति रहेगी तो खेती-बाड़ी, हम, किसान एवं विभाग कैसे खुश रह सकता है?
वर्तमान में प्रचलित कृषि सेवा श्रेणी-1 की सेवा नियमावली की सम्यक सदुपयोग एवं व्याख्या न होने एवं कृषि तथा विषेशज्ञता को नजरंदाज करने से वरिश्ठ अधिकारियों को कनिष्ठ अधिकारियों के अधीन कार्य करना पड़ रहा है जो कार्य संस्कृति एवं नैसर्गिक नियमों के विपरीत है। आज क्षेत्रीय कार्यालयों एवं कृषि निदेशालय के बीच तथा कृषि निदेषालय एवं कृषि सचिवालय के बीच अनुभागबाद की वजह से अविश्वास का माहौल तथा लगभग हर अधिकारी अनजाने भय (जो वास्तव में होता नहीं है) से ग्रसित है जो निसन्देह स्वंय, कृषि विभाग एवं खेती-किसानी के लिए शुभ नही है। उ0प्र0 शासन भी हमारी समस्या का समाधान करता प्रतीत नहीं हो रहा है। यदि उ0प्र0 शासन द्वारा समय से प्रत्येक वर्ष, सभी अनुभागों का एक साथ आवश्यकतानुशार अधियाचन उ0प्र0 लोक सेवा आयोग में भेजा जाता और तदनुसार चयन होता तो वर्तमान नियमावली के अनुसार भी सभी को समान रुप से लाभ एवं न्याय मिलता रहता। लेकिन षासन इस सम्बन्ध में सर्वथा असंवेदनशील एवं उदासीन है।
हमारी एवं कृषि विभाग की पहचान कृषि विषेशज्ञता एवं कृषि की विशेष योग्यता से ही होती है। हमारी विशेषज्ञता एवं तकनीकी योग्यता समाप्त होते ही हमारी एवं विभाग की उपयोगिता एवं उपादेयता समाप्त हो सकती है। कृषि विभाग में वर्तमान प्रचलित सेवा नियमावली श्रेणी-2 1995 एवं सेवा नियमावली श्रेणी-1 1992 के पूर्व तकनीक एवं विषेशज्ञतायुक्त कृषि विभाग में श्रेणी-2 के लिए युक्त United Provinces Agricultural Service, Class-II Rules 1930 एवं श्रेणी-1 के लिये न्दUnited Provinces Agricultural Service, Class-I Rules 1934 नियम लागू थे। जो वर्तमान सेवा नियमावली श्रेणी-2 1995 एवं सेवा नियमावली श्रेणी-1 1992 का आधार है। उक्त दोनों नियमावलियों 1930 एवं 1934 के कैडर में एक समान सेक्शन्स यथा-बी,सी,डी, एवं ई का प्राविधान था तथा सर्विस रूल 1934 श्रेणी-1 में विषेशज्ञता एवं खेती-बाड़ी को ध्यान में रखते हुए सम्यक पदोन्नति के लिये निम्नलिखित प्राविधान थेः-
Rules-6 (3):- For Section-B:- By Promotion from Section –B of the Cadre of United Provinces Agricultural Service,Class-II.
Rules-6 (4):- For Section-C:- By Promotion of an officer holding a corresponding Post in Section–C of the Cadre of United Provinces Agricultural Service, Class-II.
Rules-6 (5):- For Section-D&E:- By Promotion from Section–D&E, Respectively of the Cadre of United Provinces Agricultural Service, Class-II.
इस प्रकार कृषि तकनीक की आवष्यकता एवं विशेषज्ञता के कारण श्रेणी-2 के प्रत्येक सेक्शन के लिये पदोन्नति उसी सेक्शन में किये जाने की स्पष्ट एवं सम्यक व्यवस्था थी। इस स्पष्ट एवं न्यायसंगत व्यवस्था के फलस्वरूप कम अवधि की श्रेणी-2 की सेवा वाले अधिकारियों के अपने ही सेक्षन में कार्यरत होने के कारण (कृषि सांख्यिकी शाखा की भांति) अन्य सेक्षन के श्रेणी-2 से ऊपर ज्येष्ठता प्राप्त होने की स्थिति उत्पन्न होने की कोई सम्भावना नहीं थी। उल्लेखनीय है कि उस समय तक सभी के लिए मार्गदर्षन हेतु ज्येष्ठता निमयावली 1991 अस्तित्व में नहीं थी। इसलिए उ0प्र0 शासन विभाग कार्मिक द्वारा जारी उ0प्र0 राजकीय सेवक ज्येष्ठता नियमावली-1991 के नियमों के अनुसार ही सर्विस की ज्येष्ठता सूची तैयार की जानी चाहिए, क्योंकि यही नैंसगिक व्यवस्था सभी विभागो में लागू है और सर्वमान्य भी है।
वर्तमान में श्रेणी-1 में विशेषज्ञता समाप्त होने से कृषि विभाग, खेती-किसानी, कार्य संस्कृति एवं कृषि कार्यो की गुणवत्ता कुप्रभावाहित हो रही है। इसलिए स्वंतंत्रता के पहले कृषि विभाग की प्रचलित उक्त सेवा नियमावली 1930 श्रेणी-2 एवं श्रेणी-1 सेवानियमावली1934 सम्यक एवं उपयोगी है
क्योंकि खेती-बाड़ी की मांग के अनुरूप योग्यता एवं विषय वस्तु विशेषज्ञता के कारण अधिकारियों की प्रत्येक अनुभाग के लिए पदोन्नति उसी सेक्सन में किए जाने की स्पश्ट एवं न्यायसंगत व्यवस्था होने के फलस्वरूप नियमानुसार कनिष्ठता एवं ज्येष्ठता के साथ-साथ कार्य संस्कृति एवं विशेषज्ञता भी बनी रहेगी। जैसाकि आज कृषि विभाग के कृषि सांख्यिकी शाखा के अधिकारियों को उसी शाखा में प्रोन्नति वरिष्ठता के आधार पर होने से उस शाखा के किसी अधिकारी को कोई आपत्ति नहीं है। इसी प्रकार की व्यवस्था सभी अनुभागों वी0,सी0,डी0 में होना ही वर्तमान समस्या का एक सम्यक एवं तात्कालिक एक मात्र समाधान प्रतीत होता है। प्रथम दृष्टया वर्तमान में सेवा नियमावली श्रेणी-1 1992 में विषेज्ञता समाप्त करना अविवेकपूर्ण एवं स्वार्थ से प्रेरित होना प्रतीत होता है।
वर्तमान समय में आपसी गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा, मन-भेदों तथा मुकदमेबाजी के कारण कृषि विभाग में वर्श 2002-03 की सापेक्षवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वर्ष 2002-03 के पहले आपसी कटुता एवं अनुभाग लड़ाई के कारण पूरा विभाग सापेक्षवाद से ग्रसित था और एक दशक तक सभी अधिकारी उच्च पदो पर कार्य करने के बावजूद कनिष्ठ पदो से सेवानिवृत्त हुए। खेती-किसानी प्रभावित हुई एवं विभाग की बदनामी हुई वह अलग थी। उदाहरणार्थ श्री इक्ष्वाकु सिंह जी कृषि निदेषक उ0प्र0 के रूप में लगभग ढाई वर्श तक सफल सेवा दिए लेकिन अन्ततः सापेक्षवाद के शिकार होकर संयुक्त कृशि निदेषक के रुप में सेवानिवृत्त हुए। उस समय पूरा कृषि विभाग वर्तमान की भाँति विभिन्न शाखाओं के मुकदमों से आच्छादित था और पूरा विभाग सापेक्षवाद से ग्रसित था। अब तक हम सभी का करोड़ो रुपया अधिवक्ताओं की फीस के रूप में अपव्यय हुआ है और हो रहा है, जबकि यह धनराशि अधिकारियों तथा किसानों के परिवारों के कल्याणार्थ खर्च होना चाहिए। सभी अधिकारी मनोयोग से नियत कार्य करने के
स्थान पर आपसी प्रतिद्धन्द्धिता में आगे निकलने का असफल प्रयास कर रहे है जो किसी के भी हित में नहीं है।
वर्श 2002-03 में आप सभी के आशीर्वाद से उत्तर प्रदेश राजपत्रित कृषि सेवा एसोसिएशन 'उपासा' की एक ऊर्जावान प्रदेश कार्यकारिणी के गठन तथा निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित होने के पश्चात 'उपासा' द्वारा प्रयास एवं अनुरोध करके सभी सम्बन्धित अधिकारियों से मुकदमों को जनहित में वापस कराया गया और तब से गत वर्श 2018 तक नियमित पदोंन्नतियाँ होती रही है। लेकिन इतिहास पूनः 2003-04 की सापेक्षवाद को दोहरा रहा है और गत एक वर्श से प्रोन्नतियाँ एवं डी0पी0सी0 की प्रगति इत्यादि बाधित होने से सभी अनुभाग के अधिकारियों एवं विभाग तथा खेती-किसानी की अपूरणीय क्षति हो रही है। साथ ही साथ वैमनस्यता एवं कटुता भी बढ़ रही है। आज अधिकारियों में भय, क्रोध और कुंठा व्याप्त है, जिसे प्रत्येक दशा में तत्काल दूर किया जाना चाहिए। अन्तर विभागीय सद्भावना एवं समन्वय के लिए सामूहिक रुप से सभी अनुभागों के अधिकारियों को मिल जुलकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थो को त्यागकर सर्वहित में सार्थक प्रयास करना होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी। ''उपासा'' के सर्वसम्मत प्रयास से ही वर्ष 1914 में शासन द्वारा श्रेणी-1 में व्याप्त विसंगतियों को स्वीकार करते हुए इसे दूर करने हेतु शासनादेश सं0-59 दिनांक 18.11.2014 द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया था। लेकिन साढे चार साल बाद अभी तक विसंगितयां को दूर नहीं होने से सारी समस्याए यथावत है। सेवा नियमावली में अन्य विसंगतियों के अलावा एक मुख्य विसंगति यह है कि नियमावली के अनुसार योग्यताप्राप्त पात्र अभ्यर्थियों का चयन उ0प्र0 लोक सेवा आयोग द्वारा लिखित परीक्षा के माध्यम से होना चाहिए जबकि वास्तव में शोध शाखा के अधिकारियों का चयन मात्र साक्षात्कार के आधार पर होता आया है। इस विसंगति को तत्काल दूर किया जाना अति आवष्यकता है। अगर उक्त नियमावली में विसंगतियों को दूर करने के लिए उ0प्र0 शासन द्वारा समय से सम्यक कार्यवाही की गई होती एवं समय से सभी अनुभागों का एक साथ अधियाचन भेजा गया होता तो अधिकारियों को मा0 न्यायाधिकरण/उच्च न्यायालय में षरण लेने की स्थिति उत्पन्न नही होती। वर्तमान में मा0 न्यायाधिकरण के आदेश /निर्णय दिनांक 06.06.2017 के अनुपालन में श्रेणी-1 की शासन द्वारा वरिष्ठता सूची निरस्त कर दी गई है। फलस्वरूप वर्तमान मं श्रेणी-1 के सभी अधिकारी, श्रेणी-2 में ही है। यद्यपि श्रेणी-1 की ज्येष्ठता सूची एवं पदोन्नति की कार्यवाही षासन स्तर पर क्रमिक है, लेकिन व्याप्त समस्याओं के कारण तत्काल जारी होना संभव प्रतीत नहीं होता है।
उल्लेखनीय है कि मा0 न्यायाधिकरण के निर्णय दिनांक 06.06.2017 के अनुपालन के फलस्वरूप अधिकारियों की ज्येष्ठता में भारी उलटफेर तथा अफरातफरी मचना स्वाभाविक है। इससे कृषि विभाग की कार्यसंस्कृति एवं प्रशानिक ढांचा चरमराने से खेती-किसानी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। श्रेणी-1 में वरिष्ठता सूची तय करने के सम्बन्ध में मा0 राज्य अधिकरण द्वारा दिनांक 24.01.2019 को एक और निर्णय पारित किया गया है जिसके अनुसार श्रेणी-2 स्तर पर सभी अनुभाग की संयुक्त वरिष्ठता सूची ''प्रथम आगत प्रथम पावत'' और ''नैसार्गिक न्याय'' के आधार पर जारी करने का निर्देश दिया गया है।
इस निर्णय के अनुपालन से भी वर्तमान व्यवस्था में भारी उलट फेर होगा। लेकिन आने वाली पीढ़ी एवं सर्वहित में कुछ को त्याग एवं बलिदान देना ही होगा।
यद्यपि शासन द्वारा मा0 राज्य अधिकरण के दोनों आदेशो का अनुपालन हो सकता है लेकिन फिर भी सभी समस्याओं का समाधान नहीं पाएगा। वर्तमान में उत्पन्न सभी पहलूओं, विशेषज्ञता, कृषि विभाग एवं हमारी उपयोगिता एवं उपादेयता पर सम्यकता से विचार करने पर एक मात्र समाधान स्वंतत्रता पूर्व विभाग में प्रचलित व्यवस्था United Provinces Agricultural Service,Class-II Rules 1930 & United Provinces Agricultural Service,Class-I Rules 1934' के पैटर्न पर सर्वसम्मत एवं संर्वहित में संशोधित कृषि सेवा नियमावली (यदि सम्भव हो तो मात्र एक सेवानियमावली) श्रेणी-2 एवं श्रेणी-1 तैयार कर तत्काल कैविनेट के अनुमोदनार्थ प्रस्तुत की जाय ताकि सर्वसम्मत कृषि सेवा नियमावली 2019 जारी हो सके। इस हेतु सभी अनुभाग अपने सेक्सन का सम्वर्ग समीक्षा (कैडर रिब्यू) प्रस्ताव प्रस्तुत करें तथा तदनुसार एक सर्वसम्मत कैडर रिब्यू प्रस्ताव एवं सेवा नियमावली शासन के विचारार्थ भेजकर उसे लागू करवाया जाय। इसमें आप सभी की महती भूमिका है। कृपया जनहित एवं सर्वहित में अपना सक्रिय योगदान करने का कष्ट करें और यदि उचित समझा जाय तो सभी सेक्सन के जानकर एवं सकारात्मक अधिकारियों/प्रतिनिधियों की बैठक बुलाकर सेवा नियमावली एवं कैडर रिब्यू का सम्यक एवं सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाय। यद्यपि वर्तमान कृषि निदेशक उ0प्र0 ने सर्वमान्य सम्यक सेवा नियमावली बनाने तथा कैडर रिब्यू हेतु सभी अनुभागों के अधिकारियों का आवाहन कर एक सकारात्मक पहल किया है। उपरोक्त सुझावों के अतिरिक्त अन्य सभी सम्भावित विकल्पों पर खुले मन से विचार किया जाना चाहिए, जिसके लिए आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन है।
अगर खुद पर भरोसा एवं नियत साफ हो तो कोई भी कठिन काम आसानी से पूरा किया जा सकता है। आत्मविश्वास यानी भीतर के भरोसे की अलग ही ताकत होती है। बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के समय मन में क्रोध, अहंकार, आंशकाएं, भय, हार इत्यादि पनपना स्वाभाविक है, लंकिन भीतर का भरोसा एवं नियत यानी आत्मविश्वास एवं आत्मबल से प्राप्त ऊर्जा और क्षमता प्रवाह से अपनी शक्ति पहचान कर हम अपना लक्ष्य-सम्यक सेवा नियमावली एवं कैडर रिब्यू प्राप्त कर सकते है। विजेता एवं पराजित में सिर्फ आत्मविश्वास-आत्मबल का अन्तर होता है।
''अन्धकार को मत कोसे, एक दीप जलाए, मानवता सोई है, उसे जगाएं
कहीं ऐसा न हो कि ''लम्हो ने खता की, सदियों ने सजा पाई।''
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।