ब्रोकली की खेती


सब्जियों की खेती से जहां किसान की आमदनी बढ़ती है। वहीं अच्छे स्वास्थ्य के लिए सब्जियाँ , भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं। अपने देश में लगभग 50 तरह की भिन्न प्रकार की सब्जियाँ उगाई जाती हैं जिनमें से कुछ को बाहर विदेशों में बेचकर विदेशी मुद्रा  भी कमाई जाती है आगे आने वाले समय में सब्जियों का उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही बढ़ने की की संभावनाएँ हैं जहाँ हम जानी पहचानी किस्म की कई तरह की सब्जियाँ अपने देश में उगा रहे हैं वहीं अभी भी कुछ ऐसी भी सब्जियाँ हैं जो आर्थिक पौष्टिकता की . दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।लेकिन हम उनके बारे में जानते ही नहीं। इस तरह की सब्जियों में ब्रोकोली का नाम बहुत महत्वपूर्ण है इसकी खेती पिछले कई वर्षों में धीरे-धीरे बडे़ शहरों के आस-पास कुछ किसान करने लगे हैं बडे महानगरों में इस सब्जी की मांग भी अब बढने लगी है पाँच सितारा होटल तथा पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है तथा जो किसान इसकी खेती करके इसको सही बाजार में बेचते हैं उनको इसकी खेती से बहुत अधिक लाभ मिलता हैकयोंकि इसके भाव कई बार 30 से 50 रूपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाते हैं यहां ये बताना उचित रहेगा कि ब्रोकोली की खेती करने से पहले इसको बेचने का किसान जरूर प्रबंध कर लें क्योकि यह अभी महानगरों, बड़े होटल तथा पर्यटक स्थानों तक ही सीमित है। साधारण अथवा मध्यम या छोटे बाजारों में अभी तक ब्रोकोली की मांग नहीं है क्योंकि अभी तक लोग इसके बारे में कम या बिल्कुल नहीं जानते। ब्रोकोली की सफल खेती के लिये नीचे दी गई जानकारी लाभदायक होगी। ब्रोकोली की खेती ठीक फूलगोभी की तरह की जाती है। इसके बीज पौधे देखने में लगभग फूल गोभी की तरह ही होते हैं। ब्रोकोली का खाने वाला भाग छोटी छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओं का गुच्छा होता है जो फूल खिलने से पहले पौधों से काट लिया जाता है और यह खाने के काम आता है। फूल गोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है वहां ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी, पौधे से कुछ शाखायें निकलती हैं तथा इन शाखाओं से बाद में ब्रोकोली के छोटे गुच्छे बेचने अथवा खाने के लिये प्राप्त हो जाते है।


भूमि खेत की तैयारी
जलवायु - ब्रोकोली को उत्तर भारत के मैदानी भागों में जाघ्े के मौसम में अर्थात् सितम्बर मध्य के बाद से फरवरी तक उगाया जा सकता है। मिट्टी रू इस घ्सल की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सफल खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त है।


नर्सरी तैयार करना :- सितम्बर मध्य से नवम्बर के शुरू तक पौध तैयार की जा सकती है बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में इसकी पौध खेत में रोपाई करने योग्य हो जाती हैं इसकी नर्सरी ठीक फूलगोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है।
ब्रोकोली की उन्नत किस्में :- 


अन्नदाता भाईयों  ब्रोकली की तीन मुख्य प्रजाति  है- सफेद,हरी और बैंगनी |


हरे रंग की ब्रोकली किस्में – नाइन स्टार , पेरिनियल,इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड ब्रोक्ली,


ब्रोकली की संकर किस्में ग्रीन सर्फ़क्लीपर,पाईरेट पेकमेप्रिमिय क्रापक्रुसेर,स्टिक


केटीएस 9 : इस किस्म का विकासभारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा किया गया है | इस किस्म के पौधे माध्यम ऊंचाई के होते हैं जिसका तना छोटा शीर्ष सख्त होता है | इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है |


ब्रोकली 1 – भारतीय कृषि अनुसन्धान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गयी अभी हाल की किस्म है | ब्रोकली की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इस किस्म को बोने की सिफारिश की गयी है| 


बीज की मात्रा बुआई का तरीका
बीज की मात्रा- एक हेक्टेअर की पौध तैयार करने के लिये लगभग 375 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
रोपाई - नर्सरी में जब पौधे 8-10 या 4 सप्ताह के हो जायें तो उनको तैयार खेत में कतार से कतार , पक्ति से पंक्ति में 15 से 60 से. मी. का अन्तर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मी० का फासला  देकर रोपाई कर दें। रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें। बुआई पौध की रोपाई दोपहर के बाद अथवा शाम के समय करें।


खाद और उर्वरक- अच्छी पैदावार लेने के लिये निम्न खाद की मात्रा
प्रति हेक्टेयर देना लभदायक रहगा  ,खाद मिट्टी परीक्षण के  आधार पर दे  -
1. गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन
2. नाइट्रोजन 100-120 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
3. फॉसफोरस 45-50 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
गोबर तथा फॉस्फोरस खादों की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से
पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें। नाइट्रोजन की खाद को 2 या 3
भागों में बांटकर रोपाई के क्रमशः 25 ,45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर
सकते हैं। नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के बाद, पौधों की
जड़ों पर मिट्टी चढाना लाभदायक रहता है
निराई-गुड़ाई सिंचाई
मिट्टी मौसम  तथा पौधों की बढ़वार  बघ्वार को  ध्यान में रखकर , इस फसल  में लगभग
10-15 दिन के  अन्तर पर हल्की सिंचाई  की आवश्यकता होती है  पौध संरक्षण कीड़े बीमारियाँ-अगर मौसम में बादल हों अथवा कुछ वर्षा होकर वातावरण थोड़ा गर्म नम हो जाये तो ब्रोकोली की घ्सल पर पाउडरी
मिल्ड्यू अर्थात फूंदी का चूर्ण रोग नुकसान करता है। इसके बचाव के लिये कैराथेन 2 ग्रा. दवा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर पौधों पर छिघ्काव करें।


कटाई उपज- फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बनकर तैयार हो जाये तो इसको तेज चाकू या दरांती से कटाई कर लें। ध्यान रखें कि कटाई के साथ गुच्छा खूब गुंथा हुआ हो तथा उसमें कोई कली खिलने पाएँ। ब्रोकोली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी वह ढीली होकर बिखर जायेगी तथा उसकी कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी ऐसी अवस्था में कटाई किये गये गुच्छे बाजार में बहुत कम दाम पर बिक सकेंगे।  मुख्य  गुच्छा  काटने  के बाद, ब्रोकली  के छोटे - छोटे गुच्छे  बिक्र  के लिए प्राप्त हागे ।ब्रोकली की अच्छी फसलसे  लग्रभग 12 से 15 मैट्रिक टन पदैवार प्रति हेक्टेयर मिल जाती है।



ब्रोकली में पाए जाने वाले पोषक























































कैलोरी                                    Calories 34



प्रतिशत में



कुल वसा (Total Fat 0.4 g



0%



संतृप्त वसा (Saturated fat)  0 g



0%



पाली संतृप्त वसा(Polyunsaturated fat)  0 g


 

मोनो संतृप्त वसा (Monounsaturated fat)  0 g


 

कोलेस्ट्रोल (Cholesterol 0 mg



0%



सोडियम (Sodium 33 mg



1%



पोटेशियम (Potassium 316 mg



9%



कुल कार्बोहाइड्रेट (Total Carbohydrate 7 g



2%



फाइबर (Dietary fiber)  2.6 g



10%



शर्करा (Sugar)  1.7 g


 

प्रोटीन (Protein 2.8 g



5%































विटामिन (Vitamin)  A



12%



Vitamin C



148%



कैल्सियम (Calcium)



4%



Iron



3%



विटामिन (Vitamin)  D



0%



Vitamin B-6



10%



विटामिन (Vitamin)  B-12



0%



Magnesium



5%



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