देश एवं प्रदेश के कृषि की मुख्य चुनौतियाँ

1. मानसून पर अत्यधिक निर्भरता अर्थात भारत में 55 .7ःक्षेत्रफल वर्षा आधारित है। 
2. मृदा स्वास्थ्य में लगातार गिरावट- आज 63 प्रतिशत क्षेत्रफल में नाईट्रोजन, 42ः  क्षेत्रफल में फास्फोरस तथा 13ः क्षेत्र में पोटाश की कमी है। 41 : क्षेत्र में सल्फर, 49ः क्षेत्र में जिंक, 33 : क्षेत्र में वोरान, 13 : क्षेत्र में मालिब्डिनम, 12 : क्षेत्र में आयरन, 5 : क्षेत्र में मैगनीज तथा 5 : क्षेत्र में कापर की कमी है। वर्ष 2010 में उ0प्र0 के 72 जिलों में नाईट्रोजन एवं फास्फोरस,  6 जिलों में पोटास, 64 जिलों में जिंक, 60 जिलों में सल्फर, 46 जिलों में लोहा, 16 जिलों में वोरान,17 जिलों में कापर तथा 29 जिलों में मैग्नीशियम की कमी है।



3. कृषि निवेशों यथा डी.ए.पी., संकर बीजों तथा सिंचाई मूल्य में बढ़ोत्तरी के कारण इन निवेशों के उपयोग में गिरावट के कारण उत्पादन-उत्पादकता में कमी आ रही है।
4.कमजोर कृषि ऋण की व्यवस्था जिसमें सीमान्त कृषकां को किसान क्रेडिट कार्ड/फसल ऋण का न मिलना, अधिकतर किसानों का डिफाल्टर होना, केवल 20 : ऋण ही फसल बीमा योजना में आच्छादित होना तथा केवल 10 : किसानों का ही 'फसल बीमा योजना' के अन्तर्गत आच्छादित होना इत्यादि शामिल है।
5. प्रौद्योगिकी प्रसारण की कमजोर व्यवस्था जिसके अन्तर्गत प्रसार एजेन्सियों के मध्य ताल-मेल का अभाव एवं स्टाफ का अभाव प्रमुख है।
6.अनियमित मानसून एवं सटीक मौसम की भविष्यवाणी का न होना।
7.फसलों विशेष रुप से दलहन, तिलहन में जेनेटिक क्रॉति का न होना।
8. कृषि विपणन की दयनीय दशा तथा ग्रमीण अवस्थापना सुविधाओं (सड़क सुरक्षा) का अभाव। 
9. भण्डारण सुविधा की अत्यधिक कमी, जिसके कारण किसानों का अपने उत्पाद को मजबूरन असमय बेचना पड़ता है।
एक अनुमान के मुताबिक 70 : कृषि योग्य क्षेत्र सूखा प्रभावित, 12 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ एवं 8 प्रतिशत क्षेत्रफल चकक्रवात से प्रभावित है।


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