मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं!

देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का कहना था कि इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं। इसलिए हमें मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजने चाहिए। हर इंसान में किसी न किसी तरह की रचनात्मकता जरूर होती है। इसलिए हमें लगातार अपनी रचनात्मकता को निखारने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में और भी बेहतर कर सकें। क्रिएटिव वह है, जो केवल स्वप्न ही नहीं देखता बल्कि उन स्वप्नों को साकार करने के लिए काम करता है। क्रिएटिव वह है, जो अंधेरों में भी कूदने का साहस रखता है। क्रिएटिव वह है, जो चुनौतियों को स्वीकारने में तत्पर रहता है।
हमें समस्याओं से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए :-
सबसे बड़ा रचनाकार परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। हम ब्रह्माण्ड के उस महान रचनाकार के पुत्र है। कोई ऐसा काम करें, जिसे आप हमेशा से करना चाहते थे। नए विषयों का अध्ययन करें और नए विचारों की जाँच करें। देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी कहा करते थे कि हमारे अंदर अलग सोच रखने का साहस, नये रास्तों पर चलने का साहस, आविष्कार करने का साहस होना चाहिए। हमें समस्याओं से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए। ये सभी महान गुण हैं जिन्हें हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
सीखने की कोई उम्र नहीं होती :-
रोमन देशभक्त मार्कस पोर्सियस केटो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी। महान जर्मन-अमेरिकन कलाकार मैडम अर्नेस्टाइन शूमैन-हेंक दादी बनने के बाद अपनी संगीत सफलता के शिखर पर पहुँची। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने वाद्ययंत्र बजाना तब सीखा, जब वे अस्सी साल के थे। माइकलएंजेलो अस्सी साल की उम्र में अपने सबसे महान कैनवास पर पेटिंग कर रहे थे। अस्सी साल की उम्र में सियोस सायमनाइडस ने कविता का पुरस्कार जीता, और लियोपॉल्ड वॉन रैंके ने अपनी हिस्ट्री आफ द वर्क्ड शुरू की, जिसे उन्होंने बानवे साल की उम्र में पूरा किया। अठासी साल की उम्र में जॉन वेस्ली मेथोडिज्म पर भाषण दे रहे थे और मार्गदर्शन दे रहे थे।
जीवन की अंतिम सांस तक जीने का उत्साह बना रहना चाहिए :-
एक सौ दसवें जन्मदिन पर कैलमेंट को दुनिया भर से बधाइयाँ और शुभकामनाएँ मिली। एक सौ अठाहरवें जन्मदिन ने उन्हें इतिहास में सबसे अधिक उम्र का व्यक्ति बना दिया। जब उनसे पूछा गया कि यह कैसे सभंव हुआ? तो वे बोलीं, ''मैंने अपने जीवन के हर मौके का सदुपयोग किया।'' एक सौ बाईस साल की होने पर भी उनकी ललक, उत्साह व सकारात्मकता हमेशा की तरह मंत्रमुग्ध करने वाली थी।
हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवसाय परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बने
शीर्षस्थ हार्ट सर्जन माइकल डेबेकी ने खून का पहला रोलर पंप 1932 में ईजाद किया था। उनका बनाया पंप आज भी बाइपास सर्जरी में प्रयुक्त होता है। नब्बे साल की उम्र में डॉक्टर डेबेकी को एक नए आविष्कार पर प्रयोग शुरू करने की अनुमति मिली। यह एक छोटा पंप था, जिसे गंभीर हृदय रोगियों के सीने में लगाया जा सकता था।
डेबेकी सिर्फ शोध से ही संतुष्ट नहीं थे। वे सर्जरी भी करते रहे। उनके बारे में एक सहयोगी ने कहा था, ''उन्होंने जितना किया है, उतना करने के लिये बाकी लोगों को पाँच-छह जन्म लेने पड़ेगे।'' डेबेकी ने नब्बे साल की उम्र में अपने जीवनदर्शन का सार इस तरह से व्यक्त किया था, ''जब तक आपके सामने चुनौतियाँ हैं और आप शारीरिक तथा मानसिक रूप से सक्षम हैं, तब तक जीवन रोमांचक और स्फूर्तिवान है।


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