दोगुना आय साधनमृदा जीवांश कार्बन पदार्थ मिशन

समावेशी होना चाहिए।''
- मा0 प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी


"I Believe growth should be Constant, Sustainable and inclusive."


-Prime Minister Narendra Damodardas Modi



भूमिका(Introduction)
देश एवं प्रदेश की समृद्धि देश-प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता एवं उसने उपयोग पर निर्भर करता है अर्थात् किसी भी देश के प्राकृतिक संसाधन जितने समृद्ध होते है वह देश उतना ही मजबूत होता है। प्रकृति ने जो प्राकृतिक संसाधन विशेष रूप मृदा निःशुल्क दे रखे है उन्हे बचाये  एवं बढ़ाने की जिम्मेदारी मानव संसाधन अर्थात् हमारी है। भूमि उर्वरता का सबसे बड़ा पैमाना भूमि में उपलब्ध (हूमस जीवांश) कार्बन है। उनके संग्र्रहण, संरक्षण, संवर्द्धन एवं प्रबन्धन उपजाऊ भूमि में 01 प्रतिशत जैविक पदार्थ होना चाहिये। प्रदेश में आजादी के समय भूमि जीवांश कार्बन की मात्रा लगभग 0.52 प्रतिशत हुआ करती थी जो निरन्तर क्षरित हो रही है जो चिन्ता एवं चिन्तन का विषय है।
 स्वस्थ धरा ही स्वस्थ और हरे भरे खेत एवं समृद्धि का आधार है। सघन एवं रासायनिक खेती के कारण हमारी भूमि उर्वरा शक्ति में कमी आ गयी है। वर्तमान में सघन कृषि कार्य तथा अधिक निवेश वाली संकर प्रजातियों की बुआई, फसल चक्र के सिद्धान्त को न अपनाने तथा कार्बनिक/हरी खादो के प्रयोग न करने के परिणाम स्वरूप खेतो में जीवांश कार्बन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वो की कमी परिलक्षित हो रही है। अतः हमे कृषकों को फसल उपज में सम्यक वृद्धि, पौष्टिक एवं गुणवत्ता युक्त उत्पाद प्राप्त करने तथा मृदा उर्वरता में वृद्धि के उद्देश्य से जीवांश एवं जैविक खाद (गोबर की खाद, ढैचा, मृदा सुधारक) तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों को प्रोत्साहित करना है। सन्तुलित मृदा स्वास्थ्य बनाये रखने एवं फसलों की उच्च पोषणयुक्त एवं गुणवत्तायुक्त उत्पाद घटते हुए कार्बन स्तर को वृद्धि हेतु कार्बनिक पदार्थ मिशन को प्रदेश में संचालित करने की अत्यन्त आवश्यक है।
लक्ष्य (Goal)
 मृदा में संतुलित जैविक कार्बन पदार्थ बढ़ाकर उच्च पोषण युक्त एवं गुणवत्ता युक्त उत्पादन कर उत्पादकता के माध्यम से प्रदेश के कृषकों को समृद्ध बनाना है। इसके लिए उत्तर प्रदेश मृदा जीवांश कार्बन का स्तर 0.5 प्रतिशत तक वर्ष 2024 तक ले जाना है। 
उद्देश्य (Aims)


कार्बनिक पदार्थ मिशन का उद्देश्य प्रदेश की मृदा में गिरते हुए कार्बनिक स्तर को स्थिर कर विभिन्न विधियों/योजना द्वारा मृदा में कार्बनिक स्तर को बढ़ाना ताकि मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता को अक्षुण्ण रखा जा सकें। 
सिद्धान्त (Principle)
मृदा जीवांश कार्बन पदार्थ विकास का माॅडल सतत्, टिकाऊ एवं सर्व समावेशी होना चाहिए। ''हम भूमि से जितना लेते है उतना देना हमारा धर्म है।''
क्रियान्वयन विधि/रणनीति:-
 मृदा में उपलब्ध जीवांश कार्बन की उपलब्धता के आधार पर आर्थिक संसाधनो की उपलब्धता के अनुसार जनपदवार/विकासखण्डवार/न्याय पंचायतवार रणनीति बनायी जाना चाहिए।
कार्बनिक पदार्थ क्या है(What is Carbon Matter?) :-
 कार्बन एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व हैै तथा यह कार्बनिक पदार्थो को बनाता है। कार्बनिक पदार्थ  सभी जीवधारियों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा (मिट्टी) कहते है। कृषि हेतु मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाकलाप में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ मुख्यतः कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन से बना होता है। 
मृदा जीवांश कार्बन पदार्थ मिशन आज की आवश्यकता है।
(Soil Organic Carbon Matter Mission is the need of the hour) :-
 आज के आधुनिक युग में बढ़ती जनसंख्या को अन्न उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग, अधिक सिंचाई एवं उर्वरक उपयोग वाली प्रजातियों के प्रयोग एवं कार्बनिक, जैविक खादों के नगण्य उपयोग से मृदा में कार्बन की मात्रा निरन्तर घटती जा रही है। इसलिए प्रदेश में मृदा जीवांश कार्बन पदार्थ मिशन आज की परम आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश में आर्गेनिक कार्बन की वर्तमान स्थिति:-
(Present Status of Organic Carbon (O C) Content in Uttar Pradesh):-
 मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना द्वितीय चक्र के अनुसारउत्तर प्रदेश की भूमि में जैविक पदार्थ की स्थिति निम्नवत् पायी गयी है -
* प्रदेश के सभी 75 जिले अति न्यून (0.00-0.25ः) की श्रेणी में है, जिसमें मात्र जनपद बहराइच न्यून (0.25-0.50ः) की श्रेणी में है।
* अति न्यून श्रेणी (0.00-0.25ः) में आने वाले विकासखण्ड की संख्या - 21
* न्यून श्रेणी (0.25-0.50ः) में आने वाले विकासखण्ड की संख्या     - 799
* 0.25-0.35ः की श्रेणी में आने वाले विकासखण्ड की संख्या    - 399
* 0.35-0.45ः की श्रेणी में  आने वाले विकासखण्ड की संख्या    - 421
उपरोक्त तालिका से स्वतः स्पष्ट है कि जीवांश कार्बन पदार्थ बढ़ाने हेतु मृदा में वर्तमान उपलब्ध जीवांश कार्बन के आधार पर जनपदवार/ब्लाकवार/न्यायपंचायतवार रणनीति एवं कार्ययोजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करना होगा।
ब्लाकवार/न्यायपंचायतवार कार्ययोजना एवं रणनीति बनाने हेतु माह मई-जून 2019 में एकत्रित मृदा नमूनें, मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में मृदा जीवांश कार्बन पदार्थ (व्तहंदपब ब्ंतइवद) की अद्यतन स्थिति ज्ञात करनी होगी। इस हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजनान्तर्गत खरीफ 2019 में एकत्रित लगभग 11 लाख मृदा नमूनों का मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित जैविक एवं रासायनिक उर्वरक प्रयोग से जीवांश कार्बन पदार्थ मिशन 2020-25 सफलीभूत किया जा सकता है।


मृदा में आर्गेनिक कार्बन पदार्थ बढ़ाने हेतु प्रस्तावित कार्यक्रम:-
(Proposed Programmes to increase Organic Carbon Matter in soil):-
प्रदेश के सभी कृषकों को गोष्ठी, मेला, तकनीकी प्रशिक्षण, कौशल प्रदर्शन एवं अन्य माध्यमों से जागरूकता बढ़ाकर मृदा में आर्गेनिक (कार्बनिक) पदार्थ को बढ़ाया जाना चाहिए। मृदा में आर्गेनिक कार्बन को मुख्यतः निम्न दो प्रकार से बढ़ाया जा सकता है।
(i) गैर-मौद्रिक निवेश (Non-monetary inputs) (ii) मौद्रिक निवेश (Monetary inputs)
(i) गैर-मौद्रिक निवेश (Non-monetary inputs):-
शून्य लागत वाली विधियांे के क्रियान्वयन से उपज में लगभग 20 प्रतिशत वृद्धि के साथ मृदा में आर्गेनिक (कार्बनिक) पदार्थ की बढ़ोत्तरी होती है। गैर-मैद्रिक निवेश को क्रिन्यान्वित करने के लिए शस्य विज्ञान की निम्न सिद्धातों एवं पारम्परिक कृषि को अपनाना पडे़गा। 
1. मिश्रित खेती (Mixed Farming)
मिश्रित खेती में फसल उगाने के साथ-साथ पशुपालन एवं उद्यान इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है। एक ही किसान के खेत में अनाज की फसलें उग सकती हैं और उद्यान, मवेशी, भेड़, सूअर या मुर्गीपालन इत्यादि करते हैं। फसल और पशुधन उत्पादन प्रणालियों के एकीकरण से दोनों क्षेत्रों के पर्यावरणीय स्थिरता के साथ-साथ विविधता भी बढ़ती है और जीवांश कार्बन संतुलित मात्रा में बना रहता है।
2. खेत की तैयारी( Preparation of field )-
फसल उत्पादन के लिए सबसे पहला कदम खेत की तैयारी है। गर्मी में खेत की गहरी जुताई से ताप एवं वायु का उचित संचार होने से भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है, जो सम्यक उत्पादन के लिए जरूरी है। इस हेतु-
* गर्मियों की जुताई रबी की फसल कटते ही आरम्भ कर देनी चाहिए, क्योंकि उस समय  खेत में हल्की नमी रहती है। 
*जुताई के लिए प्रातः काल का समय सबसे अच्छा रहता है।
* गर्मी की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से ही की जानी चाहिए।
*इससे वायु संचार एवं लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है। 
* फसल अवशेषों के सड़ने एवं गलने की प्रक्रिया तेज होने से मिट्टी की उर्वराशक्ति  में भी वृद्धि परिलक्षित होती है।
3. सम्यक फसलो/प्रजातियों का चुनाव(Right Selection of Crops/Varieties)-
उत्तर प्रदेश 9 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभक्त हैं क्षेत्रीय विविधता के अनुरूप फसलों एवं तद्नुसार उपयुक्त प्रजातियों के उपयोग से बगैर किसी अतिरिक्त लागत के उत्पादन स्तर एवं मृदा में जीवांश कार्बन पदार्थ में वृद्धि लायी जा सकती है।
4. उच्च पानी की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम पानी वाली फसलों को लेना चाहिए(High water requiring crops should be followed by low water requiring crops.)
5. गहरी जड़ वाली फसलों के बाद उथली जड़ वाली फसलों को लिया जाए। (Crop with Tap root should be Followed by Shallow root Crops)
6. अनाज की फसलों के बाद दलहन और तिलहनी के फसलों को लेना चाहिए। (Cereal crops should be followed by pulses and oil seeds)


7. फसल चक।(Crop Rotation)
परम्परागत किसान उपयुक्त फसल चक्र अपनाकर खेत की उत्पाकता एवं मृदा उर्वरता बनाए रखते थे। दलहनी-फसलों के बाद तिलहनी और फिर अनाज की खेती होती थी। दलहनी-फसलों की जड़ें गहराई तक जाती थीं। इससे नीचे की मिट्टी के भीतर सड़ती थीं। इससे नीचे जीवाणु पैदा होते थे। वही फसलों के लिए  जीवांश कार्बन बढ़ाने खाद का काम करते थे। 
8. न्यूनतम जुताई के माध्यम से बेहतर भूमि संरचना को बढ़ावा।
(Minimum soil disturbance through minimum tillage for better soil structure): -
9. खेत में कोई भी फसल न जलाया जाए।(No crop burning in the field at all.) -
फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में बढ़ोत्तरी होती है, जिसके कारण वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फसलों के अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों में संचित लाभकारी पोषक तत्व नष्ट हो जाते है। मृदा/फसल अवशेषों में लाभदायक मित्र कीट जलकर मर जाते है, जिसके कारण मृदा जीवांश कार्बन पदार्थ में विपरीत प्रभाव पड़ता हैं। 
10. प्राकृतिक और आध्यात्मिक कृषि को बढ़ावा देना।
(Promotion of Natural and Spiritual Agriculture.) -
भारत में कृषि एवं ऋषि परम्परा अनादि काल से भारतीय जनमानस को प्रेरित एवं पुष्पपल्लवित करता रहा है। हमारे जीवन का प्रत्येक त्यौहार और कृषि क्रिया, या तो कृषि अथवा ऋषि परम्परा से जुड़ा हुआ है! शारीरिक एवं मानसिक सम्यक् श्रम आधारित खेतीबाड़ी करने वाला ऋषि हो सकता है, ऋषि ही प्रगतिशील कृषक हो सकता है। ऋषि-मुनि गण, ज्ञानीजन सबको ज्ञान प्रदान करते है। प्राकृतिक और आध्यात्मिक कृषि के द्वारा विभिन्न आयाम बताये गये है-
* पंच महाभूतों यथा जमीन, जल, जंगल, जन तथा जानवर के संग्र्रहण, संरक्षण, संवर्द्धन एवं उचित प्रबन्धन से मृदा में जीवांश कार्बन पदार्थ एवं पर्यावरण में बढ़ोत्तरी होती है। 
* जैविक कृषि/सजीव खेती/प्राकृतिक खेती/कुदरती खेती/यौगिक खेती का प्रयोग पर बल।
* खेती-बाड़ी में ध्यान एवं सकारात्मक विचार ऊर्जा के प्रवाह द्वारा सम्यक उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाया जा सकता है और इस प्रकार मृदा उर्वरता में वृद्धि होती है।
* संगीत (म्यूजिक) के प्रयोग से पौधो में बढ़वार अच्छी होती है और गुणवत्ता युक्त उत्पाद एवं स्वाद पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
* मंत्रों के प्रयोग द्वारा पौधो में गुणवत्तायुक्त उत्पादन में वृद्धि पाया गया है।
* चंद्र गति (शुक्लपक्ष एवं कृष्णपक्ष) के अनुसार खेती-बाड़ी की योजना बनाई जानी चाहिए जिससे भूमि की जीवांश कार्बन की मात्रा एवं उत्पादन में वृद्धि हो सके है।
* खेती बाड़ी में यज्ञ यथा होमाजैविक/अग्निहोत्र का प्रयोग किये जाने से कीट रोगो के प्रकोप में कमी, भूमि उर्वरता तथा उत्पादन में वृद्धि पायी गयी है।


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