गेहूँ की बुआई नही रोपाई कीजिए

बढ़ती हुई जनसंख्या के मद्देनजर हमारा लक्ष्य और नैतिक जिम्मेदारी बनती है हम कम लागत और सीमित संसाधन एवं क्षेत्रफल में अच्छी से अच्छी कृशि तकनीक अपना कर  खाद्यांन वाली फसलों की उपज को बढ़ाये। अब किसान भाई जिस प्रकार धान की खेती श्री पद्धित से करते है उसी प्रकार से गेहूँ की भी रोपाई कर सकते है। 



पौध रोपण द्वारा गेहूँ की खेती -


इस विधि को सिंचित क्षेत्रों में ही अपनाया जा सकता है। गेहूँ की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी जमीन से 6 इंच ऊँची, 3 फुट चैड़ी एवं लम्बाई आवश्यकतानुसार रखकर तैयार किया जाता है। नर्सरी में मिट्टी व कम्पोस्ट खाद का 3 अनुपात 1 रखना होता है। नर्सरी में बीज बुवाई के बाद मल्चिंग की जाती है जिसको 4 से 6 दिन के उपरान्त हटा दिया जाता है। तैयार खेत में नर्सरी से निकाले गये दो से तीन पत्ती (16-21 दिन) वाले पौधों (एक या दो पौधे) का रोपण जड़ों को बिना नुकसान पहुँचाये, उचित दूरी (5-8 इंच) पर करते हैं। रोपण के उपरान्त पौधों को मिट्टी में हल्के से दबा देना चाहिए। रोपण के समय वर्मी कम्पोस्ट या अन्य जैविक खादों का उपयोग बहुत लाभदायक रहता है। पौध रोपण के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है।



पौध रोपण करते समय सावधानियाँ -
1. जड़ों को नुकसान पहुँचाये बिना पौध का रोपण करें। 
2 रोपाई से पहले पौधों को अलग-अलग कर लें।
3 नर्सरी से निकाले गए पौधों की जड़ों को बिना धोये रोपाई करें। 
4 पौधों को उचित गहराई पर ही रोपें।
. खरपतवार नियन्त्रण -


गेहूँ का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि खेत में अन्य फसलों एवं खरपतवार के पौधे न हों। खरपतवार के पौधे न केवल गेहूँ की फसल को दिए गए खाद एवं पानी का उपयोग करते हैं बल्कि प्रकाश, वायु व स्थान हेतु फसल के साथ प्रतियोगिता करके मुख्य फसल यानी गेहूँ का उत्पादन (15-30 प्रतिशत तक) घटा देते हैं। पहली गुड़ाई, बुवाई के 20-25 दिन के पश्चात वीडर द्वारा कर लेनी चाहिए इसके बाद दूसरी व तीसरी गुड़ाई 10 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। इससे पौधों की जड़ों को प्रकाश, हवा एवं उचित मात्रा में पोषक तत्व मिल जाते हैं। जड़ें अधिक लम्बी व गहरी होने से पौधे मजबूत होते हैं तथा फसल गिरने की सम्भावना कम होती है। वीडर चलाते समय खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए। वीडर न चलने की स्थिति में कुदाल या रैक से भी खरपतवार निकाले जा सकते हैं। निकाले गये खरपतवार को मिट्टी में दबा देना चाहिए जिससे वे सड़-गल कर खाद का काम कर सकें। निकाले गये खरपतवार के पौधों को गेहूँ की फसल की पंक्तियों के बीच में बिछा देने से खेत (विशेषकर असिंचित क्षेत्र) में नमी संरक्षित होने के साथ-साथ खरपतवार के पौधों के पुनः निकलने की सम्भावना कम हो जाती है।


पौधरोपण विधि में पौधरोपण के पश्चात 10-15 दिनोें के अन्तराल पर 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए



. सिंचाई एवं जल प्रबन्धन -


सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर गेहूँ का अच्छा उत्पादन लेने के लिए निम्न सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए। खेत को कभी नम व कभी सूखा रखना जरूरी है। प्रयोगों के आधार पर पाया गया है कि गेहूँ सघनीकरण विधि द्वारा की गई खेती में केवल 3 से 4 सिंचाई देने पर भी ज्यादा उत्पादन मिलता है।
कल्लों का निकलना -


30 से 60 दिन के बीच गेहूँ के पौधों में सबसे ज्यादा कल्ले निकलते हैं क्योंकि इस समय पौधों को धूप, हवा व पानी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। अनुभवों के आधार पर यह पाया गया है कि जहाँ एक बार वीडर द्वारा गुड़ाई की गई वहाँ 8-12 कल्ले निकले, जहाँ दो बार गुड़ाई हुई वहाँ अधिकतम 15-20 कल्ले निकले व तीसरी बार गुड़ाई करने में 25 से अधिक कल्ले निकले। अतः अच्छा उत्पादन लेने के लिए कम से कम 3 बार वीडर या अन्य यन्त्रों से गुड़ाई करना जरूरी है।
रोग व कीट प्रबन्धन -


रोगों से बचाव हेतु बीज का उपचार अवश्य कर लेना चाहिए। बुआई के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का ही चयन करें। रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। रोग व कीट प्रबन्धन के लिए प्राकृतिक तरीकों व जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस विधि में रोग व कीटों का प्रकोप प्रायः कम होता है क्योंकि पौधे से पौधे की दूरी ज्यादा होने से प्रकाश व हवा पर्याप्त मिल जाती है और जैविक खाद के उपयोग से पौधों को प्राकृतिक पोषण मिलता है।
कटाई - गेहूँ सघनीकरण विधि द्वारा समय से बीज की बुवाई करने एवं इसके सभी सिद्धान्तों को ठीक से लागू करने पर फसल भी समय से पकती है। गेहूँ की फसल पकने के शीघ्र बाद ही कटाई कर लेनी चाहिए। जड़ों का विकास अच्छे से होने के कारण पकते समय पौधा हल्का सा हरा दिखाई देता है। कटाई का सर्वोत्तम समय वह है जब दानों में 20-25 प्रतिशत नमी विद्यमान हो।
उपज - परम्परागत विधि की अपेक्षा गेहूँ की सघनीकरण विधि द्वारा अनाज का उत्पादन लगभग डेढ़ से दो गुना तक अधिक होता है। लोक विज्ञान संस्थान (पी.एस.आई.) के तकनीकी सहयोग से गत वर्षों में हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड में किसानों द्वारा किये गये प्रयोगों के परिणामों का वर्षवार विवरण सारणी अ तथा ब में दिये गए हैं।
गेहूँ रोपण विधि द्वारा खेती करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना अतिआवश्यक हैः
1. उचित भूमि का चयन जरूरी है। अगर सम्भव हो तो मृदा परीक्षण कराना चाहिए। लवणीय, अम्लीय तथा जलरूद्ध भूमि को गेहूँ की खेती के लिए चयन नहीं करना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में इस प्रकार की समस्याग्रस्त भूमि बहुत कम है।
2. अच्छा उत्पादन लेने के लिए क्षेत्र की पारिस्थितिकी के अनुसार ही गेहूँ की किस्म का चुनाव करना चाहिए।
3. खेत में अनावश्यक पानी जमा न हो इसके लिए खेत को समतल करना अति आवश्यक है। खेत से जल निकासी का उचति प्रबन्ध करें।
4. अच्छे जमाव हेतु उन्हीं बीजों का चयन करें जिनकी जमाव क्षमता प्रमाणित हो अर्थात स्वस्थ बीज की ही बुवाई करें। इस बात का ध्यान रखें कि बीज के साथ अनावश्यक पदार्थ और अन्य प्रजाति तथा अन्य फसलों के बीज खेत में न जायें।
5. फसल को रोगों से बचाव हेतु बीज का उपचार अवश्य करें क्योंकि अधिकांश रोग बीज से ही पनपते हैं।
6. बीज बुवाई के समय यह अवश्य सुनिश्चित करें कि बीज से बीज व पंक्ति से पंक्ति की दूरी एक समान अर्थात गेहूँ सघनीकरण विधि में बताई गई दूरी के अनुसार हो।
7. जहाँ पंक्तियों के साथ-साथ बीज की निश्चित दूरी रखने में कठिनाई हो वहाँ पर केवल पंक्तियों के बीच निश्चित दूरी रखते हुए कम बीज डालकर बुवाई करें। 
8. खेत में कम पानी का उपयोग करते हुए गेहूँ सघनीकरण विधि के अनुसार समय से सिंचाई करें।
9. निराई-गुड़ाई समय से करनी चाहिए। इससे पौधों का पूर्ण विकास समय से होता है।
10. जैविक खाद का प्रयोग समय से व उचित मात्रा में करें।


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