अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीं पर

परमात्मा ने हमें इस पृथ्वी पर दो प्रकार के कार्य करने के लिए भेजा है:-जिस प्रकार एक चींटी को अपना घर बनाते समय इस बात का पता नहीं होता है कि किस समय उसके घरौंदे में पानी भर जायेगा और उसका घरौंदा नष्ट हो जायेगा ठीक उसी प्रकार हमें भी इस बात का पता नहीं होता है कि किस समय कौन सी प्राकृतिक आपदा यथा सुनामी, बाढ़, चक्रवात, भूकंप आदि हमारे अस्तित्व को समाप्त करने के लिए हमारे समक्ष खड़ी हो जाये। वास्तव में हम भी चींटी के समान ही नश्वर हैं। हमें यह नहीं पता होता है कि चींटी को इस संसार में भेजते समय परमपिता परमात्मा ने क्या मार्गदर्शन दिया। परन्तु हमें परमपिता परमात्मा ने इस संसार में भेजते समय यह मार्गदर्शन अवश्य दिया है कि हमें इस संसार में निम्न दो प्रकार के कार्य करने हैं:-
1. ईश्वर प्रदत्त गुणों का विकास करना। 
2.  समाज के कल्याण के लिए विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना करना जिससे सारी मानवता को रोटी, कपड़ा व मकान मिल सके।
परमात्मा ने हमें ईश्वरीय गुणों से परिपूर्ण करके इस संसार में भेजा है:
 परमपिता परमात्मा ने प्रत्येक बीज के अन्दर भिन्न-भिन्न गुण भरे हैं। एक ही प्रकार की मिट्टी, खाद, पानी, हवा तथा माली के होते हुए भी उनसे निकलने वाले फूलों के रंग, रूप अलग-अलग होते हैं। उसी प्रकार परमपिता परमात्मा ने सभी मनुष्यों में गणितज्ञ, वैज्ञानिक, संगीतज्ञ आदि बनने की क्षमता तो अलग-अलग दे रखी है किन्तु उन्होंने सभी मनुष्यों को अपनी आत्मा के उत्थान के लिए सच बोलने, त्याग करने, प्रेम करने, सेवा करने तथा न्याय आदि करने जैसे गुणों को एक समान दिया है। महात्मा गाँधी व उनकी माता जी, शिवाजी व उनकी माता जी आदि सभी महापुरूषों ने भगवान के रास्ते पर चलकर ही इस संसार में अपनी आत्मा का विकास किया है। 
परमात्मा हमें स्वयं शक्तिशाली बनाता है:- 
परमपिता परमात्मा ने दोनों प्रकार के कार्य करने हेतु प्रत्येक मनुष्य को आभा लोक से, (आत्म लोक से) 100 वर्ष का बनवास प्रदान कर हमें इस संसार में भेजा है। इस बनवास की अवधि में हमें परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त गुणों का विकास करते हुए सारे संसार के कल्याण के लिए कार्य करना है। किसी ने कहा है कि ''मंजिल के लिए दो कदम चले और मंजिल सामने आ जाये।'' अगर हम दो कदम आगे बढ़ेगे तो हमें स्वतः ही परमपिता परमात्मा की शक्ति मिल जायेगी। 
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीं पर:- 
परमपिता परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को अपने गुणों से परिपूर्ण बनाया है। परमपिता परमात्मा ने हमें इस संसार में अपने गुणों से युक्त करके 100 वर्ष के वनवास पर अपनी शिक्षाओं पर चलते हुए प्रभु को जानने के लिए भेजा है। किसी ने कहा है कि ''अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीं पर'' अर्थात परमपिता परमात्मा ने हमें इस पृथ्वी पर रामराज्य की स्थापना के लिए ही भेजा है। 
राम काज कीन्हे बिना मोहे कहाँ विश्राम:- 
 इस सम्बन्ध में हनुमान जी के लंका जाकर सीता जी के पता लगाने के समय का दृष्टान्त लिया जा सकता है। जिस समय हनुमान जी लंका में पहुँच कर चारों ओर घर-घर घूम रहे थे, उसी समय उनकी नजर एक ऐसे घर पर पड़ी जहाँ श्रीराम लिखा हुआ था। हनुमान जी ने लंका में रहने वाले राम भक्त से मिलने के लिए उस घर में प्रवेश किया। यह घर लंका के राजा रावण के भाई विभीषण का था। हनुमान जी ने विभीषण से अपने लंका आने का कारण, राम के काज, अर्थात् सीता माता की खोज करना बताया और उन्होंने विभीषण से पूछा कि आप केवल राम-राम कह रहें हैं या राम के लिए कोई काम भी कर रहे हैं। विभीषण ने हनुमान जी से प्रेरणा लेकर अगले ही दिन राज्य दरबार में जाकर (राम काज के रूप में) रावण से सीता माता को छोड़ने के लिए कहा। इससे नाराज होकर रावण ने उन्हें लात मारकर लंका से ही निकाल दिया। तत्पश्चात् विभीषण समुद्र पार कर राम के काज को करने के लिए राम के साथ आ गये। इसका मतलब है कि हमें राम का काम करना है। अर्थात् आज के युग के अवतार के निम्न कामों को करना है 1. विश्व शांति स्थापित करनी है।
2. युद्धों को समाप्त करना तथा 3. सारी दुनिया के लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान का प्रबन्ध करना है।
विज्ञान और धर्म का उपयोग विश्व में शांति के लिए हो:-
 परमपिता परमात्मा ने हमें इस युग की समस्या को समाप्त करने के लिए ही भेजा है। इस युग की समस्याओं के समाधान के रूप में हमें सारे विश्व में एकता स्थापित करनी है। आज विज्ञान दिशाविहीन हो गया है। आज विज्ञान का प्रयोग परमाणु बमों के निर्माण तथा मानव विनाश के लिए ज्यादा होने लगा है जबकि आज विज्ञान को मानव कल्याण के लिए प्रयोग करने का समय आ गया है। इसके लिए हमें विज्ञान और धर्म को एक साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए इस संसार में आध्यात्मिक साम्राज्य की स्थापना के लिए कार्य करना है। 
दुनिया में महानतम शांति लाने के लिए 6 सिद्धांत:-
 इस युग के राम राज्य की स्थापना के लिए हमें ''दुनिया में महानतम शांति लानी होगी।'' इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें इस युग के महा-अवतार बहाउल्लाह की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाना होगा। इंग्लैन्ड की महारानी विक्टोरिया को एक पत्र में बहाउल्लाह ने लिखा था कि 'इस युग में दुनिया के सभी लोग एक दुनियाँ बनाने के लिए जुट जायें।..... हमें सारी दुनियाँ के हर व्यक्ति का आध्यात्मिककरण करना है। उन्होंने कहा कि आने वाली शताब्दियों में दुनिया के सभी धर्म एवं जाति के लोग आपस में मिल जायेंगे। और इस प्रकार से निर्मित जीवन से ही विश्व की सरकार का गठन होकर विश्व में महानतम शांति की स्थापना हो सकेगी। उन्होंने कहा कि इसमें मुख्यतः 6 बातों का समावेश होगा:-
1. सारी दुनियाँ के लोग बहाउल्लाह के सामाजिक नियमों को पहचान लेंगे। बहाउल्लाह का     सामाजिक नियम है कि - ईश्वर एक है। सभी मानव जाति एक हैं तथा विश्व के सभी धर्मों की आधारशिला एक ही है। 
2. हम सभी एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं। 
3. परमात्मा द्वारा प्रदत्त गुणों प्रेम, करूणा, दया आदि का विकास करते हुए परमात्मा की    इच्छा-पालन के लिए कार्य करना ही आध्यात्मिकता है। 
4. बहाउल्लाह के सिद्धांत के अनुसार विश्व की एक राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के द्वारा गठित विश्व की एक सरकार के द्वारा ही सारी दुनियाँ में शांति की स्थापना होगी।
5. बहाई शासन और अनुशासन की सर्वोत्तम संस्था ''विश्व न्याय मंदिर'' है।  
6. बहाउल्लाह के स्वर्णिम युग में दुनिया में ईश्वरीय सभ्यता स्थापित हो जायेगी और सभी मनुष्य परमात्मा के गुणों को प्राप्त कर लेंगे। इस प्रकार पृथ्वी पर स्वर्ग की स्थापना हो जायेगी। 
ईश्वरीय साम्राज्य की स्थापना के लिए योगदान:-
इसके लिए हमें अपने अन्दर व्याप्त प्रभु प्रदत्त गुणों को विकसित करने के साथ-साथ सारे समाज को भी अच्छा बनाना है। आज के युग में वचनों का नहीं अपितु कर्म का असर होता है। समाज को अच्छा बनाने के लिए हमें पहले स्वयं को अपने कर्मों के द्वारा अच्छा बनाना होगा। इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी के साथ घटित एक घटना का वर्णन किया जा सकता है। जो कि इस प्रकार है: एक बच्चे के गुड़ खाने की आदत से परेशान होकर उसकी माँ बच्चे को लेकर महात्मा गाँधी के पास गई। और उन्होंने गाँधी जी से अपने बच्चे को गुड़ खाने से मना करने हेतु समझाने का आग्रह किया। गाँधी जी ने उनसे अगले हते आने को कहा। अगले हते आने पर फिर गाँधी जी ने अगले हते आने को कहा। इस प्रकार तीसरे हते आने पर गाँधी जी ने उस बच्चे से कहा ''बेटा गुड़ मत खाया करो'। बच्चे की माँ इस बात से परेशान थी कि आखिर गाँधी जी ने इतनी सी बात को समझाने के लिए तीन हप्तों  का समय क्यों लिया और जब उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने गाँधी जी से इसका कारण पूछ ही लिया। तब गाँधी जी ने उन्हें बताया कि उन्हें इस बच्चे को गुड़ खाने से मना करने के पहले खुद की गुड़ खाने की आदत को छोड़ना था, जिसमें उन्हें तीन हफ्ते का समय लग गया। महात्मा गाँधी का कहना था कि जिस काम को हम स्वयं करते हों उसे न करने के लिए हम दूसरों से नहीं कह सकते। 
वह समय जरूर आयेगा जब महानतम शांति आ जायेगी:
 हमारा पूर्ण विश्वाास है कि एक समय आयेगा जब सारी दुनियाँ एक विश्व परिवार का स्वरूप 
धारण कर लेगी। दुनियाँ में कहीं भी अंधेरा नहीं रहेगा। सब जगह रोशनी ही रोशनी होगी। इस युग के अवतार बहाउल्लाह के परम भक्त अब्दुलबहा ने कहा है कि आने वाले समय में क्रूर और सरल हृदय के व्यक्ति आपस में सुलह कर एक साथ ही रहेंगे। बाइबिल में भी लिखा है कि एक ऐसा युग आयेगा जब एक व्यक्ति, जिसका नाम बहाउल्लाह होगा, इस युग में आकर अपनी हृदय की एकता की शिक्षाओं से सारे संसार में मानव मात्र की एकता की स्थापना करेगा। पुराने ग्रन्थों में लिखा है कि वह समय आयेगा जब भेड़िया और मेमना एक साथ रहेंगे। अर्थात् क्रूर लोगों के साथ ही कमजोर और दयालु व्यक्ति भी एक साथ ही रहेंगे। और यह वही समय होगा जब सारी दुनियाँ के लोगों के हृदय में ईश्वरीय गुणों की स्थापना होकर, सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना होेगी। लड़ाईयाँ बन्द हो जायेंगी और महानतम विश्व शांति आ जायेगी।


 


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