रबी में  हरे चारे की खेती

 पशुओं के आहार में हरे चारे का बहुत महत्व है। क्योकि इसमे सुखे चारे की अपेक्षा पाच्य प्रोटीन, कुल पाचक पोषक तत्व, कैरोटीन, कैल्सियम की मात्रा  प्रर्याप्त होती है। हरे चारे दुधारु पशुओं कें लिये काफी महत्व पूर्ण माने जाते है, पशु इनको बड़े चाव से खाते है जीससे पशूओ की आहार ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। जाड़े में हरे चारे जैसे- बरसीम, लुर्सन, जई आदि अधिक स्वादिष्ट एंव पशुओ को सन्तुष्टि प्रदान करते है। इनके विरुद्ध मोटे चारे भूसा, कढ़वी आदि कम स्वादिष्ट होते है। हरा चारा दुधारु पशुओ के लिये, वृद्धिरत बच्चो एंव प्रौढ पशुओ सबके कंे लिये गुणकारी होता है। शहर के निकटवर्ती क्षेत्रो में यह फसल नगद पैसा कमाने का एक अच्छा साधन है क्योकि शहर के पशुपालक हरा चारा खरीद लेते है।
1. बरसीम:-



बरसीम हमारे यहाँ जाड़े में चारे की महत्वपूर्ण फसल है। दलहनी होनंें के नाते यह मृदा में उर्वरता की वृद्धि करती है जीससे अगली फसल के लिये मृदा मे नाइट्रोजन की बचत होती है। रबी के मौसम में जब हरे चारे का प्राय अभाव होता है तब इससे लगाातार हरा चारा प्राप्त होता रहता है। बरसीम चारा पौष्टिक होने के साथ-साथ पाचनशील भी होता है। शुष्कता के अधार पर बरसीम में 12-13 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन तथा 58-60 प्रतिशत कुल पाचक पोषक तत्व पाया जाता है। जो कि दुग्ध उत्पादनद के लिये काफी महत्वपूर्ण है। 
जलवायू:-


बरसीम के अच्छे अंकुरणएंव वृद्धि के लिये 15-25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उत्तम होता है, तापमान 40 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक होने पर इसके पौधे कटाई के बाद दूबारा वृद्धि नही करते है।
मृदा:- अच्छी जलनिकास वाली चिकनी ढोमट मिटटी बरसीम के लिये उपयुक्त होती है या हयूमस, कैल्सियम एंव फाँस्फोरस से युक्त ढोमट मिटटी भी बरसीम के लिये उपयुक्त होती है हालाकि बरसीम चिकनी मिटटी में भी कम अन्तराल पर सिचाई से उगाई जा सकती है। अपेक्षाकृत भारी मिटटी उच्च जलधारण क्षमता के कारण अच्छी मानी जाती है। क्षारीय भूमि पर भी बरसीम को सफलतापूर्वक उगााया जा सकता है, लूकिन अम्लीय भूमि पर बरसीम की खेती संभव नही है।  बरसीम की जडो में राइजोवियम जीवाणु पाये जाने के कारण इनकी क्रियाशीलता के लिये भूमि में जलनिकास तथा मृदा वायूसंचार का अच्छा साधन होना चाहिये। 
भूमि की तैयारी:-खेत को एकबार मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके 3-4 बार हैरो या देशी हल से जुताई करके खेत को तैयार करते है। बीज की बुआई से पहले खेत को समतल कर लेना चाहिये सावधानी रखनी चाहिये कि खेत में ढेला न रहे अन्यथा बीजो का जमाव अच्छा नही होगा। बरसीम का बीज आकार मे छोटा होता है अतः अच्छे अंकुरण के लिये खेत की तैयारी आवश्यक है बरसीम की फसल समान्यतः मक्का, ज्वार, बाजरा की कटाई के बाद उगाई जाती है। 
बीज एंव बीजदर:- समान्यतः 30-32 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है। बीज सदैव स्वस्थ मोटा पीले रंग का होना चाहिये लेकिन अगेती एंव पछेती बुआई के लिये बीज की मात्रा 35 कि.ग्रा./हे. रखनी चाहिये । बरसीम के बीज के साथ खर पतवार कासनी का बीज भी मिला रहता है दोनो बीज एक समान दिखते है। ऐसे में बरसीम के बीज को 10 प्रतिशत नमक के घोल में डुबो देते है जीससे कासनी का बीज हल्का होने के कारण पानी के ऊपर तैरने लगता है तथा बरसीम का बीज पानी के निचे बैठ जाता है कासनी के बीज को पानी से अलग करके शुद्ध पानी से 2-3 बार में बरसीम कंे बीज को साफ कर लेते है। बरसीम एक दलहनी फसल है जो राईजोवियम जीवाणु की सहायता से खेतो में नाइट्रोजन स्थरीकरण का कार्य करता है, इसलिये  20 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज की दर से बीज को उपचार कर बोना चाहिये  बीज को उपचार के लिये पानी मे गुड़ उबालकर ठंडा कर लेना चाहिये और उसी पानी में जीवाणु कल्चर को घोलकर पुरे बीज में समान रुप से मिला लेना चाहिये जीससे की कल्चर बीज मे समान रुप से मील जाय फिर बीज को छाया मे सुखाकर खेत मे बुआई कर देना चाहिये  इससे जीवाणु खेत मे समान रुप से फैल जाते है।
बुआई का समय:- बरसीम से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये मध्य अक्टुबर तक बुआई कर लेनी चाहिये देर से बुआई करने पर अंकुरण अच्छा नही होता है तथा पौधे की वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है एंव चारे की उपज पर भी प्रभाव पडता है।  
खाद एंव उर्वरक:-


बरसीम की फसल में 20-30 कि.ग्रा./हे. नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है एंव साथ मे 50-60 कि.ग्रा./हे. फॅास्फोरस की आवश्यकता होती है नाइट्रोजन एंव फाॅस्फोरस की मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में छिड़ककर मिटटी में मिला देनी चाहिये । बरसीम की प्रत्येक कटाई के बाद 10 कि.ग्रा. नाइट्रोजन/हे. की दर से खेत में छिड़ककर सिचाई करनी चाहिये। जीससे चारा जल्दी तैयार होता है। 
सिचाईः- प्रारम्भ में अच्छे अंकुरण एंव वृधि के लिये 10दिन के अन्तर पर एंव अक्टुबर से मार्च तक 12-14 दिन के अन्तर पर सिचाई करनी चाहिये लेकिन थोडा गरमी बड़ने पर मार्च- अप्रैल के महीने में 10-12 दिन के अन्तर पर सिचाई करनी चाहिये।
कटाईः-



बुआई के 50-60 दिन बाद बरसीम की पहली कटाई कर सकते है इसके बाद 20 से 30 दिन के अन्तर से कटाई कर सकते है। जब सर्दी ज्यादा पड़ती है तो पौधो की बढ़वार काफी धीरे होती है जीससे फसल 30 से 35 दिन के अन्तर पर कटने लायक होती है।
उपजः-


उन्नतशील प्रजातियो से 6-7 कटाई में 1000-1200 कु./हे. तथा देशी प्रजातियो से 3-4 कटाई में 500-600 कु./हे. तक हरे चारे की उपज प्राप्त हो जाती है।
2. जईः-



जई रबी मौसम के प्रमुख चारा फसलों मे से एक है इसका प्रयोग सुखे एंव हरे चारे दोनो ही रुप में किया जाता है उचित सुविधा उपलब्ध होने पर जई की फसल से तीन कटाईया प्राप्त हो जाती है जिनसे प्रर्याप्त मात्रा मे हरा चारा प्राप्त हो जाता है। जई की फसल के लिये अपेक्षाकृत ठंडी एंव शुष्क जलवायू की आवश्यकता होती है। इसमे शुष्कता के अधार पर 7-8 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन तथा 52-55 प्रतिशत कुल पाचक पोषक तत्व पाया जाता है। जो कि दुग्ध उत्पादन के लिये काफी महत्वपूर्ण है।


प्रजातियाः-


इसकी प्रमुख प्रजातिया कैंट, एच.एफ.सी. 14, फलेमिंग गोल्ड, वेस्र्टन 11, बुन्देल 2004 आदि प्रमुख है।
भूमि तथा भूमि की तैयारीः-


इसकी खेती हल्की ढोमट से भारी मटियार ढोमट भूमियो में भी सफलता पूर्वक की जा सकती है जई की फसल के लिये अच्छी जलनिकास वाली साधारण हल्की भूमि उपयुक्त होती है। लेकिन मृदा की किस्म और उर्वरता तथा सिचाई की सुविधाओ की फसल की कटाई पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ढोमट भूमियो से जीनमे कि पोषक तत्व प्रर्याप्त मात्रा मे पाये जाते है फसल की 3 कटाईया तक उपलब्ध हो जाती है।      
भूमि की तैयारी के लिये पहली जुताई गहरी मिटटी पलटने वाले हल से व देशी हल या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई कर के मिटटी भुरभुरी एंव समतल कर लेना चाहिये। 
बीजदर:-


बीज सदैव कवकनाशी रसायनो कैप्टान या थीरम से उपचारित कर के 80-100 कि. ग्रा./हे. की दर से बोना चाहिये चारे की फसल के लिये  साधारणतः छिटकवा विधि का प्रयोग कियाजाता है अगर जई की फसल को लाइन से बोना है तो लाइन से लाइन की दूरी 20-30 से.मी. एंव पौध से पौध की दूरी 10 से.मी. रखना लाभदायक है। 
बुआई का समयः-


परिस्थितियो के अनूसार जई की फसल की बुआई अक्टुबर से दिसम्बर के अन्तिम साप्ताह तक की जाती है परन्तु अक्टुबर का महीना ही सबसे अधिक उत्तम होता है क्योकि फसल बुआई जितनी शीघ्र होगी उतनी ही अधिक कटाईया और अधिक उपज प्राप्त होगी।
खाद एंव उर्वरक:-


जई की फसल के लिये  100-120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, व 50-60 कि.ग्रा./हे. फॅास्फोरस की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एंव फाॅस्फोरस की पुरी मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में छिड़ककर मिटटी में मिला देनी चाहिये । नाइट्रोजन की शेष मात्रा मे से आधी मात्रा बुआई के 25 दिन बाद एंव शेष मात्रा कटाई के बाद डालना चाहिये तथा साथ ही सिचाई करनी चाहियेे। जीससे चारा जल्दी तैयार होता है। 
सिचाई:- फसल में पहली सिचाई बुआई के 25 दिन बाद एंव शेष सिचाई 15-20 दिन के अन्तर से करनी चाहिये।
उपज:-


हरे चारे की उपज की 500-600 कु./हे. तक प्राप्त की जा सकती है। यदि प्रथम कटाई के बाद दाने के लिये छोड़ते है तो 250 कु./हे हरा चारा व 8-10 कु./हे. दाना प्राप्त हो जाता है।
 निर्वाह के लिये आवश्यक पोषक तत्वो की मात्रा



























क्र-



चारे की मात्रा



पदार्थ


 किग्रा में



पाच्य प्रोटीन


 ग्राम में



कुल पचक तत्व


 किग्रामें



1-



निर्वाह के लिये



6. 0



250



3. 1  किग्रा



2-



प्रति ली. दुध उत्पादन के लिये



0. 320



250



0. 380



निर्वाह के लिये चारे की मात्राः-
1. भूसा 4.5 एंव बरसीम 10 कि.ग्रा. मिलाकर अगर दुधारु पशुओ को दे तो निर्वाह आवश्यकता की पूर्ति हो जायेगी।
2. भूसा 4.5 एंव जई हरा चारा 13 कि.ग्रा. मिलाकर अगर दुधारु पशुओ को दे तो निर्वाह आवश्यकत की पूर्ति हो जायेगी।


5.0 ली. दुध देनेवाली गाय/भैस के लिये चारे की आवश्यकताः-
1. भूसा 4.5 एंव बरसीम 20 कि.ग्रा. के साथ 1.0 कि.ग्रा. चोकर देना चाहिये।
2. अगर 28 कि.ग्रा. जई हरे चारे के साथ 4.5 कि.ग्रा. भूसा दुधारु पशुओ को दे तो 5-6 ली. दुध   उत्पादन लिया जा सकता है।
10.0 ली. दुध देने वाली गाय/भैस के लिये चारे की आवश्यकताः-
     1. अगर दलहनी हरा चारा बरसीम 30 कि.ग्रा. के साथ भूसा 4.5 कि.ग्रा. एंव 1.0 कि.ग्रा. दाना मिश्रण  मिलाकर देना चाहिये।
      2. भूसा 4.5 कि.ग्रा., जई हरा चारा 25 कि.ग्रा. के साथ 3.0 कि.ग्रा. दाना मिश्रण दुधारु पशुओ को दे तो 10.00 ली. दूध उत्पादन लिया जा सकता है।                                


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