ज्ञान ही नही बुद्धिमत्तापूर्वक कार्यान्वयन भी जरूरी
जीवन में ज्ञान के साथ ही बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता है। प्रभु कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को गीता का ज्ञान उसे ज्ञानवान बनाने के साथ बुद्धिमान बनाने के लिए दिया था। अर्जुन को यह ज्ञान हुआ कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। अर्जुन को जब अपने कर्तव्य का ज्ञान हो गया और उसने इस ज्ञान का सदुपयोग अन्याय का साथ दे रहे अपने चाचा, मामा, ताऊ तथा भाई को गिन-गिनकर मारने के लिए किया यह ही बुद्धिमत्ता है। अर्जुन ने गीता का ज्ञान पाने के साथ जब उसने बुद्धिमत्तापूर्वक 'एक्शन' भी किया तब वह अपने युग का सबसे बड़ा यौद्धा बन गया। बालक को शिक्षा के द्वारा ज्ञानवान बनाया जाता है। बालक जब इस ज्ञान का सदुपयोग अपने जीवन की वर्तमान परिस्थितियों में साहस एवं धैर्यपूर्वक करता है उसे ही बुद्धिमत्ता कहा जाता है। परमात्मा ने जब से यह सृष्टि बनायी तब प्रथम स्त्री एवं पुरूष के रूप में 'मनु-शतरूपा' या 'एडम-ईव' को एक साथ स्वयं अपनी आत्मा से जोड़े के रूप में उत्पन्न किया। सृष्टि के प्रथम स्त्री-पुरूष दोनों को परमात्मा ने एकता के साथ मिलकर रहने की सर्वप्रथम सीख दी। इस प्रकार परमात्मा द्वारा सृजित धरती के प्रथम मानव परिवार की स्थापना हुई। जो अब बढ़कर 7 अरब से अधिक व्यक्तियों का भरा-पूरा विश्व परिवार बन चुका है।
आज की सबसे बड़ी आवश्यकता हृदय की एकता है
सभी धर्मों का मूल उद्देश्य मानवीय हितों की रक्षा करना और मानव जाति की एकता को बढ़ावा देना है। मानव जाति के बीच प्रेम और सहभागिता की भावना को प्रोत्साहित करना है। प्रगतिशील रहस्योद्घाटन का मतलब है कि परमपिता परमात्मा द्वारा ''देवी शिक्षकों'' अर्थात कृष्ण, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह आदि-आदि की एक श्रृंखला के माध्यम से सिलसिलेवार धार्मिक सत्य प्रकट होता है। ये शिक्षायें युग की आवश्यकतानुसार अलग-अलग स्थानों पर प्रगट होती हैं। परमपिता परमात्मा की ओर से अवतारित सभी पवित्र पुस्तकों गीता, त्रिपटक, बाइबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे-अकदस में त्रुटिरहित तथा संग्रहित बुद्धिमत्ता है जो कि अलग-अलग युग में मानव जाति के मस्तिष्क के बंद तालों को खोलने के लिए भेजी गयी हैं। कृष्ण ने आज से 5000 वर्ष पूर्व गीता के माध्यम से न्याय का संदेश दिया, बुद्ध ने 2500 वर्ष पूर्व त्रिपटक के माध्यम से समता का सन्देश दिया, ईसा ने 2000 वर्ष पूर्व बाइबिल के माध्यम से करूणा का संदेश दिया, नानक ने 550 वर्ष पूर्व गुरू ग्रन्थ साहिब के माध्यम से त्याग का संदेश दिया तथा बहाउल्लाह ने 200 वर्ष पूर्व हृदय की एकता का संदेश दिया। आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता हृदय की एकता है। परिवार, संस्था, समाज, देश तथा विश्व में हृदय की एकता की आज सर्वाधिक आवश्यकता है। एकता के वृक्ष पर ही शान्ति के फल लगते हैं।
बच्चे ही सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं
बच्चे ही संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के माध्यम से सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना कर सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एवं शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने कहा भी है कि 'शिक्षा ही वह शक्तिशाली हथियार है जिसके माध्यम से सारे विश्व की सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाया जा सकता है।'' इस प्रकार सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ ढांचे में ढलकर बच्चे ही विश्व में सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं। सभी बच्चे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना चाहते हैं। कोई भी बालक बम का निर्माण नहीं चाहता है। हमारा शरीर भौतिक है। ऐसे में अगर हमारे बच्चों का चिंतन भी भौतिक हो गया तो वे पशु बन जायेंगे। इसलिए हमे अपने बच्चों के चिंतन को आध्यात्मिक बनाना है। तभी वे संतुलित प्राणी बन पायेंगे। तभी वे ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बन सकेंगे। तभी वे विश्व का प्रकाश बन सकेंगे। इसके लिए हमें अपने बच्चों को भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करके उन्हें गुड और स्मार्ट दोनों बनाना है।
बच्चे सबसे पहले अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें बच्चों को अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं निर्धारित करना चाहिए। किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में विचारों का सबसे बड़ा योगदान होता है। किसी भी व्यक्ति के जैसे विचार होते हैं वैसे ही वह बन जाता है। यदि हम ऊँचा सोचेंगे तो हम ऊँचा बन जायेंगे। इसलिए हमें अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ जीवन-मूल्यों की शिक्षा देकर उनके विचारों को हमेशा ऊँचा बनाये रखते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा देनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि किसी भी महापुरुष ने किसी भी दूसरे महापुरुष का अनुकरण नहीं किया। सभी महापुरुषों ने ने अपना-अपना रास्ता स्वंय बनाया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कहना है कि हमें दूसरे महापुरूषों के विचारों से प्रेरणा तो अवश्य लेना चाहिए किन्तु हमें अपना रास्ता स्वयं निर्धारित करना चाहिए। इसलिए हमें अपना आत्मनिरीक्षण स्वयं करना चाहिए कि हमें क्या करना है? अपने शुद्ध एवं पवित्र हृदय के कारण ही प्रत्येक बालक विश्व का प्रकाश है। इसलिए हमारे बच्चों के जीवन का उद्देश्य भी परमपिता परमात्मा की तरह ही सारी मानवजाति का कल्याण होना चाहिए।
परमात्मा के सबसे अच्छे पुत्र बनें
हमारा व हमारे बच्चों का यह संकल्प होना चाहिए कि हम अपने शरीर के पिता के द्वारा बनाये गये घर के साथ ही अपनी आत्मा के पिता के द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि को भी सुन्दर बनायेंगे। यही एक अच्छे पुत्र की पहचान भी है। कोई भी पिता अपने उस पुत्र को ज्यादा प्रेम करता है जो कि उसकी बातों को मानता है। सबसे प्रेम करता है। आपसी सद्भावना पैदा करता है। एकता को बढ़ावा देता है। परमात्मा अपने ऐसे ही पुत्रों को सबसे ज्यादा प्रेम करता है जो उनकी शिक्षाओं पर चलकर उनकी बनाई हुई सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का काम करते हैं। परमपिता परमात्मा की बनाई हुई इस सारी सृष्टि में ही हमारे शरीर के पिता ने 4 या 6 कमरों का एक छोटा सा मकान बनाया है। हमें इस 4 या 6 कमरों में रहने वाले अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ ही परमपिता परमात्मा द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि में रहने वाली मानवजाति से भी प्रेम करना चाहिए। तभी हमारे शरीर के पिता के साथ ही हमारी आत्मा के पिता भी हमसे खुश रहेंगे।
परमात्मा की इच्छा पूर्ति के लिए मनुष्य शरीर रुपी यंत्र
ईश्वर की शिक्षाओं को जानें, उनको समझें और उनकी गहराईयों में जाये और फिर उन शिक्षाओं पर चलें। यही ईश्वर की सच्ची पूजा है और यही हमारी आत्मा का पिता 'परमपिता परमात्मा' हमसे चाहता भी है। शरीर चाहे अवतार का हो या संत महात्माओं का हो, माता-पिता का हो, भाई-बहन का हो या किसी और का हो, यही पर रह जाता है। जब तक आत्मा शरीर में है तभी तक यह शरीर काम करता है। परमात्मा ने अपनी आज्ञाओं के पालन के लिए हमें यह शरीर दिया है। परमात्मा हमसे कहता है कि तेरी आँखें मेरा भरोसा हैं। तेरा कान मेरी वाणी को सुनने के लिए है। तेरे जो हाथ हैं वो मेरे चिन्ह् है। तेरा जो हृदय है मेरे गुणों को धारण करने के लिए हैं। इस प्रकार शरीर को परमात्मा ने हमें अपने काम के लिए अर्थात् ईश्वर को जानने के लिए तथा उसकी पूजा करने अर्थात् उन शिक्षाओं पर चलने के लिए दिया है।
थिंक ग्लोबली एक्ट ग्लोबली:-
हमें अपने बच्चों के दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाने के साथ ही साथ उन्हें सारे विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करना चाहिए। वास्तव में बच्चे संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन में सब कुछ पा सकते हैं। इसलिए बच्चों को चाहिए कि वे अपने चुने हुए कार्यश्रेत्र में सबसे सर्वश्रेष्ठ बनें। वे विश्व के सबसे महान व्यक्ति बनें। वे जिस भी क्षेत्र में जायें, उस पर सबसे ऊपर रहें। डिसीजन मेकर बनें और पूरे विश्व को ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय बनाये और उसे लागू करें। वे सारी मानवजाति की सेवा के लिए सारे विश्व का प्रधानमंत्री बनें। सारे विश्व का राष्ट्रपति बनें। सारे विश्व का स्वास्थ्य मंत्री बनें। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देकर उनके दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाना होगा। उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित करना होगा।
प्रत्येक बच्चे को मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करना है हमें प्रत्येक बच्चे को सारे विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करना है। हमें उन्हें समझाना है कि हम केवल अपने कार्यों में ही न लगे रहें। हम केवल अपने राष्ट्र हित के कार्यों में ही न लगे रहें बल्कि हमें दुनिया के 7 अरब से अधिक़ लोगों की भलाई के लिए काम करना है। हमें अपने बच्चों के माध्यम से सारे विश्व में परिवर्तन लाना है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम 21वीं शताब्दी में अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उन्हें सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें सम्पूर्ण विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करें।