टिश्यू कल्चर विधि से होगी चिरौंजी की खेती


बात अगर मेवों की जाये तो चिरौंजी शायद सबसे महंगा बिकने वाला मेवा है। जानते हैं क्यों? क्योंकि इसकी व्यवस्थित एवं सुनियोजित खेती का कोई इंतजाम नहीं लेकिन अब इसके व्यवस्थित खेती की उम्मीद जगी है। यह अभी तक वनोपज के रूप में हमें प्राप्त होता है। न तो इसके बीज उगते हैं और न ही इसकी टहनियों अथवा कलम की रोपाई हो पाती है  यह अभी तक प्रकृति प्रदत्त ही था मगर अब इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.जेनू झा ने देश में पहली बार चिरौंजी के पौधों को विकसित करने में शानदार सफलता पाई है। विष्वविद्यालय के प्लांट मौलिक्यूलर एंड बॉयोलॉजी एंड बॉयोटेक्नॉलॉजी विभाग में दो साल के अथक प्रयास के बाद टिश्यू क्लचर से चिरौंजी के 70 से ज्यादा पौधे विकसित किए गए, जिसे अब प्रयोगषाला से बाहर निकाल कर आम आदमी तक पहुंचाने का प्रयास भी किया जा रहा है।
 उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने चिरौंजी के बीज विकसित करने के लिए देश के अनेक कृषि विश्वविद्यालयों को यह प्रोजेक्ट दिया था, लेकिन विवि के डॉ.जेनू झा को छोड़ कर किसी भी वैज्ञानिक को सफलता नहीं मिली। राज्य के जंगली क्षेत्रों में चिरौंजी का उत्पादन बहुत है लेकिन धीरे-धीरे इन पेड़ों की संख्या घट रही है, क्योंकि लोग गलत तरीके से फल, टहनियां और पेड़ को ही उखाड़ देते हैं।
चिंता की बात यह कि चिरौंजी के पेड़ की कभी री-प्लांटिंग नहीं होता। ऐसे में अब डॉ.जेनू द्वारा टिश्यू कल्चर से विकसित किए गए बीज से चिरौंजी लगाने की उम्मीद देश के लोगों में जम  गई है।


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