बगैर बिजली दूध ठंडा रखने की तकनीक

 भारत के ग्रामीण दूध उत्पादक प्रति वर्ष 102 मिलियन गैलन ( 10.2 करोड़ गैलन ) (तकरीबन 38 करोड़ 61 लाख 12 हजार लीटर) दूध का उत्पादन करते हैं। इस दूध को बिजली के अभाव में बगैर ठंडा किये विभिन्न संसाधन केंद्रों तक पहुंचाना बेहद कठिन है। इस समस्या को अमेरिका से भारत आए दो लोगों ने सुलझाया।
 प्रोमिथियन पावर सिस्टम ने एक ऐसे मिल्क चिलर या दूध प्रशीतक का विकास किया है जो गर्म या तापीय ऊर्जा बैटरी पर कार्य करता है और जो भारत के दूर-दराज गांवों में जहां बिजली अनियमित रहती है वहां भी काम करता है। साल 2007 में अमेरिका के सोरिन ग्रामा और सैम व्हाइट ने प्रोमिथियन पावर की तरफ से भारत के 200 ग्रामीण इलाकों में दूध प्रशीतक प्रणाली (मिल्क चिलिंग सिस्टम) शुरू की और अब तक भारत के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन दो सौ से अधिक ऐसी प्रणाली को लगा चुके हैं। इस एक चिलर यानी शीतलक का 20 किसान एक साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। ये वो किसान हैं जो पहले दूध को ठंडा करने की निश्चित व्यवस्था नहीं हो पाने के अभाव में डेयरी को दूध की आपूर्ति नहीं कर पाते थे।
भारत में कई दूध उत्पादक किसान अलग-अलग मात्रा में दूध का उत्पादन करते हैं, जिसे गांव के एक छोटे से केंद्र में जमा किया जाता है और उसके बाद डेयरी के पास भेज दिया जाता है। अगर डेयरी तक पहुंचने से पहले दूध खराब हो गया तो किसान को दूध की कीमत नहीं दी जाती है।
प्रोमिथियन पावर का चिलर (प्रशीतक) नवीन थर्मल बैटरी तकनीक का इस्तेमाल करता है। इसकी खास बात ये है कि इसकी बैटरी बिजली की बचत की जगह ऊर्जा की बचत करता है। प्रशीतक में एक बैटरी पैक होता है जिसमे फेज के बदलने की सामग्री होती है जो ठोस को तरल में और तरल को ठोस में बदलता रहता है।
मशीन में तीन पुर्जे होते हैं- मशीन में दूध डालने वाला बर्तन, तापीय ऊर्जा वाली बैटरी (थर्मल एनर्जी बैटरी) और एक कम्प्रेसर।
 दूध के तापमान के हिसाब से इसमे लगा कंट्रोल पैनल यह बता देता है कि इसे कब चालू या बंद किया जा सकता है। सोलर पावर या ग्रिड बिजली के इस्तेमाल से कंप्रेसर चालू हो जाता है और बैटरी को चार्ज कर देता है, जिसका मतलब होता है कि बर्फ बनना शुरू हो गया है। दूध को ठंडा करने के लिए बर्फ को ठंडी ऊर्जा के तौर पर इसमे छोड़ दिया जाता है। मनमाफिक तापमान तक पहुंचने के बाद ऊर्जा का बहाव बंद हो जाता है। इस तरह गांव से दूध को संसाधन केंद्रों तक पहुंचाने से पहले इन दूध प्रशीतक का इस्तेमाल दूध संग्रहण केंद्र पर किया जाता है।
प्रोमिथियन पावर का विकास मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुआ जहां सोरीन और सैम ने ऊर्जा उद्घाटन या इनर्जी स्टार्टअप के लिए व्यावसायिक योजना बनाई। दोनों ने एमआईटी पिच प्रतियोगिता में उपविजेता के तौर पर 10 हजार डॉलर का इनाम जीता और उत्पाद के प्रारंभिक विचार को विकसित किया। उसके बाद उन्होंने भारत जाने का फैसला किया ताकि यह देख सकें कि इसका कहां इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रोमिथियन पावर लिमिटेड, भारत के सीईओ जितेन गिलानी बताते हैं, ”संस्थापक साफ ऊर्जा तकनीक पर कार्य कर रहे थे। कई प्रारुप या नमूना बनाने के बाद वो सूक्ष्म सोलर जेनरेटर बनाने में सफल हुए। इसके बारे में उनका मानना था कि यह विकासशील राज्यों के लिए आदर्श होगा। जब वो भारत आए और यह समझने की कोशिश की कि इसका कहां इस्तेमाल हो सकता है, तो उन्हें अहसास हुआ कि यह वो नहीं है जो इस देश को चाहिए।”
 दो सप्ताह के दौरे पर सोरीन और सैम बेंगलुरु डेयरी के इंजीनियरों से मिलने पहुंचे। प्रबंध निदेशक ने उन्हें दूध के संग्रहण में आने वाली समस्याओं के बारे में बताया। उस वक्त बेंगलुरु डेयरी दस हजार गावों के किसानों के साथ काम कर रहा था और साथ ही यह चुनौती भी थी कि बिना पर्याप्त बिजली आपूर्ति की स्थिति में गुणवत्ता युक्त दूध का संग्रहण कैसे हो ?
उसके बाद दोनों वापस बॉस्टन लौट गए ताकि नये समाधान के साथ वापस आ सकें। कई असफलताओं के बाद अंत में वो ऊर्जा भंडारण यंत्र का विकास करने में सफल हो गए। जब प्रवर्तक या संस्थापक बॉस्टन और भारत के बीच कई सालों तक आते-जाते रहे, ऐसे में उनके लिए कारोबार करना मुश्किल हो रहा था। सोरीन साल 2012 में भारत आ गए और यहां करीब साढ़े तीन साल रहे।
 एमआईटी से इंजीनियरिंग में एमएससी और मैंनेजमेंट डिग्री प्राप्त सोरीन ने बताया कि, ”हम लोग एक समाधान के साथ भारत लौटे और समस्या का हल खोजने लगे। यह एक कारोबार को शुरू करने का अच्छा तरीका नहीं था। सौभाग्यवश, हमारे दौरे के वक्त हमें एक समस्या से सामना करना पड़ा जिसके लिए बेहतर समाधान चाहिए था। भारत की डेयरी समस्या सबसे अनोखी है और कोई भी इस मुद्दे पर काम नहीं कर रहा था। इसमे सबसे पहले मुझे कारोबार की संभावना दिखाई पड़ी। इसके अतिरिक्त बतौर एक इंजीनियर तकनीकि समस्या के समाधान के लिए चुनौती दिखाई पड़ी। और मुझे समस्याओं को सुलझाना बेहद पसंद है। इसके अतिरिक्त मुझे बड़े पैमाने पर छाप छोड़ने का मौका भी दिखाई दिया। इस स्टार्टअप पर काम करना कठिन था लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए बड़ा फलदायी साबित हुआ।” वहीं, सैम ने बॉस्टन के यूनियन कॉलेज से राजनीति शास्त्र में बीए की डिग्री हासिल की।
मौजूदा वक्त में, चिलर का इस्तेमाल तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान के गांवों में किया जा रहा है जहां मशीन को सहारा देने के लिए मनमाफिक आधारभूत संरचना का विकास किया गया है।
मशीन पर खर्च-
1. मशीन की कीमत करीब 5 से 6 लाख रुपये
2. इसे अधिकांशतरू डेयरी के द्वारा खरीदा जाता है
3. एक मशीन की भंडारण क्षमता 300 से 800 लीटर
4. इस मशीन में डीजल जेनरेटर की जरूरत खत्म
बीते सालों के दौरान इन गांवों में दूध का उत्पादन बढ़ गया। अब किसानों को रोज भुगतान मिल रहा है और साथ ही अब वो डेयरी के साथ पूरे आत्मविश्वास के साथ काम कर रहे हैं। सोरीन और सैम के लिए इन मशीनों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल होते देखना सभी के लिए बड़ी सफलता है।


बिजली पैदा करने वाला चूल्हा
मानसून आते ही एक ओर जहां गांव के साथ शहरों को भी बिजली समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। वहीं, चीरवा गांव निवासी गोवर्धन ने अपने स्तर पर इन समस्याओं का एक हल ढूंढ निकाला है। बता दें कि आठवीं पास रूपसागर घर पर ही बिजली उत्पादन कर अपने घर में सप्लाई करता है। घर के लिए बिजली भी बनाता है और परिवार की पालता है
उसके पास न तो इंजीनियरिंग की डिग्री है, न ही डिप्लोमा. लेकिन उसने घरेलू जुगाड़ करके ही एक ऐसा यन्त्र विकसित किया है जो इंजीनियरों के ज्ञान को टक्कर देने के लिए पर्याप्त है.
 एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उदयपुर (राजस्थान) के चीरवा गाँव में चाय की दूकान चलाने वाले गोवर्धन नामक युवक ने एक ऐसा चूल्हा विकसित किया है जो चूल्हे का काम करने के साथ-साथ बिजली भी बनाता है. यह एक ऐसा थ्री-इन-वन चूल्हा है जिससे घर का खाना भी पकता है, दुकान पर चाय भी बनती है और बिजली भी बनती है मुफ्त में.इस चूल्हे से इतनी बिजली बन जाती है कि गोवर्धन का मोबाइल चार्ज होता रहता है और घर की लाइट भी जल जाती है. इस यन्त्र में क्वाइल के साथ छोटा पावर जेनरेटर लगा है जो हीट और धुएं के प्रेशर से काम करता है. जैसे ही लकड़ी या गोबर के उपले चूल्हे में डालकर जलाते हैं, उसमें से उठते धुएँ और गरमी के प्रेशर से यंत्र काम करना शुरू कर देता है. चूल्हे में लगे प्लग बोर्ड से यन्त्र के अन्दर पैदा हुई बिजली को काम में ले लिया जाता है.
-आठवीं तक की पढ़ाई करने के बाद स्कूल से नाता तोड़ चुके गोवर्धन दिमाग से किसी इंजीनियर से कम नहीं हैं।
* वो बताते हैं कि किसी पंखे की फैक्ट्री में काम करते-करते उन्हे ये आइडिया आया। शहर से कुछ सामान लाकर उन्होंने खुद एसेंबल कर ये हाईटेक चूल्हे बनया।
* चूल्हा भले ही लकड़ी या गोबर से जलता हो लेकिन उसके काम कई हैं। चूल्हे से पहला काम चाय बनाना है। चाय बनाते-बनाते उसके अंदर मौजूद यंत्र से करंट पैदा होता है। उसमें प्लग सिस्टम लगा है जिससे आप फोन चार्ज करने के साथ लाइट भी जला सकते हैं।
 बिजली नहीं मिली तो खुद बिजली तैयार करने का आया ख्याल गोवर्धन बताते हैं कि उनके गांव में बिजली नहीं के बराबर आती है। लोग मोबाइल चार्ज करने के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं। गांव से छह किलोमीटर दूर जाकर मोबाइल चार्ज करना पड़ता है। बिजली किल्लत से होने वाली समस्याओं से परेशान होकर फैक्ट्री में काम करते करते आखिर इसके निर्माण करने का ख्याल आया।
पहले नहीं मिली सफलता, पर हार नहीं मानी और मेहनत रंग लाई
-इसे बनाने के दो महीने बाद तक भी यह काम नहीं किया तो गोवर्धन को लगा कि यह उसके बस की बात नहीं है लेकिन बार-बार मशीनों को जोड़ने और इधर-उधर कनेक्ट कर देखने के बाद आखिरकार बत्ती जल गई। इसके साथ ही उसकी मेहनत रंग लाई।



* वो बताते हैं कि सरकार भी इस यंत्र को बनाने का काम कर रही है। बहुत जल्द गांवों में, जहां बिजली की समस्या ज्यादा है वहां इसे प्रयोग करने की योजना बनाई जा रही है।
चूल्हे में क्वाइल के साथ छोटा जेनरेटर लगा है जो हीट और धुएं के दबाव से करता है काम
* गोवर्धन के अनुसार चूल्हे के अंदर क्वाइल के साथ छोटा पावर जेनरेटर लगा है जो हीट और धुएं के दबाव से काम करता है।
* जैसे ही लकड़ी या गोबर के उपले चूल्हे में डालकर माचिस से जलाते हैं उसमें से उठता धुआं और गरमी के प्रेशर से यंत्र काम करना शुरू करता है।
* ऊपर सामान्य चूल्हे की तरह खुला भाग है जिसमें आग लगाने के बाद खाना या चाय बना सकते हैं। उसके पास ही बिजली का प्लग बोर्ड है जिसमें हम चार्जर या लाइट का प्लग लगा सकते हैं।


 


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